India and America will jointly build nuclear reactors in India | भारत और अमेरिका मिलकर भारत में परमाणु रिएक्टर बनाएंगे: 2007 में हुए समझौते को 18 साल बाद अमेरिकी प्रशासन की मंजूरी मिली

Actionpunjab
8 Min Read


नई दिल्ली1 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
अब अमेरिकी कंपनी भारत में ही स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर और इसके सभी कम्पोनेंट्स और पार्ट्स का भी को-प्रोडक्शन भी करेंगी। - Dainik Bhaskar

अब अमेरिकी कंपनी भारत में ही स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर और इसके सभी कम्पोनेंट्स और पार्ट्स का भी को-प्रोडक्शन भी करेंगी।

अमेरिका एनर्जी डिपार्टमेंट (DoE) ने अमेरिकी कंपनी को भारत में संयुक्त तौर पर न्यूक्लियर पावर प्लांट डिजाइन और निर्माण के लिए अंतिम मंजूरी दे दी है। भारत और अमेरिका के बीच 2007 में सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी, जिसके तहत ही 26 मार्च यानी बुधवार को यह मंजूरी दी गई है।

अब तक भारत-अमेरिका सिविल परमाणु समझौते के तहत अमेरिकी कंपनियां भारत को परमाणु रिएक्टर और इक्विपमेंट निर्यात कर सकती थीं, लेकिन भारत में न्यूक्लियर इक्विपमेंट के किसी भी डिजाइन कार्य या मैन्युफैक्चरिंग पर रोक थी।

भारत लगातार इस बात पर जोर दे रहा था कि रिएक्टर्स का डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से लेकर हर काम देश में ही होना चाहिए।

2007 में जिस वक्त परमाणु समझौते पर साइन किया गए तब भारत में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, जबकि अमेरिका में जॉर्ज बुश राष्ट्रपति थे। तस्वीर- 2 मार्च 2006

2007 में जिस वक्त परमाणु समझौते पर साइन किया गए तब भारत में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, जबकि अमेरिका में जॉर्ज बुश राष्ट्रपति थे। तस्वीर- 2 मार्च 2006

संयुक्त रूप से स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर का निर्माण करेंगे अमेरिका ने होल्टेक इंटरनेशनल नाम की कंपनी को US न्यूक्लियर एनर्जी एक्ट 1954 के तहत मंजूरी दी है। US अथारिटी ने होल्टेक इंटरनेशनल के एप्लिकेशन के आधार पर तीन भारतीय कंपनियों को अन-क्लासिफाइड स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SSMR) टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने की इजाजत दी है।

इन तीन कंपनियों के नाम लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड और होल्टेक की रीजनल सहायक कंपनी होल्टेक एशिया है।

होल्टेक इंटरनेशनल अब संयुक्त रूप से स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) का निर्माण करेंगी और इसके सभी कम्पोनेंट्स और पार्ट्स का भी को-प्रोडक्शन भी करेंगी।

हालांकि, अमेरिका ने शर्त रखी है कि संयुक्त रूप से डिजाइन और निर्मित परमाणु रिएक्टर्स को अमेरिकी सरकार की पूर्व लिखित सहमति के बिना भारत या अमेरिका के अलावा किसी अन्य देश में किसी अन्य संस्था को रि-ट्रांसफर नहीं किया जाएगा।

इसे भारत की एक बड़ी कूटनीति जीत के तौर पर देखा जा रहा है। अमेरिकी सरकार ने कहा कि भारत में सिविल न्यूक्लियर एनर्जी की बहुत ज्यादा कॉमर्शियल संभावनाएं हैं।

भारत को मिलेगी प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर बनाने की टेक्नीक यह मंजूरी ऐसे वक्त पर मिली है जब ट्रम्प सरकार अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और ग्लोबल लेबल पर ‘मेड-इन-यूएसए’ उपकरणों को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है। ऐसे में भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर्स के निर्माण को मंजूरी देना भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी है।

अमेरिका स्थित होलटेक इंटरनेशनल एक ग्लोबल एनर्जी फर्म है। जिसका मालिकाना हक भारतीय मूल के अमेरिकी आंत्रप्रेन्योर कृष्ण पी सिंह के पास हैं।

भारत के पास वर्तमान में 220MWe प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर (PHWR) की क्षमता वाले छोटे परमाणु रिएक्टरों में विशेषज्ञता है। अब उसे प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर (PWR) के ज्यादा हाई टेक्नीक वाले परमाणु रिएक्टर बनाने की तकनीक मिलेगी। दुनिया भर में ज्यादातर परमाणु रिएक्टर इसी तकनीक पर चलते हैं।

