Inspirational story: The story of Lord Vishnu and Narad Muni, we should obey other’s advice, | प्रेरक कथा: भगवान विष्णु और नारद मुनि का प्रसंग: जब कोई सलाह दे तो उस व्यक्ति की भावना जरूर समझें, अहंकार में किसी की सलाह का अनादर न करें

Actionpunjab
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12 घंटे पहले

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एक बार नारद मुनि ने कामदेव को पराजित कर दिया था। वे संयम में थे, ध्यान में थे और उन पर कामदेव का असर नहीं हुआ। इस उपलब्धि ने नारद के भीतर अहंकार भर दिया।

अब वे जहां-जहां जाते, यह कहते कि “मैंने कामदेव को जीत लिया है, वह भी बिना क्रोध, बिना लोभ के।” इस आत्मप्रशंसा में वे कैलाश पर्वत जा पहुंचे और भगवान शिव से भी यही बात कही।

शिव जी मुस्कराए। उन्होंने कामदेव को भस्म किया था, लेकिन वे जानते थे कि भावनाओं की परीक्षा से अहंकार उत्पन्न हो सकता है। उन्होंने नारद से कहा, “आपने जो किया, वह सराहनीय है, ये बात आपने मुझे कही, ये भी ठीक है, लेकिन अब ये बात विष्णु जी से मत कहना।”

लेकिन हमारा स्वभाव होता है कि जिसे मना किया जाए, वही काम हम पहले करते हैं।

नारद मुनि शिव जी की बात को अनदेखा कर सीधे विष्णु जी के पास पहुंच गए और वही कहानी सुनाई। विष्णु जी सब समझ गए कि मेरे भक्त को अहंकार हो गया है। इसके बाद विष्णु जी ने एक लीला रची, जिससे नारद का घमंड चूर हो गया।

विष्णु जी के कारण नारद मुनि को मोह, अपमान, क्रोध और दुःख का अनुभव हुआ। तब उन्हें अपनी गलती समझ आई।

इस कथा का सबसे गहरा संदेश शिव जी की बातों में छिपा है। शिव जी ने नारद मुनि से कहा था-

“आप बार-बार कह रहे हैं कि आपने कामदेव को पराजित कर दिया है, लेकिन लोग तो आपके मुख से रामकथा सुनना चाहते हैं और आप कामकथा सुना रहे हैं। जो हमारा मूल धर्म है, कार्य, उत्तरदायित्व है, हमें उसी को निभाना चाहिए।”

कथा की सीख

  • अहंकार में अच्छी सलाह को अनदेखा न करें: जब कोई सलाह दे तो पहले यह देखें कि सलाह देने वाला कौन है और उसका उद्देश्य क्या है। कई बार हम समझते हैं कि सामने वाला हमारा बुरा चाहता है, जबकि वह नि:स्वार्थ भाव से हमें बचाना चाह रहा होता है।
  • अपने मूल कर्तव्य से विचलित न हों: हर व्यक्ति का एक मुख्य कार्य होता है। यदि वह उसे छोड़कर दूसरे क्षेत्र में चला जाए तो न केवल असफलता मिलती है, बल्कि अपमान भी झेलना पड़ सकता है। जैसा कि नारद मुनि के साथ हुआ। जब आप अपने कार्यक्षेत्र में प्रशंसा पाते हैं तो यह जरूरी है कि आप अपनी मूल पहचान से न भटके। आपकी उपलब्धियां दूसरों को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन आपको अपनी जिम्मेदारी और भूमिका से जुड़े रहना चाहिए।

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