Aamir Khan Film Sitaare Zameen Par Wins Hearts Specially Abled Rishab Emotional Experience Touches Many | ‘फिल्म नहीं एहसास है सितारे जमीन पर’: आमिर खान की तारीफ में परिवार बोला- हमें नया नजरिया दिया, अब दिव्यांगता शर्म नहीं, गर्व की बात है

Actionpunjab
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2 घंटे पहले

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आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ 20 जून को रिलीज हुई है। इस फिल्म के जरिए उन्होंने इस बार एक संवेदनशील और जटिल विषय डाउन सिंड्रोम और न्यूरो डाइवर्जेंस पर प्रकाश डाला है, जिन्हें आमतौर पर गलत समझ लिया जाता है।

हाल ही में ऋषभ नाम का एक युवक, जिसे सेरेब्रल पाल्सी है और कई मुश्किलों का सामना करना रहा है। उसने थिएटर में यह फिल्म देखी। उसकी प्रतिक्रिया दिल को छूने वाली थी। जब फिल्म खत्म हुई और लोग निकलने लगे तब ऋषभ अपनी सीट पर चुपचाप बैठा रहा, स्क्रीन को ताकते हुए उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। इस दौरान ऋषभ के छोटे भाई ने दैनिक भास्कर के साथ आमिर खान के लिए एक दिल छू लेने वाला संदेश शेयर किया।

फिल्म में डाउन सिंड्रोम और न्यूरोडाइवर्जेंस जैसी बीमारी के बारे में दिखाया गया है।

फिल्म में डाउन सिंड्रोम और न्यूरोडाइवर्जेंस जैसी बीमारी के बारे में दिखाया गया है।

आमिर खान के लिए भेजे गए पत्र पर एक नजर…

आदरणीय आमिर सर और एकेपी टीम,

इस शनिवार जब थिएटर में फिल्म सितारे जमीन पर खत्म हुई, तो हॉल में धीरे-धीरे लाइट्स जलने लगीं और लोग बाहर निकलने लगे। कुछ लोग आपस में बातें कर रहे थे, तो कुछ अपने फोन में बिजी थे। सभी अपने-अपने घर लौटने की तैयारी में थे।

लेकिन हॉल की पीछे से तीसरी सीट पर हम शांत बैठे रहे।

मेरा बड़ा भाई, जो विशेष रूप से दिव्यांग है (उसे सेरेब्रल पाल्सी है और वह मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम है), बस स्क्रीन को एकटक देखता रहा। वह पूरी तरह से शांत था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे और वह सिर झुकाए बैठा था।

और फिर अचानक उसने मेरी तरफ देखा और कहा

‘यह बिल्कुल हम जैसे हैं, ना?’

ऐसा लग रहा था कि आपने हमारे जीवन का एक दरवाजा खोल दिया था और पूरे देश को अंदर आने का आमंत्रण दिया।

पर्दे पर वास्तविकता को दर्शाने की शक्ति

पिछले 33 सालों से मेरा भाई ऐसी दुनिया में जी रहा है, जो उसे पूरी तरह से अपना नहीं पाई। फिल्मों में उसके जैसे लोगों को अक्सर दो ही तरह से दिखाया जाता है। पहला दया के पात्र के रूप में या बहुत बड़ी प्रेरणा देने वाले के रूप में। लेकिन कभी उन्हें एक सामान्य इंसान के रूप में नहीं दिखाया जाता, जिनके अपने सपने, अपने डर और सिर्फ साधारण सी इच्छा होती है।

फिर आपकी फिल्म आई।

155 मिनट में आपने वह कर दिखाया जो दशकों की जागरूकता अभियानों में नहीं हो पाया। आपने दिव्यांगता को एक बीमारी के रूप में नहीं, बल्कि दुनिया को महसूस करने के एक अलग तरीके से पेश किया। आपने हमारे जैसे परिवारों को न तो बहादुर और न ही टूटे हुए बताया, बल्कि सामान्य इंसान के रूप में पेश किया जो असाधारण प्यार के साथ जीवन जी रहे हैं।

पूरी फिल्म एकदम कमाल की थी। हर एक फ्रेम और हर इमोशन असली लग रहे थे। जैसे यह सिर्फ एक्टिंग नहीं बल्कि इसे जिया गया हो। लेकिन फिल्म में ऐसे पांच सीन्स थे, जिन्होंने हमें तोड़ दिया, बिना शब्द के छोड़ दिया और इतनी गहराई से छू लिया कि बताना मुश्किल है।

