कर्नल पुष्पिंदर बाठ अपनी टूटी हुई बाजू दिखाते हुए।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सेना अधिकारी कर्नल पुष्पिंदर बाठ पर कथित रूप से हमला करने वाले पंजाब पुलिस अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने में हुई देरी पर पंजाब सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। अगली सुनवाई 28 मार्च को होगी। जस्टिस संदीप मौदगिल ने इस माम
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कोर्ट ने विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देते हुए पूछा कि “किन अधिकारियों को घटना की जानकारी दी गई थी, लेकिन उन्होंने FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया? FIR दर्ज करने में देरी क्यों हुई, जबकि पीड़ित (सेना अधिकारी) और उनके बेटे की मेडिकल रिपोर्ट रिकॉर्ड में मौजूद थी?”

कर्नल बाठ के परिवार के सपोर्ट में रिटायर्ड आर्मी जवानों व अधिकारियों को भी आना पड़ा। सीएम के आश्वासन के बाद धरना बीते दिन सोमवार को उठाया गया।
हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार से कई अहम सवाल पूछे हैं:
- घायल पुलिसकर्मियों (कॉन्स्टेबल रंधीर सिंह और इंस्पेक्टर रॉनी सिंह) की मेडिकल रिपोर्ट क्या FIR दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी को दी गई थी?
- घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों का मेडिकल अल्कोहल टेस्ट क्यों नहीं किया गया? अगर किया गया था, तो उसकी रिपोर्ट रिकॉर्ड पर क्यों नहीं रखी गई?
CBI जांच की मांग
कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ ने इस मामले की जांच पंजाब पुलिस से हटाकर किसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपने की मांग की है। उन्होंने तर्क दिया कि पुलिस की जांच में निष्पक्षता नहीं है, देरी हुई है और इसमें हितों का टकराव भी है। कर्नल बाठ के परिवार को न्याय के लिए पंजाब के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और राज्यपाल तक पहुंचना पड़ा, जिसके बाद घटना के 8 दिन बाद एक उचित FIR दर्ज की गई।
राज्य सरकार को 2 दिन का समय
कोर्ट ने पंजाब सरकार को दो दिन का समय देते हुए यह स्पष्ट करने को कहा है कि जांच को CBI को सौंपने की याचिका को क्यों खारिज नहीं किया जाना चाहिए। यह मामला पुलिस की कार्यप्रणाली और सरकारी अधिकारियों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
जाने क्या है मामला
दिल्ली में सेना मुख्यालय में तैनात कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ ने आरोप लगाया है कि 13 मार्च की रात पंजाब पुलिस के चार इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों और उनके सशस्त्र सहयोगियों ने बिना किसी उकसावे के उन पर और उनके बेटे पर हमला किया।
पीड़ित अधिकारी का कहना है कि घटना के बावजूद स्थानीय पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। वरिष्ठ अधिकारियों को की गई फोन कॉल्स को नजरअंदाज कर दिया गया, और FIR दर्ज करने के बजाय “अज्ञात व्यक्तियों के बीच झगड़े” की एक फर्जी FIR किसी तीसरे व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज कर दी गई।