8 घंटे पहले
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गुरुवार, 10 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा है। द्वापर युग में आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसी वजह से ये तिथि गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। ये गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पर्व है। गुरु के ज्ञान की वजह से हम जीवन में सफलता हासिल करते हैं, इस दिन गुरु की पूजा करनी चाहिए। उनका मूल नाम कृष्णद्वैपायन था।
महर्षि वेदव्यास चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का संपादन किया था। वेदव्यास ने सभी पुराणों की रचना की। वेदव्यास” कहा गया। वेदों का सार ब्रह्मसूत्र भी उन्होंने इसी दिन रचा था। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत और फिर श्रीमद्भागवत कथा की भी रचना की है।
भगवान विष्णु के अवतार हैं महर्षि वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। वे अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं यानी वे हमेशा जीवित रहेंगे और कभी बूढ़े भी नहीं होंगे। वेदव्यास हर युग में उपस्थित रहते हैं। इनके पिता महर्षि पाराशर और माता सत्यवती थीं। एक द्वीप पर तपस्या करने से इनका रंग श्याम हो गया। इस कारण इनका नाम कृष्णद्वैपायन पड़ा।
गुरु का ध्यान करके शुरू करना चाहिए बड़े काम
गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। इस दिन गुरु की पूजा करनी चाहिए, लेकिन अगर हम गुरु से साक्षात् नहीं मिल पा रहे हैं तो गुरु का ध्यान करते हुए भी पूजा कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार गुरु की मानसिक पूजा का भी की जा सकती है। रामायण में जब भगवान राम सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाने जा रहे थे, तब उन्होंने पहले मन ही मन अपने गुरु का ध्यान किया था। इसी तरह हम भी जब कोई बड़ा काम शुरू करते हैं तो अपने गुरु का ध्यान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से काम में सफलता मिलती है।
ये थे वेदव्यास के शिष्य
महर्षि वेदव्यास के प्रमुख शिष्यों में पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तु मुनि और रोमहर्षण जैसे महान ऋषि थे। उनके ज्ञान और तप से ही पांडवों के पिता पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ था। यह वेदव्यास की तप शक्ति और दिव्य कृपा का ही परिणाम था।
गांधारी को दिया था सौ पुत्रों का वरदान
महाभारत में जब महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए, तब गांधारी ने उनकी सेवा की। प्रसन्न होकर उन्होंने गांधारी को सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया। गर्भवती होने पर गांधारी के गर्भ से मांस का एक पिंड निकला। वेदव्यास ने इस पिंड को सौ टुकड़ों में बांटा और सौ घी से भरे कुंडों में रखवा दिया। कुछ समय बाद उन्हीं कुंडों से गांधारी के सौ पुत्र उत्पन्न हुए, जो कौरव कहलाए।