यथार्थ सोसाइटी द्वारा प्रस्तुत दो प्रभावशाली नाटकों काला साया और अफ्फू ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से झकझोर कर रख दिया।
रवींद्र मंच पर आयोजित एक विशेष रंगमंचीय संध्या में यथार्थ सोसाइटी द्वारा प्रस्तुत दो प्रभावशाली नाटकों काला साया और अफ्फू ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से झकझोर कर रख दिया। इन नाटकों ने एक ओर अंधविश्वास पर तीखा व्यंग्य किया, तो दूसरी ओर एक पति-पत्नी के
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काला साया:अंधविश्वास पर तीखा प्रहार
नाटक काला साया ने राजस्थान के एक छोटे से गांव की पृष्ठभूमि में अंधविश्वास, लालच और अज्ञानता के दुष्परिणामों को व्यंग्यात्मक और हास्यपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया। लेखन और निर्देशन की कमान संभाली थी महबूब और ख़ुशी शर्मा ने, जबकि रोहिताश योगी सह-निर्देशक रहे।

दूसरा नाटक अफ्फू एक भावनात्मक और मानसिक रूप से गूढ़ यात्रा थी, जिसमें एक कर्तव्यनिष्ठ बेटे बासित और उसकी नवविवाहिता पत्नी साहीदा के जटिल संबंधों को दर्शाया गया।
भुंगड़मल नामक एक ईमानदार लेकिन परेशान कुम्हार और उसका परिवार—पत्नी पतोरी, बेटा कालू और दादी लक्षन देवी, जब एक रहस्यमय तांत्रिक बाबा किर्माड़ा के जादुई पंजे के चक्कर में फंसते हैं, तो उनका जीवन बर्बादी की कगार पर पहुंच जाता है। एक झूठी ‘जादू’ की लालसा, बेटे की खोई जान, और फिर उसका अचानक लौट आना दर्शाता है कि असली समृद्धि मेहनत, एकता और आत्मविश्वास में है।
नाटक में संदीप सिंह, राजीव बैरवा, महबूब, ख़ुशी शर्मा, सुमन सुहाग, धैर्या राना, अनिल कुमार, मो. दाऊद कुरैशी, महेश शर्मा, रितिक ललनी, रोहिताश योगी ने अभिनय किया।

नाटक काला साया ने राजस्थान के एक छोटे से गांव की पृष्ठभूमि में अंधविश्वास, लालच और अज्ञानता के दुष्परिणामों को व्यंग्यात्मक और हास्यपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया।
अफ्फू:रिश्तों की चुप्पी में छुपा दर्द
दूसरा नाटक अफ्फू एक भावनात्मक और मानसिक रूप से गूढ़ यात्रा थी, जिसमें एक कर्तव्यनिष्ठ बेटे बासित और उसकी नवविवाहिता पत्नी साहीदा के जटिल संबंधों को दर्शाया गया। नाटक के लेखक व निर्देशक सिकंदर खान और संदीप सिंह थे और सह-निर्देशक थीं धैर्या राना। नाटक अंतरराष्ट्रीय रंग युवा निर्देशक सिकंदर खान के मार्गदर्शन में तैयार हुआ।
बासित अपनी मां की इच्छा पर विवाह करता है, लेकिन उसकी पत्नी साहीदा शारीरिक और भावनात्मक रूप से उससे दूरी बनाए रखती है। एक रहस्य धीरे-धीरे उजागर होता है: साहीदा शादी से पहले गर्भवती थी और गुपचुप गर्भपात की गोलियां ले रही थी। जब बच्चा मृत अवस्था में जन्म लेता है, तो बासित की मां सदमे से मर जाती है। अंततः, बासित अपने जीवन की सबसे बड़ी चोट सहते हुए भी माफ़ करने का रास्ता चुनता है, यही अफ्फू की आत्मा है।
यह नाटक विवाह, स्त्री की स्वतंत्रता, सामाजिक नैतिकता और पुरुष की सहनशीलता के जटिल पहलुओं पर गहन दृष्टिपात करता है।