दुर्गाकुण्ड स्थित माँ कूष्माण्डा वार्षिक श्रृंगार एवं संगीत समारोह के चौथे दिन शास्त्रीय संगीत के साथ लोक संगीत का अदभुत संगम दिखलाई पड़ा। कलाकारों ने विविध विधाओं से माँ का सांगीतिक श्रृंगार किया। सायंकाल गोरखपुर से आये भजन सम्राट नंदू मिश्रा, दिल्ली
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नंदू मिश्रा ने अपने गीतों से श्रद्धालुओं को झूमाया।
भजन सम्राट नंदू मिश्रा ने सबसे पहले गणपति रखो मेरी लाज सुनाकर श्रीगणेश किया, उसके बाद अड़हुल फूल के हार, बड़ा सुंदर है माँ का दरबार, होने लगी है अब कृपा, मन के मंदिर में माँ आदि भजनों से भक्तों को भक्ति में सराबोर कर दिया। माता के दरबार में पहुंचने पर उन्होंने कहा यहां आकर मन को शांति मिलती है। माता के आशीर्वाद से आज में गाना गा रहा हूं।
अब जानिए आज कौन-कौन से गीतकार पहुंचे
इसके पहले दिल्ली से आई अपने सूफ़ियाने अंदाज के लिए विख्यात डॉ. जागृति लूथरा प्रसन्ना के भजनों की रही। उन्होंने जय जय जोतवाली माँ, खोलो बंद किस्मत का ताला दातिये, तेरे नाम का गिद्दा मईया जैसे भजनों से सबको देर तक झूमाया। इसके पूर्व शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में सौरभ प्रसाद बनौधा का बाँसुरी वादन हुआ। उन्होंने राग मारवा में महिषासुर मार्दिनी स्त्रोत एवं धुन तूने मुझे बुलाया शेरावाली सुनाया। तबले पर गुरु प्रसाद शुक्ला ने संगत किया। इसके बाद प्रयागराज से आयी उर्वशी जेटली ने भरतनाट्यम से माँ कूष्माण्डा को भावजंलि अर्पित की। उन्होंने माँ दुर्गा की परा शक्ति, कृष्ण मधुराष्टकम और ओ शिव शम्भू की मनभावक प्रस्तुति दी। इसके अलावा सचिन प्रसन्ना का बाँसुरी वादन हुआ। उनके साथ तबले पर श्रीकांत मिश्रा रहे।
इसके अलावा पूनम शर्मा, महुआ बनर्जी, गोविंद गोपाल, रंजना राय, अमलेश शुक्ला, स्नेहा अवस्थी आदि सहित 2 दर्जन कलाकारो ने भजन से माँ की स्वराधना की। भजन गायकों का संयोजन प्रभुनाथ राय दाढ़ी ने किया।

तीसरी निशा में सितारवादन करते पं. देवब्रत मिश्रा।
कलाकारों का सम्मान महंत राजनाथ दुबे एवं संयोजक पं. विश्वजीत दुबे ने किया। संचालन सोनू झा ने किया। इस मौके पर पं. कौशलपति द्विवेदी, संजय दुबे, विकास दुबे, प्रकाश दुबे आदि उपस्थित रहे।
तीसरी निशा में बरसते मेघों के बीच बहती रही सुर लय ताल की अविरल धारा
सात दिवसीय संगीत समारोह की तीसरी निशा में चौथे पहर से सुबह पौ फटने के बाद तक एक तरफ अनवरत बरसते मेघ के बीच काशी के सिद्धहस्त कलाकारों द्वारा भी सुर, लय, ताल की अविरल धारा प्रवाहमान होती रही। विश्वविख्यात सितार वादक पं. देवब्रत मिश्रा ने प्रभाती में मंच संभाला तो बरसते मेघों के बीच राग ललित की अवतारणा की, इसमें झप ताल एवं तीन ताल में बन्दिश सुनाई, अंत में पहाड़ी धुन सुनाकर समापन किया। उनके साथ सह सितार पर कृष्णा मिश्रा एवं तबले पर प्रशांत मिश्रा ने संगत की।

बाँसुरी वादन करते सचिन प्रसन्ना।
बीएचयू की प्रोफेसर संगीता पण्डित ने किया शास्त्रीय गायन
इसके पूर्व प्रो.संगीता पण्डित का शास्त्रीय गायन हुआ। उन्होंने सबसे पहले बनारस घराने की प्रसिद्ध राग दुर्गा में निबद्ध बंदिश ‘जय दुर्गे मातु भवानी’ सुनाया। इसके बाद राग मारवाह में बंदिश ‘जगत जननी जगदम्ब भवानी’ और अंत मे माँ काली के भजन से समापन किया। तीसरी निशा में केडिया बंधुओ के सितार सरोद की जुगलबंदी ने भी सबको बांधे रखा। इसके अलावा पं. संतोष नाहर के वायलिन और मधुमिता भट्टाचार्य के शास्त्रीय गायन से निशा का समापन हुआ।

माता का स्वर्ण मुण्डमाला श्रृंगार।
स्वर्ण मुण्डमाला से सजी माँ कूष्माण्डा
श्रृंगार महोत्सव के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा दुर्गा देवी का स्वर्णमुण्ड माला से श्रृंगार किया गया। सबसे पहले पंचगव्य स्नान के बाद हैदराबादी पीले एवं हरे दुप्पटे से माँ को सजाया गया उसके बाद स्वर्ण जड़ित माँ के मुखौटे का बना हार माँ को अर्पित किया गया। कोलकाता से विशेष श्रृंगार के लिए आये सफेद, लाल कमल पुष्पों, गुलाब, पारिजात, रजनीगंधा के फूलों से माँ को सजाया गया। आरती रात्रि आठ बजे उतारी गई। श्रृंगार पं. कौशलपति द्विवेदी एवं आरती पं. किशन दुबे ने उतारी।