1. जब आपकी फिल्म में कर्तार पाजी ने कहा,

मुश्किलें तो होती हैं इन परिवारों में, लेकिन ये घर कभी बूढ़े नहीं होते, क्योंकि ये बच्चे हमेशा अपना बचपना भर देते हैं। जान बस्ती है इनके परिवार की इनमें।

वह लाइन हमारे लिए सिर्फ एक डायलॉग नहीं था, बल्कि हमारी पहचान थी। उस एक पल में आपने हमारे दशकों के जीवन को समेट लिया। क्योंकि वही हमारा घर है। वही है जो मेरा भाई हमारे जीवन में लाता है।

एक मासूमियत, एक खुशी, एक बचपन जैसा जादू जो कभी कम नहीं होता। हमारे बीच में कई लोग ऐसे मौजूद हैं, जो इसे समझ नहीं पाते और बोझ सकते हैं। लेकिन हमारे लिए सबसे बड़ी खुशियों में से एक है। हम बस जी नहीं रहे हैं, हम खिल रहे हैं। एक ऐसी खुशहाल जिंदगी में, जिसे शायद ज्यादातर लोग समझ भी न पाएं।

2. इस फिल्म में आपकी मां ने कहा, ‘किसी न किसी को तो लड़ना पड़ता है पूरी दुनिया से’। इस डायलॉग ने मुझे अंदर से तोड़ दिया था।

क्योंकि मैंने यह लड़ाई करीब से देखी है। अपने माता-पिता की चुपचाप मजबूत लड़ाई। 33 सालों से वे भाईया के साथ खड़े हैं। उसकी जरूरतों, उसकी इज्जत और उसके अधिकार के लिए लड़ रहे हैं।

उन्हें अपने ही परिवार में भी उस प्यार का बचाव करना पड़ा, जब ज्यादातर लोग कहते थे- ‘तुम लोग पागल हो जो इसे ठीक करने में इतना पैसा और समय बर्बाद कर रहे हो।’ लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने फैसले के बजाय प्यार चुना। निराशा के बजाय उम्मीद को चुना। और उस स्क्रीन पर उस पल में आपने एक सच्चाई को पकड़ा जो ज्यादातर लोग देख ही नहीं पाते। ऐसा लगा जैसे आप हमारी ही कहानी बयां की हों।

3. फिल्म में आपका किरदार वाकई प्रेरणादायक था। जिस तरह कोच बनकर आपने यह समझाने की कोशिश की कि मेरे भाई जैसे बच्चों को समझने और उनके साथ सही तरीके से काम करने के लिए क्या जरूरी है। आपने बिल्कुल सही बात को छुआ।

बहुत कम बार ऐसा देखने को मिलता है कि कोई इतने साफ और संवेदनशील तरीके से यह बता पाए कि ऐसे लोगों का साथ देने के लिए दबाव नहीं, बल्कि धैर्य चाहिए। उन्हें ठीक करने की कोशिश नहीं, बल्कि उन्हें स्वीकार करने की जरूरत होती है।

4. जब कर्तार पाजी ने उस टिप्पणी का जवाब दिया, जिसमें कहा गया था कि दिव्यांग लोग नॉर्मल नहीं होते, तो उन्होंने न तो कभी आवाज उठाई और न ही बहस की। उन्होंने बड़ी स्पष्टता और सच्चाई के साथ नॉर्मल की परिभाषा ही बदल दी। सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है।

उस एक लाइन ने सालों से बनी सामाजिक धारणाओं को कुछ ही शब्दों में तोड़ दिया। इसने हमारे जैसे परिवारों को वह आवाज दी, जिसकी हमें लंबे समय से तलाश थी।

एक ऐसा तरीका जिससे हम सिर ऊंचा रख सकें, बार-बार खुद को समझाने की जरूरत न पड़े।और एक ऐसा रास्ता जिससे हम फैसलों का जवाब सफाई से नहीं, बल्कि शांति और सच्चाई से दे सकें।

एक ऐसा जवाब, जो फैसलों या आलोचनाओं का बचाव नहीं करता, बल्कि शांतिपूर्ण और सच्चाई से भरा होता है। इसने हमें याद दिलाया कि जिसे दुनिया नॉर्मल कहती है, वह अक्सर केवल एक छोटी और डर से भरी सोच होती है, जिससे लोग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। और हर किसी को, चाहे वह मेरे भाई जैसे हों, अपनी असली जिंदगी में स्वीकार किया जाना चाहिए, किसी और की तुलना में नहीं। मुझे नहीं पता कि यह लाइन कितने दिलों और दिमाग को बदल पाएगी। लेकिन मैं दिल से आभारी हूं कि यह बात 140 करोड़ लोगों के सामने, बिना किसी माफी के कही गई।

