नई दिल्ली3 घंटे पहले
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गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के कोच S-6 में आग लगा दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट आज गोधरा कांड मामले की सुनवाई करेगा। पिछली तारीख पर 24 अप्रैल को बेंच दोपहर 1 बजे तक ही बैठी थी। इस वजह से मामले की सुनवाई नहीं हो पाई थी।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने कहा था, ‘पूरी सुनवाई में कम से कम दो हफ्ते का समय लगेगा। हम मामले को लगातार 6 और 7 मई को सुनेंगे।’
‘हम रजिस्ट्री से अनुरोध करते हैं कि इन तिथियों पर कोई अन्य मामला लिस्ट न किया जाए। जरूरत हो तो अन्य मामले दूसरी बेंच को ट्रांसफर किए जा सकते हैं।’
बेंच ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट नियमों के मुताबिक मौत की सजा से जुड़े मामलों को सुनवाई तीन जजों की बेंच को करनी चाहिए। इस वजह से 6 मई को तीन जजों की बेंच बैठेगी।
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच S-6 में आग लगा दी गई थी। ट्रेन में अयोध्या से लौट रहे 59 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी।
गुजरात सरकार ने मामले में 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। वहीं, कई दोषियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए फैसले को चुनौती दी है।

साबरमती एक्सप्रेस में अयोध्या से लौट रहे 59 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी।
31 में से 11 दोषियों को फांसी की सजा मिली थी गोधरा कांड के बाद चले मुकदमों में करीब 9 साल बाद 31 लोगों को दोषी ठहराया गया था। 2011 में SIT कोर्ट ने 11 दोषियों को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
गुजरात हाईकोर्ट ने अक्टूबर, 2017 में 11 दोषियों की फांसी की सजा को भी उम्रकैद में बदल दिया था। गुजरात सरकार ने 2018 में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सरकार ने कहा था कि वह उन 11 दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग करेगी, जिनकी सजा को हाईकोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था।
गोधरा कांड के बाद दंगों में 1000 से ज्यादा लोग मरे गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में गुजरात के कई शहरों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। इनमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे।
गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी को अहमदाबाद की गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी में बेकाबू भीड़ ने 69 लोगों की हत्या कर दी थी।
इसमें उसी सोसाइटी में रहने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे। दंगों से हालात इस कदर बिगड़ गए कि स्थिति काबू में करने के लिए तीसरे दिन सेना उतारनी पड़ी थी।

मोदी को मिली थी क्लीन चिट मार्च, 2002 में गुजरात सरकार ने गोधरा कांड की जांच के लिए नानावती-शाह आयोग बनाया। तब नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस केजी शाह और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जीटी नानावती इसके सदस्य थे।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट का पहला हिस्सा सितंबर, 2008 में पेश किया। इसमें गोधरा कांड को सोची-समझी साजिश बताया गया। साथ ही आयोग ने नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों को क्लीन चिट दी।
2009 में जस्टिस केजी शाह के निधन के बाद गुजरात हाईकोर्ट से रिटायर्ड जस्टिस अक्षय मेहता आयोग के सदस्य बने। तब आयोग का नाम नानावटी-मेहता आयोग हो गया। आयोग ने नवंबर, 2014 में करीब ढाई हजार पन्नों की फाइनल रिपोर्ट पेश की।
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