Badrinath’s doors will open at 6 am: Door worship in Brahmamuhurta, darshan without decoration will be available till 8 am, first aarti will be at 12 noon | सुबह 6 बजे खुलेंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट: ब्रह्ममुहूर्त में होगा द्वार पूजन, 8 बजे तक होंगे बिना श्रृंगार वाले दर्शन, दोपहर 12 बजे होगी पहली आरती

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23 घंटे पहले

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बद्रीनाथ धाम के कपाट कुछ देर में श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के रावल पूजा और कपाट खोलने का संकल्प लेंगे। फिर गणेश पूजन किया जाएगा। फिर द्वार पूजन कर के द्वारपाल से मंदिर में जाने की अनुमति ली जाएगी। मंदिर का कपाट तीन चाबियों से खोला जाएगा।

कपाट खुलते ही पहले अखंड ज्योति के दर्शन होंगे। यह 6 महीने से जल रही है। इसके बाद बद्रीनाथ पर चढ़ा हुआ घी से बना कंबल हटाया जाएगा। जो 6 महीने पहले कपाट बंद होने के समय भगवान को ओढ़ाया जाता है। इस कंबल को प्रसाद रूप में बांटा जाता है।

बद्रीनाथ धाम के पूर्व रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी से जानते हैं कपाट खुलने के बाद की पूजा परंपरा…

6 से 8 बजे तक होंगे बिना श्रृंगार वाले दर्शन, दोपहर 12 बजे बाद होगी पहली आरती

  1. कपाट 6 बजे खुलेंगे। फिर गर्भगृह खुलेगा। मंदिर के रावल पिछले 6 महीने से जल रही अखंड ज्योति के दर्शन करेंगे। अखंड ज्योति को दूसरे दीपक में शिफ्ट किया जाएगा।
  2. लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा होगी। सभी देवताओं को ओढ़ाया हुआ घृत कंबल हटाया जाएगा।
  3. कपाट खुलने के बाद 2 घंटे तक निर्वाण दर्शन होते हैं, यानी बिना श्रृंगार हुए।
  4. भगवान के शरीर पर टिहरी राजघराने से आया तेल लगाया जाएगा।
  5. पहला अभिषेक तप्त कुंड के गर्म पानी से होगा। इसके बाद नव कलश पूजा, पंचामृत अभिषेक होगा।
  6. दोपहर करीब साढ़े 12 बजे के बाद बालभोग और राजभोग लगेगा। फिर आरती होगी।
  7. बालभोग का प्रसाद ब्रह्म कपाल भेजा जाएगा। इसी भोग से वहां पहला पिंडदान होगा।
  8. बद्रीनाथ मंदिर में पूरे दिन दर्शन होंगे। रात को शयन आरती के बाद करीब साढ़े 11 बजे तक मंदिर के कपाट बंद होंगे।

तीन चाबियों से खुलेगा कपाट का ताला मंदिर कपाट का ताला तीन चाबियों से खुलेगा। इनमें एक टिहरी राजदरबार, दूसरी चाबी बद्री-केदार मंदिर समिति के पास और तीसरी चाबी बद्रीनाथ धाम के रावल और पुजारियों के पास होती है, जिन्हें हक-हकूकधारी कहा जाता है। – डॉ. ब्रजेश सती, चारधाम तीर्थ पुरोहित

बद्रीनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व और इतिहास 1. उत्तराखंड के चमोली जिले में ये मंदिर समुद्र स्तर से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर बना है। हर साल करीब 10 लाख श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम पहुंचते हैं। 2. मंदिर में भगवान विष्णु की बद्रीनारायण स्वरूप की 1 मीटर की मूर्ति स्थापित है। इसे श्री हरि की स्वंय प्रकट हुई 8 प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ध्यान करने के लिए एक शांत और प्रदूषण मुक्त जगह की तलाश में यहां पहुंचे थे। 3. इतिहास के मुताबिक बद्रीनाथ धाम को आदि शंकराचार्य ने 9वीं शताब्दी में स्थापित किया था। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी से बद्रीनाथ की मूर्ति निकाली थी। 4. इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। मंदिर के वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) में भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में बताया गया है। 5. भगवान बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है। इसके लिए तेल टिहरी राज परिवार से आता है। बद्रीनाथ टिहरी राज परिवार के आराध्य देव हैं। मंदिर की एक चाबी राज परिवार के पास भी होती है। 6. बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, वे रावल कहलाते हैं। केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदरी संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी गांव से रावल नियुक्त किए जाते हैं। इसके लिए इंटरव्यू होता है यानी शास्त्रार्थ किया जाता है। रावल आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं।

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