3 घंटे पहले
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महाभारत में पांडवों ने जुए में अपना राज्य और सबकुछ खो दिया था। इसके बाद पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा। कौरव और पांडवों के बीच ये तय हुआ था कि जब वे वनवास और अज्ञातवास पूरा कर लेंगे, तब कौरव उन्हें उनका राज्य वापस लौटा देंगे। जब पांडव 13 वर्षों के बाद कौरवों के पास राज्य मांगने पहुंचे तो दुर्योधन ने उन्हें राज्य लौटाने से मना कर दिया। बहुत समझाने के बाद भी दुर्योधन ने पांडवों को उनका हक नहीं दिया। अब पांडवों के पास युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
युद्ध को लेकर पांडवों में संदेह था। उन्होंने सोचा कि हम सिर्फ पांच हैं और कौरवों के पास विशाल सेना है। उनके साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे महायोद्धा भी हैं, इतने लोगों से हम कैसे जीत पाएंगे?
तब श्रीकृष्ण ने पांडवों जीवन का एक बहुत बड़ा मंत्र दिया, भगवान ने कहा कि ये युद्ध हिंसा नहीं, बल्कि सत्य की रक्षा का संघर्ष है। कौरवों की संख्या भले अधिक है, पर उनके बीच एकता नहीं है। उनके मन बंटे हुए हैं। जबकि तुम पांच हो, लेकिन तुम्हारे मन एक हैं। एकता सबसे बड़ी शक्ति है। यही एकता तुम्हारी जीत का आधार बनेगी।
बाद में श्रीकृष्ण की ये बात सच साबित हो गई और पांडवों ने कौरवों को पराजित कर दिया।
प्रसंग की सीख
इस प्रसंग से एक बहुत महत्वपूर्ण जीवन प्रबंधन की सीख मिलती है – संख्या नहीं, एकता मायने रखती है। कई लोग सोचते हैं कि हमारे पास संसाधन कम हैं, लोग कम हैं, तो हम बड़ा लक्ष्य कैसे हासिल कर पाएंगे? लेकिन अगर टीम में एकजुटता है, परस्पर विश्वास और सहयोग की भावना है तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।
- टीम में संतुलन बनाए रखें – जब टीम के सदस्य एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं तो लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो जाता है। अगर संवाद से मतभेद सुलझा लिए जाएं तो वे विकास की राह में बाधा नहीं बनते हैं। नेतृत्व का असली अर्थ यही है कि सबको साथ लेकर चलना, जैसे श्रीकृष्ण ने किया। रणनीति और नैतिकता का संतुलन ही सफलता की कुंजी है।
- घर-परिवार के लिए जरूरी है एकता – मतभेद हर घर में होते हैं, लेकिन उन्हें बढ़ाना नहीं, सुलझाना जरूरी होता है। परिवार में अगर सभी सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें तो संकट के समय भी घर मजबूत रहता है। एकजुट परिवार हर सामाजिक और आर्थिक कठिनाई का समाधान निकाल सकता है।
पांडवों की जीत हमें सिखाती है कि एकजुटता, नैतिकता और सत्य की राह पर चलना ही सफलता का मार्ग है। चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, अगर हमारे विचार एक हैं, उद्देश्य स्पष्ट हैं और मन में विश्वास है तो छोटी टीम भी बड़ी जीत हासिल कर सकती है। जब लोग एकमत होते हैं, तब असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। एकता ही वह शक्ति है, जो एक सामान्य समूह को विजेता बना देती है।
एकता बनाए रखने के लिए 7 बातें ध्यान रखें
- संवाद बनाए रखें – किसी भी टीम या परिवार में मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें सुलझाने का एकमात्र तरीका है खुला और ईमानदार संवाद। चुप्पी गलतफहमी को जन्म देती है। बातचीत जारी रखें।
- साझा लक्ष्य बनाएं – जब सभी लोग एक ही दिशा में सोचते, काम करते हैं और आगे बढ़ते हैं तो मतभेदों के बावजूद सफलता मिलती है। टीम या परिवार में एक साझा लक्ष्य तय करना चाहिए।
- एक-दूसरे की ताकत पहचानें – पांडवों में हर किसी की एक अलग खासियत थी और वे एक-दूसरे की ताकत को पहचानते थे और उसका सम्मान करते थे। यही टीम भावना की असली पहचान है।
- मतभेद चलेंगे, लेकिन मनभेद न होने दें – मतभेद विचारों में होते हैं, मनभेद भावनाओं में। एक-दूसरे की बात सुनना और समझना जरूरी है, मतभेद दूर होंगे तो मनभेद नहीं होंगे। मतभेद चल सकते हैं, लेकिन मनभेद न होने दें। सभी के मन जुड़े रहेंगे तो मुश्किलें आसानी से दूर की जा सकती हैं।
- अहंकार न करें – अहंकार टीम को तोड़ता है, विनम्रता उसे जोड़ती है। घर-परिवार में अहंकार से बचें, एक-दूसरे के लिए विनम्र रहें। तभी परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
- सही मार्गदर्शक चुनें – घर या टीम में कोई न कोई सही मार्गदर्शक अवश्य होना चाहिए। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में पांडवों ने कौरवों को पराजित कर दिया था। हमें भी किसी योग्य व्यक्ति को अपना मार्गदर्शक बनाना चाहिए।
- मुसीबत में एकजुट रहें – जब मुश्किल समय आता है, तब एक-दूसरे का साथ न छोड़ें। पांडवों ने वनवास और संकट के समय भी एकता नहीं छोड़ी। इसी एकता की वजह से पांडवों ने हर मुसीबत को दूर किया और महाभारत युद्ध जीते।