2 घंटे पहले
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बॉलीवुड में राजेश खन्ना को अक्सर पहला सुपरस्टार कहा जाता है, लेकिन उनसे पहले दिलीप कुमार और भारत भूषण जैसे दिग्गज कलाकारों ने इंडस्ट्री पर राज किया था। भारत भूषण एक साधारण इंसान थे, लेकिन 1950 के दशक में उन्होंने ‘बैजू बावरा’, ‘मिर्जा गालिब’ जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बना ली।
उनकी अदायगी और मासूमियत ने उन्हें उस दौर का रोमांटिक हीरो बना दिया, लेकिन फिल्म प्रोडक्शन में कुछ गलत फैसलों ने उनका करियर और जमा पूंजी दोनों खत्म कर दी। कहा तो यहां तक जाता है कि उन्होंने अपना बंगला, गाड़ियां और किताबें तक बेच दीं। आखिरकार, वे मुंबई के मलाड इलाके के एक छोटे से फ्लैट में रहने लगे। 1992 में जब उनका निधन हुआ, तो अंतिम संस्कार में सिर्फ सात-आठ लोग मौजूद थे।
अमिताभ ने ब्लॉग में जिक्र किया था
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत भूषण से जुड़ी एक घटना को अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी ब्लॉग में शेयर किया था। 2008 में एक ब्लॉग में उन्होंने लिखा था कि एक सुबह जब वे काम पर जा रहे थे, तब उन्होंने भारत भूषण को सांताक्रूज के एक बस स्टॉप पर अकेले खड़ा देखा। कोई उन्हें पहचान नहीं रहा था, कोई उनके पास नहीं आ रहा था। वो भीड़ में बस एक आम आदमी की तरह थे।
भारत भूषण को कार में बिठाना चाहते थे अमिताभ
बच्चन ने लिखा था कि उन्होंने उन्हें कार में बिठाने का सोचा, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए। उन्हें लगा कि कहीं वो उन्हें शर्मिंदा न कर दें। अमिताभ ने लिखा था, “लेकिन वो सीन मेरे दिल में रह गया है और शायद हमेशा रहेगा। ये किसी के भी साथ हो सकता है।” उन्होंने गुरु दत्त की फिल्म ‘कागज के फूल’ की पंक्तियों को याद करते हुए लिखा था— “वक्त ने किया क्या हसीन सितम, तुम रहे न तुम, हम रहे न हम…”
वहीं, पत्रकार अली पीटर जॉन ने भी भारत भूषण के उतार-चढ़ाव पर लिखा था। उनके मुताबिक, ‘बैजू बावरा फिल्म के लिए दिलीप कुमार और नरगिस पहली पसंद थे, लेकिन निजी कारणों से उन्होंने साथ काम करने से मना कर दिया। इसके बाद भारत भूषण को मौका मिला और फिल्म ने इतिहास रच दिया, लेकिन वक्त ने करवट बदली। स्टारडम खत्म हुआ। काम मिलना बंद हो गया। एक समय के हीरो को छोटे-मोटे रोल करने पड़े। उनकी मौत एक गुमनाम कलाकार की तरह हुई। भारत भूषण की कहानी सिर्फ एक अभिनेता की नहीं, बल्कि फिल्मी दुनिया की असलियत है — जहां चमकते सितारे भी कभी-कभी अंधेरे में खो जाते हैं।’
भारत भूषण का ऐसा रहा था करियर भारत भूषण का जन्म मेरठ में 1920 में हुआ। मां की मौत के बाद वे दादाजी के पास अलीगढ़ चले गए। पिता वकील बनाना चाहते थे, लेकिन भारत ने एक्टर बनने की ठानी। पहले कलकत्ता और फिर मुंबई पहुंचे भारत भूषण ने 1941 में किदार शर्मा की फिल्म ‘चित्रलेखा’ से अपने करियर की शुरुआत की। शुरुआत में उनकी फिल्मों को ज्यादा सफलता नहीं मिली। 1948 की ‘सुहागरात’ कुछ हद तक चली। 1952 में ‘बैजू बावरा’ सुपरहिट रही और उन्होंने बतौर हीरो पहचान बनाई। फिल्म का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ और नौशाद को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। उसी साल ‘मां’ और ‘आनंद मठ’ ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। 1953 में ‘लड़की’ फिल्म बड़ी हिट रही और साल की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। इस तरह भारत भूषण स्टार बन गए।
उन्होंने मधुबाला के साथ कई हिट फिल्में दीं। मधुबाला से शादी करना चाहते थे, लेकिन ऐसा न हो सका। उनकी शादी सरला से हुई, जिनका निधन डिलीवरी के दौरान हो गया। बाद में उन्होंने एक्ट्रेस रत्ना से शादी की।
बाद में छोटे-मोटे रोल करने पड़े 60 के दशक में उन्होंने कई बंगले, गाड़ियां और किताबें खरीदीं। भाई के कहने पर उन्होंने फिल्मों में पैसा लगाया। बसंत बहार और बरसात की रात हिट रहीं, लेकिन आगे के प्रोजेक्ट फ्लॉप हो गए। सब कुछ बिक गया। बुरे दौर में उन्हें जूनियर आर्टिस्ट के रोल तक करने पड़े। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “रोटी के लिए भी रोल करना पड़ा।” बेटी अपराजिता ने बताया था कि उनका अंतिम वक्त मुंबई के एक छोटे फ्लैट में बीता। उन्होंने कभी किसी से मदद नहीं मांगी।