5. जो बात हमें सबसे ज्यादा छू गई, वह यह थी कि फिल्म ने शांत और गहरे ढंग से दिखाया कि विशेष जरूरत वाले बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। एक ऐसी दुनिया में जो अक्सर स्वार्थी और लेन-देन वाली लगती है, ये बच्चे बिना शर्त प्यार करते हैं, बिना हिसाब-किताब के भरोसा करते हैं और बिना किसी इरादा के जीते हैं। फिल्म ने हमें याद दिलाया कि जबकि समाज इन्हें सिखाने या ठीक करने में लगा रहता है, असल में सबसे ज्यादा हमें ही दया, उपस्थित रहने और असली मानवता का मतलब समझना है।

आपको एक बात पता नहीं है। 28 साल पहले एक छोटा लड़का आपकी शूटिंग पर आपसे मिला था। आप उससे बहुत प्यार और दयालुता से मिले थे। आपने उसकी फोटो खींची और एक खास पल साझा किया। वह लड़का आज भी उस याद को बड़े प्यार से संजोए हुए है।

इस शनिवार, वही लड़का अब एक बड़ा आदमी बनकर फिर से आपसे मिला। हां सीधे तौर पर तो नहीं, बल्कि आपकी कला के जरिए। और ठीक 28 साल पहले की तरह, आपने उसे फिर से खास महसूस कराया, उसे देखा और समझा। उस दिन की वह फोटो हमारे लिविंग रूम में रखी है। कभी-कभी मैं उसे उस फोटो को देखते हुए मुस्कुराते हुए देखता हूं। एक ऐसी याद जो देश के सबसे बड़े सितारों में से एक की दयालुता की मिसाल है।

हम आपके घर और ऑफिस के बहुत करीब, बांद्रा में रहते हैं। इतना करीब कि मेरा भाई अक्सर आपकी कार गुजरते हुए देखता है और हर बार उसकी आंखों में एक छोटी सी खुशी की चमक होती है।

इस शुक्रवार, 27 तारीख को वह 33 साल का हो जाएगा। आपकी मेहनत और काम ने उसे जो खुशी और सम्मान दिया है, उसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते। लेकिन अगर उसे आपसे थोड़ी देर भी मिलने का मौका मिले, तो यह जन्मदिन उसके लिए सच में यादगार बन जाएगा।

सालों से जो उसे आपसे सम्मान और लगाव है, न सिर्फ एक अभिनेता के रूप में, बल्कि एक इंसान के तौर पर उसके लिए यह एक सपने के सच होने जैसा होगा।

फिल्म के जरिए आपने सच दिखाया

आपकी फिल्म देखने के बाद लोग भिन्नता को स्वीकार ही नहीं करेंगे, बल्कि उसका जश्न मनाएंगे। वे दिव्यांगता को कमजोरी नहीं, बल्कि एक अनोखी ताकत समझेंगे। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, कहानी के जरिए देश को बदलने का काम है।

प्रभाव की लहर

इस समय पूरे भारत के घरों में आपकी फिल्म की चर्चा हो रही है। माता-पिता अब अपने दिव्यांग बच्चों को एक नए नजरिए से देखने लगे हैं। भाई-बहन उन भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं। शिक्षक अपने पढ़ाने के तरीकों पर सोच रहे हैं। यहां तक समाज अपनी गलत सोच से लड़ रहा है।

आपने एक ऐसा काम किया है जो दिखने में तो मनोरंजन है, लेकिन असल में एक बड़ी मुहिम है।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। भगवान आपको और पूरी टीम को आशीर्वाद दें, जो आपने दुनिया को इतनी अच्छी बातें दी हैं।

बहुत आभार, ऋषभ का भाई

मुझे नहीं पता कि ये संदेश आमिर सर तक पहुंचेगा या नहीं, लेकिन मैं कोशिश कर रहा हूं कि कुछ अच्छे लोग इसे उनके पास पहुंचा सकें। फिर भी, मैं उनसे हमेशा दिल से आभारी रहूंगा।

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मूवी रिव्यू- सितारे जमीन पर:डाउन सिंड्रोम की ओर बेहतरीन एक्टिंग और डायलॉग से ध्यान खींचती है आमिर खान की यह फिल्म

कुछ साल पहले ‘तारे जमीन पर’ ने भारतीय सिनेमा में ऐसी छाप छोड़ी थी, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। यह दिल छू लेने वाली पहल थी, जिसने डिस्लेक्सिया जैसे विषय को मुख्यधारा की फिल्म में उठाकर उस पर बहस शुरू की थी। पूरी खबर पढ़ें..

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