हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस 12 साल से संगठन नहीं खड़ा कर पाई है। केवल प्रदेशाध्यक्ष और कार्यकारी प्रदेश अध्यक्षों के फार्मूलों से ही काम चलाया जा रहा है। जिसका नतीजा चुनावों में देखने को मिल चुका है। हाथ आई बाजी खिसकने के क
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हरियाणा कांग्रेस को फिर एक बार मजबूती से खड़ा करने के लिए राहुल ने इस बार बड़े चेहरों को चुना है, जो प्रदेश में आकर किसी के प्रभाव में न आएं। उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देकर भी नहीं भेजा गया, केवल एक-एक जिले की रिपोर्ट उन्हें सीधे राहुल गांधी तक पहुंचानी है। ताकि वहां पर जिला प्रधान का चुनाव उसी रिपोर्ट अनुसार हो सके। टिकट वितरण के दौरान जिस प्रकार ऑब्जर्वर के सामने हंगामे हर जिले में हुए थे, वो इस बार नहीं दिखाई देंगे। क्योंकि राहुल सख्ती के मूड में हैं।

कांग्रेस कमेटी द्वारा नियुक्त ऑब्जर्वर
सुपर पॉवर होंगे जिला प्रधान
गुजरात अधिवेशन के बाद राहुल गांधी ने जिस प्रकार से इतनी बड़ी संख्या में ऑर्ब्जवर लगाए हैं, उसके पीछे साफ संदेश है कि वे नहीं चाहते कि कोई मैनेज रिपोर्ट उन तक पहुंचे। कांग्रेस के मेहनती वर्करों को ही कमान मिलेगी, उन्हें बड़े नेताओं की छाया से बाहर निकाला जाएगा। क्योंकि नियुक्ति के समय ही स्पष्ट होगा कि वे किसी नेता की मेहरबानी से नहीं बल्कि उनकी कार्य की रिपोर्ट से सीधे केंद्र से नियुक्त हो रहे हैं। ऐसे में जिला प्रधान खुद को बड़े नेताओं की छाप से बच सकेंगे और उनके सामने काम करने का खुलकर अवसर।।
हाईकमान नहीं चाहता अब दबाव की राजनीति
प्रदेश में राहुल गांधी ने संगठन सृजन का फैसला ऐसे समय में लिया है, जब उनके पास यहां खोने के लिए कुछ नहीं है। क्योंकि लोकसभा चुनाव व विधानसभा अब 4 साल के बाद होने हैं। ऐसे में बड़े नेताओं की दबाव वाली राजनीति को खत्म करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कांग्रेस के असली मेहनती वर्करों का संगठन खड़ा हो, जिससे वे उल्टा प्रदेश के नेताओं पर दबाव बना सकें। यहां के नेता सृजन अभियान में अपनी मनमानी न कर सकें, लिए नेता प्रतिपक्ष का फैसला भी अभी लटका रखा है।
12 साल में 3 अध्यक्ष नहीं खड़ा कर पाए संगठन
कांग्रेस साल 2014 में सत्ता से बाहर हुई तो संगठन की कमान अशोक तंवर के पास आई। वे 14 फरवरी 2014 से 4 सितंबर 2019 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे। 5 साल 202 दिन अध्यक्ष रहने के बावजूद जिलाें में संगठन नहीं खड़ा कर पाए। उसके बाद सिरसा सांसद कुमारी शैलजा को कमान मिली। वे 4 सितंबर 2019 से 27 अप्रैल 2022 तक 2 साल 235 दिन अध्यक्ष रही। इसके बाद उदयभान सिंह को कमान सौंपी 27 अप्रैल 2022 से अब तक हैं। उन्होंने 3 साल 26 दिन का कार्यकाल हो चुका है। लेकिन कोई भी अध्यक्ष संगठन नहीं खड़ा कर पाया।
कांग्रेस संगठन नहीं होने के 3 बड़े कारण 1. कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा में साढे 9 साल मुख्यमंत्री रहे, तो सत्ता का नया केंद्र बन गए। 2014 विधानसभा चुनाव की हार के बाद यहां की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूमती रही। अशोक तंवर ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन पर संगठन नहीं बनाने के आरोप लगाए। हालांकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दखल हर फैसले में दिखाई भी दिया है।
2. कांग्रेस जब 2014 में सत्ता से बाहर होते ही गतिविधियां कम हो गई। 2014 में केवल 9 सीटें आई थी। जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल पूरी तरह से टूट गया। पब्लिक प्लेटफार्म पर आकर किसी बड़े नेता ने प्रयास नहीं किया। किसी नेता ने संगठन से जुड़े रहने की जरूरत ही नहीं समझी।
3. कांग्रेस के जो भी प्रभारी हरियाणा में आए हैं, उन पर कांग्रेस के एक धड़े के प्रभाव में आने के आरोप लगते रहे हैं। चाहे वो राज्यसभा चुनाव का स्याही कांड हो या फिर अजय माकन की राज्यसभा चुनाव में हार। सभी मौकों पर प्रभारी को एक धड़े के दबाव में कार्य करने वाला बताया जाता रहा है। ऐसे में यहां पर संगठन खड़ा करने में प्रभारी का भी कभी सक्रिय योगदान नहीं दिखा।
गुजरात अधिवेशन में हुआ था फैसला
जिलों में संगठन सृजन के लिए गुजरात अधिवेशन में फैसला हुआ था। संगठन सृजन के फैसले अनुसार ही यहां पर ऑब्जर्वर भेजे गए हैं। पहले कहा जाता था कि कांग्रेस अधिवेशन में चर्चाएं तो अच्छी होती हैं लेकिन उन पर काम नहीं होता। लेकिन अधिवेशन के एक माह में ही फैसले पर एक्शन होता दिख रहा है। देखना है कि अब नए ऑब्जर्वर संगइन सृजन कार्य को कहां तक विस्तार दे पाते हैं।