नई दिल्ली19 मिनट पहले
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भारत ने पाकिस्तान को यह जानकारी अपने हाई कमीशन के जरिए दी है।
भारत ने जम्मू-कश्मीर की तवी नदी में बाढ़ के हालात को देखते हुए मानवीय आधार पर पाकिस्तान को इसकी जानकारी दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, यह कदम पूरी तरह से मानवीय सहायता के मकसद से उठाया गया है।
इस्लामाबाद में भारतीय हाई कमीशन ने रविवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को बाढ़ की जानकारी दी है। यह पहला मौका है जब इस तरह की जानकारी हाई कमीशन के जरिए साझा की गई।
आमतौर पर, सिंधु जल संधि के तहत बाढ़ से जुड़ी चेतावनी दोनों देशों के वाटर कमिश्रर के बीच शेयर की जाती थी। इसी साल मई में भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद से दोनों देशों में बातचीत लगभग बंद है।
पाकिस्तानी मीडिया का दावा था भारत ने संधि के तहत जानकारी दी
आज पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि भारत ने सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को संभावित बाढ़ की जानकारी दी है।
जियो न्यूज और द न्यूज इंटरनेशनल ने सूत्रों के हवाले से बताया कि भारत ने 24 अगस्त की सुबह जम्मू की तवी नदी में बाढ़ की आशंका को लेकर इस्लामाबाद को आगाह किया।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने संधि स्थगित की
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 1960 में पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया था।
इसके तहत सिंधु वाटर सिस्टम की 3 पूर्वी नदियों का पानी भारत इस्तेमाल कर सकता है और बाकी 3 पश्चिमी नदियों के पानी पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया था।

भारत-पाकिस्तान के बीच का सिंधु जल समझौता क्या है?
सिंधु नदी प्रणाली में कुल 6 नदियां हैं- सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। इनके किनारे का इलाका करीब 11.2 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें 47% जमीन पाकिस्तान, 39% जमीन भारत, 8% जमीन चीन और 6% जमीन अफगानिस्तान में है। इन सभी देशों के करीब 30 करोड़ लोग इन इलाकों में रहते हैं।
1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के पहले से ही भारत के पंजाब और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच नदियों के पानी के बंटवारे का झगड़ा शुरू हो गया था। 1947 में भारत और पाक के इंजीनियरों के बीच ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ हुआ। इसके तहत दो मुख्य नहरों से पाकिस्तान को पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक चला।
1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दोनों नहरों का पानी रोक दिया। इससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की 17 लाख एकड़ जमीन पर खेती बर्बाद हो गई। दोबारा हुए समझौते में भारत पानी देने को राजी हो गया।
इसके बाद 1951 से लेकर 1960 तक वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में भारत पाकिस्तान में पानी के बंटवारे को लेकर बातचीत चली और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के PM नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच दस्तखत हुए। इसे इंडस वाटर ट्रीटी या सिंधु जल संधि कहा जाता है।
नीचे दिए पोल में हिस्सा लेकर इस मुद्दे पर अपनी राय दें…
सिंधु जल समझौता स्थगित करने का असर
- पाकिस्तान में खेती की 90% जमीन यानी 4.7 करोड़ एकड़ एरिया में सिंचाई के लिए पानी सिंधु नदी प्रणाली से मिलता है। पाकिस्तान की नेशनल इनकम में एग्रीकल्चर सेक्टर की हिस्सेदारी 23% है और इससे 68% ग्रामीण पाकिस्तानियों की जीविका चलती है। ऐसे में पाकिस्तान में आम लोगों के साथ-साथ वहां की बेहाल अर्थव्यवस्था और बदतर हो सकती है
- पाकिस्तान के मंगल और तारबेला हाइड्रोपावर डैम को पानी नहीं मिल पाएगा। इससे पाकिस्तान के बिजली उत्पादन में 30% से 50% तक की कमी आ सकती है। साथ ही औद्योगिक उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ेगा।

1960 में सिंधु जल समझौते पर दस्तखत करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू और अयूब खान। सबसे दाएं वर्ल्ड बैंक के वाइस प्रेसिडेंट विलियम इलिफ बैठे हैं।
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बांग्लादेश बोला- पाकिस्तान 1971 के जनसंहार के लिए माफी मांगे:पाकिस्तानी मंत्री बोले- दो बार मांग चुके; दोस्ती के लिए इस्लाम का वास्ता दिया

बांग्लादेश ने पाकिस्तान से 1971 में हुए जनसंहार के लिए माफी मांगने को कहा है। दरअसल, PAK उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार बांग्लादेश दौरे पर गए थे। यहां उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश के साथ 1971 का विवाद हल हो चुका है।
हालांकि, बांग्लादेश ने पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया। विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने साफ कहा कि पुराने मुद्दों को सुलझाकर ही दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ते बनाए जा सकते हैं।
दरअसल, 1971 की जंग में पाकिस्तानी सेना पर हजारों बांग्लादेशी महिलाओं के साथ रेप, हत्या और आगजनी का आरोप लगा था। इसे लेकर इशाक डार ने कहा कि पाकिस्तान 2 बार बांग्लादेश से माफी मांग चुका है। यहां पढ़ें पूरी खबर…