Why do IAS officers get caught in contempt cases? | राजस्थान के पांच IAS के लिए लापरवाही बनी मुसीबत: आदेशों की अनदेखी पर हाईकोर्ट का कड़ा रुख, किसी को माफी मांगनी पड़ी, कोई सुप्रीम कोर्ट गया – Rajasthan News

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राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी पर कोर्ट से जुड़े मामलों पर लापरवाही के मामले सामने आने पर सवाल उठ रहे हैं। आईएएस प्रवीण गुप्ता और भास्कर ए सावंत को तीन-तीन महीने की सजा का मामला काफी चर्चित रहा।

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अब राजस्थान हाईकोर्ट ने दो और आईएएस को तलब किया है। इनमें भवानी सिंह देथा और शुचि त्यागी हैं। हालांकि, जैसलमेर के कलेक्टर प्रताप सिंह को अवमानना मामले में राहत दे दी।

आखिर क्यों बार-बार टॉप लेवल के अफसरों पर कोर्ट की गाज गिर रही है? हाल ही में चर्चा आए अफसरों के मामले क्या हैं? दैनिक भास्कर ने इन अधिकारियों से बात कर जाना…

1. प्रवीण गुप्ता : कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं दिए 167 करोड़

नागौर-मुकुंदगढ़ हाईवे प्राइवेट लिमिटेड ने साल 2020-21 में सड़क बनाने के प्रोजेक्ट का काम किया था। इसके कॉन्ट्रैक्ट में समय से पहले सड़क प्रोजेक्ट का काम पूरा करने पर बोनस देने का प्रावधान था।

लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग ने बोनस का भुगतान नहीं किया। ऐसे में आर्बिट्रेटर के आदेश को कॉमर्शियल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी गई, लेकिन पीडब्ल्यूडी को राहत नहीं मिली।

167 करोड़ रुपए के बकाया भुगतान से संबंधित मामले में जयपुर की कॉमर्शियल कोर्ट-1 ने पीडब्ल्यूडी की संपत्तियों की सूची मांगी, ताकि उनको कुर्क कर बकाया भुगतान दिलवा सके।

कोर्ट ने इसी मामले में भुगतान को लेकर विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) प्रवीण गुप्ता का शपथ-पत्र मांगा, जिसके नहीं मिलने पर कोर्ट ने गुप्ता को तीन माह के सिविल कारावास की सजा सुनाई। आईएएस प्रवीण गुप्ता ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी है।

दैनिक भास्कर ने इस मामले को लेकर आईएएस प्रवीण गुप्ता से सवाल किया तो उनका कहना था- ये तो सब चलता रहता है।

2. भास्कर ए सावंत : 31 करोड़ रुपए का भुगतान रोका

जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के पाइप लाइन डालने के प्रोजेक्ट में करीब 31 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं होने के मामले में विभाग के एसीएस भास्कर ए सावंत को तीन महीने के सिविल कारावास की सजा सुनाई गई है।

इस मामले में आर्बिट्रेटर की ओर से एल एंड टी कंपनी के पक्ष में करीब 31 करोड़ रुपए के भुगतान का आदेश दिया था। इसकी पालना का मामला कॉमर्शियल कोर्ट पहुंचा।

जहां बार-बार अवसर देने के बावजूद भुगतान के संबंध में भास्कर ए सावंत का शपथ-पत्र पेश नहीं हुआ। इस पर कोर्ट ने तीन महीने की सजा सुनाई। हालांकि हाईकोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी है।

भास्कर से बोले- छोटी-मोटी गलती है, हो जाती है

दरअसल, कोर्ट के अवमानना से जुड़े मामले में विभागीय अधिकारियों की लापरवाही सामने आई है। जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के एसीएसएस भास्कर ए सावंत ने सुपरिटेंडेंट इंजीनियर, पीएचईडी (पीआईयू- प्रथम नागौर) भरत मीणा की फाइल तलब की है।

माना जा रहा है कि उन पर गाज गिर सकती है। हालांकि भास्कर से बातचीत में भास्कर ए सावंत ने इससे इनकार किया है। भास्कर ए सावंत बोले- मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

किसी तरह की टिप्पणी नहीं कर सकता। कोर्ट का सम्मान करता हूं। सुपरिटेंडेंट इंजीनियर भरत मीणा की भी गलती नहीं है। छोटी-मोटी गलती हो जाती है।

भुगतान प्रक्रिया शुरू करने पर मिली हाईकोर्ट से राहत

राजस्थान हाईकोर्ट ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रवीण गुप्ता और भास्कर ए सावंत को राहत दी है। साथ ही कॉमर्शियल कोर्ट की अग्रिम कार्रवाई पर भी रोक का आदेश दिया है।

