Shri Krishna, returning to Dwaraka, gave a lesson to Yudhishthira, Lesson of lord krishna in hindi, Success in life, Krishna and yudhishthira story | द्वारका लौट रहे श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दी सीख: सफलता के साथ ही नई जिम्मेदारियां और परेशानियां भी आती हैं, इसलिए हमेशा सतर्क रहें

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5 घंटे पहले

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महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद युधिष्ठिर राजा बनने वाले थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि अब पांडवों के जीवन में सब ठीक हो गया है, मुझे द्वारका लौट जाना चाहिए।

श्रीकृष्ण ने पांडवों से भी ये बात कही तो कुंती ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन श्रीकृष्ण तय कर चुके थे। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि माता तो आपसे रुकने के लिए कह ही रही है और मैं भी चाहता हूं कि आप द्वारका न जाएं, अभी भी हमारी परेशानियां खत्म नहीं हुई हैं।

श्रीकृष्ण ने कहा कि राजन् तुम तो युद्ध जीत चुके हो, अब क्या परेशानी है?

युधिष्ठिर कहा कि मुझे ये जीत अपने लोगों को मारकर मिली है। मैंने कभी सोचा भी नहीं था ये जीत इतना दुख देगी।

श्रीकृष्ण से कहा कि राजा बनना और राजा बने रहना बहुत मुश्किल है। धर्म बचाने के लिए आपने युद्ध किया और उसके बाद आपको ये जीत मिली है। हमें एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए- हर जीत के साथ नई जिम्मेदारियां आती हैं, नई परेशानियां आती हैं। जीत के पीछे असफलता भी छिपी होती है, उस असफलता के बारे में सोच-सोचकर भविष्य के लिए सीख लेनी चाहिए। सफलता मिलने के बाद भी हमें सतर्क रहना चाहिए, लापरवाही और अहंकार से बचना चाहिए। समझदार वही है जो जीत के पीछे छिपी असफलता को पहचानता है और उससे सीख लेकर आगे बढ़ता है।

युधिष्ठिर ने बताया कि उन्हें बात समझ आ गई है, लेकिन श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को देखकर समझ गए थे कि इन्हें अभी बात पूरी तरह समझ नहीं आई है। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हमें भीष्म के पास चलना चाहिए, वे ही राज धर्म से जुड़ी बातें अच्छी तरह समझा सकते हैं। इसके बाद श्रीकृष्ण पांडवों के साथ भीष्म के पास पहुंचे। भीष्म पितामह ने पांडवों को राज धर्म के बारे में समझाया था।

प्रसंग की सीख

  • सफलता के साथ आती हैं नई समस्याएं

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ, युधिष्ठिर को सत्ता मिली, लेकिन उनके मन में शांति नहीं थी, उनके मन में दुविधाएं थीं। जब हमें सफलता जीवन में आती है तो वह अपने साथ नई जिम्मेदारी और नई परेशानी भी लेकर आती है। एक सफल व्यक्ति वही है जो इनसे भागे नहीं, बल्कि इनका सामना करता है।

  • दुख से सीखें, उसमें उलझें नहीं

कई बार सफलता के बाद भी हम अशांत रहते हैं। युधिष्ठिर का दर्द इस बात का प्रमाण है। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि समझदार वही होता है जो दुख से सीखता है, न कि उसमें डूब जाता है। जीवन में दुख और कष्ट स्थायी नहीं होते, पर उनसे मिली सीख स्थायी हो सकती है। हमें अपने अनुभवों से मजबूत बनना चाहिए।

  • मार्गदर्शक की बातों पर ध्यान दें

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह भी बताया कि जब मन उलझ जाए, तो अनुभवी और ज्ञानी लोगों से मार्गदर्शन लेना चाहिए। इसलिए वे भीष्म पितामह के पास चलने की सलाह देते हैं। जब भी जीवन की दिशा स्पष्ट न हो तो वरिष्ठों, गुरुओं या अनुभवी लोगों से सलाह लेनी चाहिए और उनकी बातों को जीवन में उतारना चाहिए।

  • सफलता के साथ विनम्रता जरूरी है

युधिष्ठिर की पीड़ा उनकी संवेदनशीलता और विनम्रता को दर्शाती है। यह गुण हर सफल व्यक्ति में होना चाहिए। विनम्रता और आत्मनिरीक्षण सफलता को टिकाऊ बनाते हैं। जो व्यक्ति सफलता को केवल अभिमान का कारण बना लेता है, वह अकेला रह जाता है।

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