Sharadiya Navratri from 22 September to 1st October, significance of navratri in hindi, durga puja tips | शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से: एक साल में चार बार ऋतुओं के संधिकाल में आती है नवरात्रि, इस बार 9 नहीं, 10 दिनों तक चलेगा ये उत्सव

Actionpunjab
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23 घंटे पहले

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शारदीय यानी आश्विन मास की नवरात्रि कल (22 सितंबर) से शुरू हो रही है। इस साल नवरात्रि 9 नहीं, 10 दिनों की है। 1 अक्टूबर को महानवमी है और 2 तारीख को विजयादशमी मनाई जाएगी। ये उत्सव सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य से नजरिए से भी बहुत खास है। जहां एक ओर भक्त देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं और दूसरी ओर व्रत-उपवास के माध्यम से शरीर के पाचन तंत्र को विश्राम देते हैं, मंत्र-जप करके मन के नकारात्मक विचार दूर करते हैं, जिससे मन शांत होता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, नवरात्रि के समय में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं। हर दिन देवी के एक विशेष रूप की पूजा से भक्त के भीतर की नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।

  • 22 सितंबर- प्रथम दिन – शैलपुत्री: यह स्वरूप प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है।
  • 23 सितंबर- द्वितीय दिन – ब्रह्मचारिणी: आत्म-अनुशासन और तपस्या का संदेश देती हैं।
  • 24 सितंबर- तृतीय दिन – चंद्रघंटा: साहस और शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • 25-26 सितंबर- चतुर्थ दिन – कुष्मांडा: ब्रह्मांड की सृजनकर्ता, सकारात्मक ऊर्जा की जननी। इस साल चतुर्थी तिथि दो दिन रहेगी, इसलिए दो दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाएगी।
  • 27 सितंबर- पंचम दिन – स्कंदमाता: मातृत्व और करुणा का प्रतीक।
  • 28 सितंबर- षष्ठ दिन – कात्यायनी: न्याय और वीरता की देवी।
  • 29 सितंबर- सप्तम दिन – कालरात्रि: नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाली।
  • 30 सितंबर- अष्टम दिन – महागौरी: शांति और सौंदर्य का प्रतीक।
  • 1 अक्टूबर- नवम दिन – सिद्धिदात्री: सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी।

ऋतु परिवर्तन के समय आती हैं चार नवरात्रियां

हिन्दी पंचांग के मुताबिक, एक साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है, चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास में। इनमें से चैत्र और आश्विन की नवरात्रियां सामान्य (प्रकट) होती हैं, जबकि आषाढ़ और माघ की नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, जो तांत्रिक साधनाओं और आध्यात्मिक प्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

नवरात्रि ऋतुओं के संधिकाल में आती है। संधिकाल यानी वह समय, जब एक ऋतु समाप्त होकर दूसरी ऋतु शुरु होती है।

  • चैत्र नवरात्रि: शीत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत
  • आषाढ़ नवरात्रि: ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु की शुरुआत
  • आश्विन नवरात्रि: वर्षा ऋतु के बाद शीत ऋतु की शुरुआत
  • माघ नवरात्रि: शीत ऋतु के बाद वसंत ऋतु की शुरुआत

ऋतुओं का ये संधिकाल न केवल पर्यावरण में बदलाव लाता है, बल्कि हमारे शरीर और मन पर भी प्रभाव डालता है। ऐसे समय में उपवास, ध्यान और योग के माध्यम से शरीर और मन को संतुलित करना हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

व्रत और उपवास: धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी

नवरात्रि के दौरान किए जाने वाले व्रत-उपवास केवल धार्मिक अनुशासन का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि आयुर्वेद के नजरिए से हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। आयुर्वेद में एक विशेष उपचार पद्धति है—लंघन, जिसमें शरीर को कुछ समय तक भोजन से दूर रखा जाता है। इससे पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और शरीर अपनी संचित ऊर्जा को रोग निवारण में प्रयोग करता है।

उपवास के दौरान जब हम हल्का, सात्विक आहार लेते हैं या कभी-कभी सिर्फ फलाहार या जल पर रहते हैं, तो शरीर में डिटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई पुराने रोगों से मुक्ति मिल सकती है।

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