दोनों अधिकारियों की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने कोर्ट में कहा- हम संबंधित कंपनी को भुगतान करने की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं।

संबंधित कंपनी को बकाया का भुगतान जल्द कर दिया जाएगा। राजेंद्र प्रसाद ने पीएचईडी विभाग को लेकर कॉमर्शियल कोर्ट के फैसले को भी मनमाना बताया।

IAS भवानी सिंह देथा और शुचि त्यागी हाईकोर्ट से तलब

राजस्थान हाईकोर्ट ने आईएएस भवानी सिंह देथा, शुचि त्यागी और एक अन्य अधिकारी को हाईकोर्ट में 28 मार्च के लिए तलब किया है।

जस्टिस उमाशंकर व्यास की अदालत ने कहा- क्या सीनियर अधिकारी कोर्ट के आदेश के बिना अदालत के आदेशों की पालना करेंगे ही नहीं।

अधिकारियों की यह प्रवृत्ति अत्यधिक गंभीर है। कोर्ट ने ये आदेश करियर एडवांसमेंट स्कीम के अंतर्गत लेक्चरर (याचिकाकर्ता) की पुरानी सेवा को सेवा लाभ में नहीं जोड़ने की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की इस तरह की प्रवृत्ति से न केवल न्यायालय की गरिमा प्रभावित होती है, बल्कि न्याय की उम्मीद में आने वाले लोगों का विश्वास भी समाप्त होता है।

क्या था पूरा मामला?

याचिकाकर्ता के वकील अजय चौधरी ने बताया कि डॉ. डीसी डूडी गवर्नमेंट कॉलेज सांभर लेक में लेक्चरर के पद पर कार्यरत हैं। यहां नियुक्ति से पहले वे हरियाणा में लेक्चरर थे।

साल 1998 में उनका सिलेक्शन राजस्थान में हो गया था। लेकिन, विभाग ने करियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत उनकी पुरानी सेवा को सेवा लाभ में नहीं जोड़ा।

ऐसे में उन्हें बढ़े हुए वेतनमान मिलने में डेढ़ साल की देरी हुई। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 5 मई 2022 को डॉ. डीसी डूडी के पक्ष में फैसला दिया था।

वकील अजय चौधरी ने बताया- फैसले को लेकर सरकार ने इसकी अपील खंडपीठ में कर दी।

खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया तो सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी 27 सितंबर 2023 को सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था।

इसके बावजूद भी विभाग ने आदेश की पालना नहीं की। अदालत ने कहा कि इस मामले में कठोर रुख अपनाने पर 18 दिन में आदेश की पालना कर दी गई। लेकिन यह पालना न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना भी की जा सकती थी।

लोक सेवक के रूप में वरिष्ठ अधिकारियों का दायित्व और अधिक बढ़ जाता हैं। लेकिन वे अपने कर्तव्य के प्रति निष्क्रिय रहे और न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते रहे। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

आपको बता दें, यह मामला तत्कालीन कॉलेज शिक्षा आयुक्त शुचि त्यागी (2022) और भवानी सिंह देथा प्रमुख शासन सचिव उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के पद के दौरान का है। ऐसे में कोर्ट ने दोनों को जिम्मेदार माना था।

भास्कर ने भवानी सिंह देथा से इस मामले में बातचीत की। भवानी सिंह देथा ने कहा- कोर्ट के आदेशों की पालना करेंगे। कोर्ट ने जो भी कहा है, उसकी पूरी तरह से पालना की जाएगी। भास्कर ने शुचि त्यागी से संपर्क किया लेकिन बात नहीं हो पाई।

5. प्रताप सिंह चौहान : माफी मांगने पर मिली राहत

जैसलमेर के कलेक्टर प्रताप सिंह को राजस्थान हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। दरअसल, जमीन के एक मामले में हाई कोर्ट के आदेशों को नहीं मानने पर अवमानना का मामला सामने आया था।

मगर सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च 2025 को एक आदेश देकर अवमानना मामले को खारिज करने के आदेश दिए। जिसके बाद हाईकोर्ट के कलेक्टर माफी का प्रार्थना पत्र देने के चलते उनके खिलाफ चल रही अवमानना की कार्रवाई को बंद कर दिया।

पहले हाईकोर्ट ने जैसलमेर कलेक्टर को आदेश की अवमानना का दोषी पाया था और 25 मार्च को उनकी सजा तय करने के लिए सुनवाई रखी थी लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें जमीन से जुड़े इस मामले में माफी मिल गई।

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