Trump says Jinping told him China will not invade Taiwan while he is in office | ट्रम्प बोले- जब तक राष्ट्रपति हूं, ताइवान सेफ: जिनपिंग ने हमला न करने का भरोसा दिया है, आगे कुछ भी हो सकता है

Actionpunjab
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वॉशिंगटन डीसी8 घंटे पहले

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डोनाल्ड ट्रम्प और शी जिनपिंग। 2017 में बीजिंग में ट्रम्प की स्टेट विजिट के दौरान। - Dainik Bhaskar

डोनाल्ड ट्रम्प और शी जिनपिंग। 2017 में बीजिंग में ट्रम्प की स्टेट विजिट के दौरान।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि जब तक वे राष्ट्रपति पद पर रहेंगे, तब तक चीन, ताइवान पर हमला नहीं करेगा। ट्रम्प ने यह बयान अलास्का में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपनी अहम बैठक से पहले एक इंटरव्यू में दिया।

एयर फोर्स वन से फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में ट्रम्प ने बताया कि शी जिनपिंग ने उनसे साफ कहा था कि, “जब तक आप राष्ट्रपति हैं, मैं ताइवान पर हमला नहीं करूंगा।”

ट्रम्प ने कहा कि जिनपिंग ने उनसे यह भी कहा था कि वह और चीन बहुत धैर्यवान हैं। यानी कि उन्होंने साफ कर दिया कि ताइवान पर कदम उठाने की संभावना आगे चलकर बनी रह सकती है। इस पर ट्रम्प ने उन्हें समझाते हुए कहा था कि अभी ऐसा करना ठीक नहीं होगा।

इससे पहले फरवरी में जब ट्रम्प से पूछा गया कि क्या उनकी सरकार चीन को ताइवान पर हमला करने से रोकने की नीति अपनाएगी, तो उन्होंने कहा था कि वह इस पर कुछ नहीं बोलेंगे।

उनका यह रवैया बाइडेन से बिल्कुल अलग है। बाइडेन कई बार कह चुके थे कि अगर चीन ने हमला किया तो अमेरिका ताइवान का साथ देगा, लेकिन ट्रम्प ने इसे लेकर कई साफ बयान नहीं दिया है।

76 साल पुराना चीन-ताइवान विवाद

चीन और ताइवान का विवाद काफी पुराना है। 1949 में चीन में गृहयुद्ध हुआ था। इसमें माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत हासिल की और मेनलैंड पर कब्जा कर लिया। उस समय हारकर भागी हुई नेशनलिस्ट सरकार ताइवान द्वीप पर चली गई और वहीं अपनी सत्ता कायम कर ली।

इसके बाद से चीन ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता है और कहता है कि एक दिन उसे वापस अपने नियंत्रण में लाएगा, चाहे इसके लिए बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े।

दूसरी ओर, ताइवान के पास अपनी चुनी हुई सरकार है, अपनी सेना है, पासपोर्ट और मुद्रा भी है। यानी वह असल में एक स्वतंत्र देश की तरह काम करता है। लेकिन दुनिया के ज्यादातर देश उसे औपचारिक रूप से एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं मानते, क्योंकि वे चीन के दबाव में बीजिंग को ही मान्यता देते हैं।

अमेरिका ने चीन को 1979 में मान्यता दी

1949 में जब माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट पार्टी ने गृहयुद्ध जीतकर बीजिंग में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) बनाई, तो अमेरिका ने उसे वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी। इसके बजाय अमेरिका ताइवान में जाकर बसी च्यांग काई शेक की नेशनलिस्ट सरकार (रिपब्लिक ऑफ चाइना – ROC) को ही ‘असली चीन’ मानता रहा।

यही वजह थी कि 1950 और 60 के दशक में संयुक्त राष्ट्र में भी चीन की सीट ताइवान के पास थी, बीजिंग के पास नहीं। स्थिति 1971 में तब बदली जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव पास करके चीन की सीट बीजिंग को दे दी और ताइवान को बाहर कर दिया।

इसके बाद अमेरिका ने 1979 में चीन को औपचारिक रूप से मान्यता दी और ताइवान के साथ अपने राजनयिक रिश्ते खत्म कर दिए। लेकिन साथ ही उसने ‘ताइवान रिलेशंस एक्ट’ पास किया। इससे यह तय हुआ कि अमेरिका, ताइवान को हथियार देगा ताकि वह अपनी रक्षा कर सके।

अमेरिका ने कभी खुलकर यह नहीं कहा कि अगर चीन हमला करेगा तो वह ताइवान की रक्षा करेगा, लेकिन कभी यह भी नहीं कहा कि वह मदद नहीं करेगा। आज हालात यह हैं कि चीन बार-बार कहता है कि अगर ताइवान ने औपचारिक रूप से स्वतंत्र देश बनने की कोशिश की तो वह सैन्य कार्रवाई करेगा।

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