7 घंटे पहले
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आज आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि का चौथा दिन है। देवी पूजा का ये उत्सव 4 जुलाई तक चलेगा। इस बार तिथियों की घट-बढ़ न होने से ये नवरात्रि पूरे नौ दिन की है। गुप्त नवरात्रि में तंत्र-मंत्र से जुड़े लोग दस महाविद्याओं को प्रसन्न करने के लिए गुप्त साधनाएं करते हैं। सामान्य लोग इन दिनों में देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा करते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, गुप्त नवरात्रि में पूजा-पाठ और मंत्र जप के साथ ही मेडिटेशन भी करना चाहिए। अभी ऋतु परिवर्तन का समय है, गर्मी खत्म हुई है और बारिश शुरू हो गई है, ऐसे समय में खान-पान और जीवनशैली में जरूरी परिवर्तन करना चाहिए, ताकि हम मौसमी बीमारियों से बचे रहें। जानिए गुप्त नवरात्रि में कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
देवी पूजा की सरल स्टेप्स
- घर के मंदिर में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। गणेश प्रतिमा पर जल, दूध, पंचामृत चढ़ाएं। वस्त्र, हार-फूल अर्पित करें। फल, चावल, दूर्वा चढ़ाएं। धूप-दीप जलाएं। गणेश पूजा के बाद देवी पूजन करें।
- माता दुर्गा का जल, पंचामृत और फिर जल से अभिषेक करें। देवी को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण, हार चढ़ाएं। इत्र अर्पित करें। कुमकुम से तिलक लगाएं।
- हार-फूल से देवी का श्रृंगार करें। धूप और दीप जलाएं। लाल फूल अर्पित करें। चावल चढ़ाएं। नारियल अर्पित करें। भोग लगाएं। आरती करें।
- आरती के बाद परिक्रमा करें। माता दुर्गा की पूजा में दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र का जप करें। पूजा में हुई जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा मांगे। पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें।
पूजा के बाद मंत्र जप करते हुए करें मेडिटेशन
- देवी पूजा के बाद मंत्र जप करते मेडिटेशन करना चाहिए। ऐसा करने से धर्म लाभ के साथ ही मन को शांति मिलती है। मेडिटेशन के लिए किसी शांत और पवित्र जगह पर आसन बिछाकर पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं।
- कमर सीधी रखें, आंखें बंद करें और हाथों को ध्यान की मुद्रा में रखें। अपना पूरा ध्यान दोनों आंखों के बीच आज्ञा चक्र पर लगाएं। ध्यान करते समय हमें विचारों से बचना चाहिए।
- ध्यान करते समय में मन को स्थिर रखना चाहिए, इधर-उधर की बातें सोचने से बचना चाहिए। ध्यान करते समय देवी मंत्र का जप करें। अपनी सुविधा के अनुसान मेडिटेशन का समय तय कर सकते हैं।
एक साल में चार बार आती है नवरात्रि
- हिन्दी पंचांग में एक साल में चार बार नवरात्रि आती है। पहली चैत्र मास में, दूसरी आषाढ़ में, तीसरी आश्विन में और चौथी माघ मास में। माघ और आषाढ़ माह की नवरात्रि गुप्त रहती है।
- चैत्र और आश्विन मास की नवरात्रि को प्रकट नवरात्रि कहते हैं। नवरात्रि का संबंध ऋतुओं से है। जब दो ऋतुओं का संधिकाल रहता है, उस समय देवी पूजा का ये पर्व मनाया जाता है।
- संधिकाल यानी एक ऋतु के खत्म होने का और दूसरी ऋतु के शुरू होने का समय। चैत्र मास की नवरात्रि के समय बसंत ऋतु खत्म होती है और ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है।
- आषाढ़ मास की नवरात्रि के समय ग्रीष्म ऋतु खत्म होती है और वर्षा ऋतु शुरू होती है। आश्विन नवरात्रि के समय वर्षा ऋतु खत्म होती है और शीत ऋतु शुरू होती है। माघ मास की नवरात्रि के समय शीत ऋतु खत्म होती है और बसंत ऋतु शुरू होती है।