स्मॉल न्यूक्लियर पावर प्लांट से भारत सरकार को क्या फायदे हैं? भारत 6 वजहों से बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट की तुलना में छोटे-छोटे न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाना चाहता है…

  • दुनिया भर के देश भारत पर जीरो कार्बन इमिशन और कम कोयला इस्तेमाल करने के लिए दबाव बना रहे हैं। बिजली पैदा करने के लिए चीन के बाद भारत में सबसे ज्यादा कोयला इस्तेमाल होता है।
  • भारत इसी वजह से इस तरह के छोटे-छोटे परमाणु रिएक्टर के जरिए बिजली पैदा करना चाहता है। कोयले वाले रिएक्टर की तुलना में ये 7 गुना कम कार्बन पैदा करता है।
  • SMR को डिजाइन करना और बनाना आसान है। इसे किसी भी बिजली प्लांट के ग्रिड से जोड़ा जा सकता है। इसके लिए अलग से बिजली ग्रिड बनाने की जरूरत नहीं है।
  • भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस तरह के प्लांट को किसी जहाज या बड़ी गाड़ी पर भी लगाया जा सकता है। इस तरह स्मॉल न्यूक्लियर प्लांट को कम से कम समय में लगाना संभव होगा।
  • रूस ने इस तरह के प्लांट के लिए भारत को एडवांस टेक्नोलॉजी देने का ऐलान किया है।
  • 2050 तक भारत में बिजली की मांग 80%-150% तक बढ़ने का अनुमान है, SMR एक ऐसा प्लांट है जिसके जरिए हर शहर या फिर कोई कंपनी अपने लिए खुद से बिजली पैदा कर सकती है।

स्मॉल रिएक्टर वाले पावर प्लांट की जरूरत क्यों? आमतौर पर बड़े रिएक्टर वाले पावर प्लांट से ज्यादा रेडियोएक्टिव पदार्थ यूरेनियम निकलने की संभावना होती है। इसे कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जबकि स्मॉल रिएक्टर के टेक्निकल खामियों को आसानी से दूर किया जाना संभव है। इसे आसानी से कंट्रोल भी किया जा सकता है। बड़े रिएक्टर वाले पावर प्लांट बेहद खतरनाक हो सकते हैं। इसे चेर्नोबिल की कहानी से समझ सकते हैं…

26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में टेस्टिंग होनी थी। हादसे से पहले चेर्नोबिल पावर स्टेशन में चार न्यूक्लियर रिएक्टर थे। जब हादसा हुआ तब दो रिएक्टर्स पर काम चल रहा था। 26 अप्रैल की रात टेस्ट शुरू हुआ और रात करीब 1ः30 बजे टरबाइन को कंट्रोल करने वाले वाल्व को हटाया गया।

रिएक्टर को आपात स्थिति में ठंडा रखने वाले सिस्टम और रिएक्टर के अंदर होने वाले न्यूक्लियर फ्यूजन को भी रोक दिया गया। अचानक रिएक्टर के अंदर न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया कंट्रोल से बाहर हो गई। रिएक्टर के सभी आठ कूलिंग पम्प कम पावर पर चलने लगे, जिससे रिएक्टर गर्म होने लगा और इससे न्यूक्लियर रिएक्शन और तेज हो गया। सोवियत संघ के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हुआ हादसा दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में से है।

धमाके के बाद न्यूक्लियर प्लांट में अफरा-तफरी मच गई और रिएक्टर को बंद करने की कोशिशों के बीच ही उसमें जोरदार धमाका हुआ। धमाका इतना जोरदार था कि रिएक्टर की छत उड़ गई। उस हादसे में वहां कार्यरत 40 लोगों की मौत हो गई। इस धमाके से निकला रेडियोएक्टिव रेडिएशन हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम से भी 400 गुना ज्यादा था।

अगले कई दिनों तक चेर्नोबिल पावर प्लांट से रेडिएशन निकलता रहा, जो हवा के साथ उत्तरी और पूर्वी यूरोप में फैल गया। रेडिएशन फैलने से रूस, यूक्रेन, बेलारूस के 50 लाख लोग इसकी चपेट में आ गए। रेडिएशन फैलने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से 4 हजार लोगों की मौत हो गई। इस हादसे से 2.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 2000 में चेर्नोबिल में काम कर रहे आखिरी रिएक्टर को भी बंद कर दिया गया।

खबरें और भी हैं…
Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *