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नई दिल्ली4 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल की तरफ से 10 बिल रोके जाने को अवैध बताया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की तरफ से बिलों को रोका जाना कानून की दृष्टि से सही नहीं कहा जा सकता। राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-

राज्यपाल को एक फ्रेंड, फिलॉसफर और गाइड की तरह होना चाहिए। आप संविधान की शपथ लेते हैं। आपको किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए। आपको उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं। राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई बाधा पैदा न हो।
सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल आरएन रवि ने बिलों को रोककर रखा है।
सुप्रीम कोर्ट की 2 मुख्य बातें…
जस्टिस जेबी पारडीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा-
- राज्यपाल द्वारा इन 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैध और मनमाना है। यह कार्रवाई रद्द की जाती है। राज्यपाल की सभी कार्रवाई अमान्य है।
- राज्यपाल रवि ने गुड फेथ से काम नहीं किया। इन बिलों को उसी दिन से मंजूर माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने बिलों को पास करके दोबारा राज्यपाल को भेजा गया था
राज्यपाल के पास बिल रोकने की कौन सी शक्तियां हैं… दरअसल, संविधान का आर्टिकल 200 कहता है कि जब विधानसभा कोई विधेयक राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राज्यपाल के पास 4 विकल्प होते हैं:
- मंजूरी दे सकते हैं।
- मंजूरी रोक सकते हैं।
- बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज सकते हैं।
- किसी प्रावधान पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेज सकते हैं।
ऐसे में अगर विधानसभा उसे दोबारा पास कर देती है, तो फिर राज्यपाल मंजूरी नहीं रोक सकते। हालांकि अगर राज्यपाल को लगता है कि बिल संविधान, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों या राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा है, तो वह उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट बोला- राज्यपाल समय से काम करें आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपाल को मिले हुए विकल्पों का उपयोग तय समय-सीमा में करना होगा, वरना उनकी कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा होगी।
- यदि राज्यपाल किसी बिल को रोके या राष्ट्रपति के पास भेजें, तो उन्हें यह काम मंत्रिपरिषद की सलाह से एक महीने के अंदर करना होगा।
- यदि बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के राष्ट्रपति के पास भेजें, तो तीन महीने के अंदर करना होगा।
- अगर विधानसभा बिल को दोबारा पास कर भेजती है, तो राज्यपाल को एक महीने के अंदर मंजूरी देनी होगी।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच 2021 से विवाद चल रहा राज्यपाल और स्टालिन सरकार के बीच 2021 में सत्ता संभालने के बाद से ही खराब रिश्ते रहे हैं। DMK सरकार ने उन पर भाजपा प्रवक्ता की तरह काम करने और विधेयकों और नियुक्तियों को रोकने का आरोप लगाया है। राज्यपाल ने कहा है कि संविधान उन्हें किसी कानून पर अपनी सहमति रोकने का अधिकार देता है। राजभवन और राज्य सरकार का विवाद सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति भवन तक भी पहुंच गया है।