कानपुर मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल की ओपीडी में भीड़।
टीबी मरीजों के इलाज में चलने वाली दवाओं से आंखों की रोशनी जाने का खतरा ज्यादा रहता है। ये एक ऐसी समस्या है जो कि लाइलाज हैं, लेकिन गणेश शंकर मेडिकल कॉलेज कानपुर के नेत्र रोग विभाग के डॉ. परवेज खान ने इसका इलाज खोज लिया हैं। दवा है कि इसका इलाज अभी पू
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हर महीने आते हैं 30 से 35 मरीज
कानपुर मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज खान ने बताया, जो मरीज टीबी की बीमारी से पीड़ित होते थे, उन्हें ‘एथेमब्युटोल’ दवा देना जरूरी होता था, लेकिन यह दवा कहीं ना कहीं उन्हें काफी नुकसान पहुंचा रही थी।

नेत्र रोग विभाग की ओपीडी में मरीज का परीक्षण करती डॉक्टर।
ओपीडी में रोजाना एक से दो मरीज ऐसे जरूर आते हैं। एक महीने में लगभग 30 से 35 मरीज का आना आम बात है, तो ऐसे मरीजों के विजन को कैसे वापस लाएं इसको लेकर पिछले 7 सालों से स्टडी की।
पेंटॉक्सिफाइलाइन दवा ने किया असर
डॉ. परवेज खान के नेतृत्व में काम कर रही डॉ. इंदु यादव ने इस रिसर्च को आगे बढ़ाया। उन्होंने कई तरह के मरीजों को लिया। इसके बाद उन पर अलग-अलग दवा का प्रयोग किया, लेकिन पेंटॉक्सीफाइलाइन ने जो असर दिखाया वह काफी अच्छा साबित हुआ। पिछले 1 महीने के अंदर 30 मरीजों की आंखों की रोशनी वापस आ गई है। लगभग 80% विजन मरीजों का लौट आया है।

डॉ. परवेज खान से परामर्श लेते मरीज।
पूरे देश में कहीं नहीं था इसका इलाज
डॉ. परवेज खान ने दावा किया है, इस बीमारी का अभी तक पूरे देश में कोई भी इलाज नहीं था, क्योंकि जब आंखों की नसें सूख जाती थीं तो उस पर दवा का असर भी खत्म हो जाता था, लेकिन यह पेंटोक्सिफाइलाइन दवा बहुत ही सस्ती है और बहुत ही पुरानी दवा है।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध
ये शोध यूरोपियन सोसाइटी ऑफ मेडिसिन के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है। डॉ. परवेज खान ने बताया कि ऐसे मरीजों में कुछ लक्षण भी दिखाई देने लगते है। शुरुआती समय में मरीज को कलर पहचानने में दिक्कत होती है। फिर जैसे-जैसे नसे कमजोर पड़ने लगती है, वैसे-वैसे आंखों की रोशनी भी कम होने लगती है।

7 साल तक किया इस पर परीक्षण।
दिल्ली में जाकर देंगे टिप्स
शोध के सकारात्मक परिणामों के महत्व को देखते हुए डॉ. परवेज खान को दिल्ली रेटिना फोरम की कांफ्रेंस में ये शोध प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया है। 23 अगस्त को डॉ. परवेज अपना शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे और अपने अनुभवों को साझा करेंगे। उन्होंने अपने इस शोध के पीछे मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय काला को श्रेय दिया हैं।