Apara Ekadashi on 23th May, achala ekadashi on Friday, significance of apara ekadashi in hindi, vishnu laxmi puja vidhi | अपरा एकादशी 23 मई को: जाने-अनजाने में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति दिलाता है अपरा एकादशी का व्रत, जानिए व्रत-पूजा की विधि

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6 घंटे पहले

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ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी और अचला एकादशी (शुक्रवार, 23 मई) कहते हैं। इस तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास करते हैं, भगवान का महालक्ष्मी के साथ अभिषेक किया जाता है। इस बार शुक्रवार को एकादशी होने से इस दिन शुक्र ग्रह की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। शुक्र ग्रह की पूजा से कुंडली के ग्रह दोषों का असर कम हो सकता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा बताते हैं, अपरा एकादशी वह व्रत है, जिसमें भक्त जाने-अनजाने में किए गए पापों के लिए भगवान से क्षमा मांगते हैं। इस दिन का व्रत और पूजन जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सफलता लाता है। ये व्रत मन को शांति प्रदान करने वाला माना जाता है।

ये है व्रत और पूजा की विधि

जो भक्त एकादशी व्रत करना चाहते हैं, उन्हें एक दिन पहले यानी दशमी (22 मई) की शाम से इसकी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। दशमी की शाम खाने में सात्विक आहार लें। सूर्यास्त के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें, ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें।

अगले दिन यानी एकादशी पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त से पहले जागें और स्नान आदि कामों के बाद उगते सूर्य को जल चढ़ाएं।

घर के मंदिर में सबसे पहले गणेश पूजा करें। इसके बाद भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा शुरू करें।

भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। पीले वस्त्र और हार-फूल से श्रृंगार करें। पूजन सामग्री चढ़ाएं।

माखन-मिश्री, मिठाई का भोग तुलसी के साथ लगाएं। धूप-दीप जलाएं, आरती करें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। भगवान के सामने एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। पूजा के बाद प्रसाद बांटें।

एकादशी व्रत में दिनभर निराहार रहना होता है, लेकिन जो लोग भूखे नहीं रह पाते हैं, वे फलाहार कर सकते हैं, दूध और फलों के रस का सेवन कर सकते हैं।

सुबह-शाम भगवान की पूजा करें। मंत्र जप और भगवान की कथाएं पढ़ें-सुनें। अगले दिन यानी द्वादशी की सुबह भगवान की पूजा करें, जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं, इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस तरह एकादशी व्रत पूजा होता है।

अचला एकादशी की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में महिध्वज नामक एक राजा थे। उनके छोटे भाई वज्रध्वज ने ईर्ष्या के कारण उनकी हत्या कर दी और शव को एक पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया। अकाल मृत्यु के कारण महिध्वज की आत्मा प्रेत बन गई और उस स्थान पर भय फैलाने लगी।

एक दिन वहां एक तपस्वी ऋषि पहुंचे। उन्होंने योगबल से यह सब जान लिया। उन्होंने अपरा एकादशी का व्रत रखा और उसकी द्वादशी तिथि पर व्रत का पुण्य राजा की आत्मा को अर्पित किया। इससे राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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