11 घंटे पहले
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पौराणिक कथाएं केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं हैं, बल्कि इन कथाओं में सुखी जीवन के सूत्र भी रहते हैं। इन सूत्रों को अपनाने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। यहां जानिए भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की ऐसी कहानी जिसमें बताया गया है कि कैसे गरुड़ को भगवान विष्णु की कृपा मिली।
कहानी
पक्षीराज गरुड़, जो भगवान विष्णु के वाहन माने जाते हैं, वे अपनी मां विनता की सौतन कद्रू और उनके नागपुत्रों की सेवा करते थे। एक दिन गरुड़ ने अपनी और माता की इस दासता से मुक्ति के लिए कद्रू से उपाय पूछा तो कद्रू ने कहा कि तुम मेरे लिए अमृत ले लाओ, तभी तुम दोनों को दासता से मुक्ति मिलेगी।
गरुड़ दासता से मुक्ति होना चाहते थे, वे अमृत लेने के लिए स्वर्ग पहुंच गए। उन्होंने देवताओं से युद्ध करके अमृत कलश हासिल भी कर लिया। जब वे अमृत कलश लेकर कद्रू के पास जा रहे थे, उस समय गरुड़ की भगवान विष्णु से भेंट हुई। विष्णु जी ने उनसे पूछा कि तुम अमृत लेकर कहां जा रहे हो?
गरुड़ ने उत्तर दिया कि मैंने अपनी सौतेली मां को वचन दिया है कि मैं उन्हें अमृत लाकर दूंगा। ये उनकी संपत्ति है।
भगवान विष्णु ने कहा कि क्या तुम जानते हो? अगर तुम इसे पी लो तो अमर हो जाओगे। फिर कुछ भी कर सकते हो।
गरुड़ बोले कि इस समय मैं मेरी सौतेली माता की आज्ञा का पालन कर रहा हूं। मैंने उनसे कहा है कि मैं अमृत लेकर आऊंगा। इसके बाद वे मुझे दासता से मुक्त करेंगी। इस समय ये उनकी संपत्ति है और मैं किसी दूसरे की संपत्ति में बेईमानी नहीं कर सकता, भले ही ये अमृत है, फिर भी मैं इसका पान नहीं कर सकता हूं।
ये बात सुनकर भगवान विष्णु गरुड़ से बहुत प्रसन्न हुए। भगवान ने कहा कि गरुड़, तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा का मैं सम्मान करता हूं। तुम्हें बहुत ऊंचा स्थान मिलेगा और तुम बिना अमृत के भी अमर हो जाओगे। ये ईमानदारी का फल है। इसके बाद गरुड़ ने कद्रू को अमृत कलश सौंप दिया और उन्हें दासता से मुक्ति मिल गई। कुछ समय बाद भगवान विष्णु ने गरुड़ को अपना वाहन नियुक्त कर दिया था।
कथा से सीखें ये बातें…
- अपने वचन पर टिके रहें
गरुड़ ने अपनी मां को और खुद को दासता से मुक्त कराने का संकल्प लिया था, ये आसान नहीं थी। अपने वचन की पूर्ति के लिए वे अमृत कलश ले आए, लेकिन कलश में से एक भी बूंद अमृत की नहीं पी। इसी ईमानदारी की वजह से उन्हें भगवान विष्णु की कृपा मिली।
- ईमानदारी का फल हमेशा मिलता है
गरुड़ के पास अमृत था। वे स्वयं पीकर अमर हो सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। ईमानदारी ने उन्हें ऐसा सम्मान और वरदान दिलाया, जो अमृत से भी बढ़कर था। इसका संदेश ये है कि सही मार्ग भले ही कठिन हो, लेकिन वह स्थायी और सच्चे फल देता है।
- दूसरों की संपत्ति का भी सम्मान करें
जो वस्तु हमारी नहीं है, उसका हमें निजी लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते। दूसरों की संपत्ति का भी सम्मान करें।