वरुण शर्मा | मुजफ्फरनगर3 मिनट पहले
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मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना कोतवाली में एक ऐसी कुर्सी सुर्खियों में है, जो न तो किसी बड़े अफसर की शान है, न ही कोई आलीशान फर्नीचर का नमूना। ये है जन सुनवाई डेस्क की वो बेचारी कुर्सी, जिसे जंजीर और ताले से इस कदर जकड़ दिया गया है, मानो ये कोई खूंखार अपराधी हो, जो मौका मिलते ही भाग खड़ी होगी! जी हां, आपने सही सुना… कोतवाल की कुर्सी को मोटी जंजीर से टेबल के साथ लॉक कर दिया गया है, ताकि कोई इसे इधर-उधर सरकाने की जुर्रत भी न कर सके। अब इसे पुलिस की दूरदर्शिता कहें या फिर कुर्सी की कीमत का अंदाजा, ये दृश्य अपने आप में एक तमाशा बन गया है।
कुर्सी या कैदी
देखा जाए तो ये कुर्सी ठीक वैसे ही जंजीरों में बंधी है, जैसे गर्मियों में पियाऊ पर मग या गिलास को चेन से लटकाया जाता है ताकि चोरी न हो जाए, तो भैया बांध दो! लेकिन सवाल ये है कि कोतवाली में कुर्सी को चुराने की हिम्मत कौन करेगा? क्या कोई शिकायत लेकर आया शख्स कुर्सी उठाकर भागेगा? या फिर कोई सिपाही इसे घर ले जाकर अपनी बैठक की शोभा बढ़ाएगा? पुलिस सूत्रों का कहना है कि ये करामात वहां तैनात क्राइम इंस्पेक्टर की है। अब वजह क्या है, ये तो वही जाने, लेकिन कुर्सी की हालत देखकर लगता है कि इसे आजादी से ज्यादा कैद की आदत हो गई है।

कानून की कुर्सी पर ताला
अब जरा सोचिए, जिस कोतवाली में कुर्सी को जंजीरों से बांधकर रखा जाए, वहां कानून का क्या हाल होगा? अगर पुलिस अपनी कुर्सी को ही चोरी से बचाने के लिए इतनी मेहनत कर रही है, तो अपराधियों को पकड़ने में कितना दम लगाती होगी? ये कुर्सी तो चुपचाप अपनी कहानी सुना रही है। यहां सुरक्षा का आलम ये है कि कुर्सी तक को ताले की जरूरत पड़ गई!

चर्चा का विषय या हंसी का पात्र
कोतवाली का ये नजारा अब इलाके में चर्चा का विषय बन गया है। कोई इसे पुलिस की सतर्कता का सबूत बता रहा है, तो कोई इसे मजाक का मसाला। सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं कि क्या कुर्सी इतनी कीमती है कि ताले लगाने पड़े या फिर कोतवाली में चोरों की इतनी आमद है कि फर्नीचर तक को नहीं बख्शा जा रहा? एक शख्स ने तो तंज कसते हुए लिखा, “कुर्सी को तो जंजीर मिल गई, अब अपराधियों की बारी कब आएगी?“