‘I used to go to college for 8 rupees, but used to stay hungry’ | ‘8 रुपये में कॉलेज जाती थीं, खाली पेट रहती थीं’: नुसरत भरूचा बोलीं- बचपन से फाइनेंशियल स्ट्रगल देखा, पैसे बचाने की आदतें बरकरार हैं

Actionpunjab
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41 मिनट पहले

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‘प्यार का पंचनामा’, ‘प्यार का पंचनामा 2’, ‘सोनू के तितू की स्वीटी’, ‘ड्रीम गर्ल’, ‘छोरी’, ‘जनहित में जारी’, ‘राम सेतु’ जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस नुसरत भरूचा भले ही आज एक सक्सेसफुल एक्ट्रेस हैं, लेकिन उनके करियर की शुरुआत आसान नहीं थी।

हाल ही में बॉलीवुड बबल को दिए इंटरव्यू में नुसरत ने अपने पुराने दिनों की बातें शेयर कीं। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने कॉलेज के दिनों में सिर्फ 8 रुपये में पूरा दिन निकाला और कई बार भूख लगने पर भी सिर्फ पानी पीकर काम चलाया।

पैसे बचाने की आदत कॉलेज से है

नुसरत ने कहा, ‘ओ गॉड, मैं फाइनेंस मैनेज करने में बहुत अच्छी नहीं हूं, लेकिन बहुत खराब भी नहीं हूं। मैंने बहुत जल्दी डिसाइड कर लिया था कि महीने का कितना खर्चा चाहिए। मेरी बेसिक जरुरतें क्या हैं? मैंने एक फिगर फिक्स किया, और जो भी उस फिगर से ऊपर आता था, वो मैंने इन्वेस्टमेंट और सेविंग में डाल दिया। मेरे अकाउंटेंट्स को इंस्ट्रक्शन है कि वो पैसा डायरेक्ट मेरी वेल्थ एडवाइजर्स को भेज दें।’

मुझे डर लगता है, क्योंकि फैमिली की जिम्मेदारी मेरी है

उन्होंने आगे बताया, ‘मैं कोई सुपरह्यूमन नहीं हूं। मुझे डर लगता है। मेरे पापा अब 70 के करीब हैं, मम्मी 62 की हैं और मेरी दादी 92 साल की हैं। तीनों मेरे साथ रहते हैं। खुदा न खास्ता कुछ भी हो जाए, तो मेरे पास बैकअप में पैसे होने चाहिए। मैंने अपनी दुनिया छोटी कर ली है, ताकि जरुरत पड़ने पर अपनों का साथ दे सकूं।’

5 साल तक कॉलेज में सिर्फ 8 रुपये में दिन निकालती थी

अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए नुसरत ने कहा, ‘मैं जुहू से जय हिंद कॉलेज जाती थी। पापा की फाइनेंशियल कंडीशन उस वक्त अच्छी नहीं थी, उन्हें बिज़नेस में चीट किया गया था। मैंने जय हिंद में एडमिशन ले लिया था, लेकिन मुझे पता था कि पापा के पैसे नहीं खर्च कर सकती। मैंने अपने पूरे कॉलेज के 90% दिन सिर्फ 8 रुपये में गुजारे हैं।’

सिर्फ बस का किराया लगता था, बाकी दिन भर पानी पीती थी

‘मैं घर से निकलती थी, 231 नंबर की बस पकड़ती थी जुहू से सांताक्रूज स्टेशन तक; इसका 4 रुपये लगता था। पापा ने रेलवे पास बनवा दिया था, उसका खर्चा नहीं देना पड़ता था। चर्चगेट उतरती, कॉलेज पैदल जाती, पूरा दिन वहीं रहती। शाम को वही रूट वापस। जाने के 4 रुपये और आने के 4 रुपये; टोटल 8 रुपये। कॉलेज में पानी फ्री था, प्यास लगी तो बस पानी पी लिया।’

रेस्टोरेंट में बैठी रही, ऑर्डर नहीं किया

नुसरत ने एक किस्सा शेयर किया, ‘एक बार दोस्तों ने बांद्रा के एक नए रेस्टोरेंट में गेट-टुगेदर रखा था। मैं घर पर थी, सोचा जाऊं या नहीं? जुहू से बांद्रा जाने का रिक्शा ही 60–70 रुपये का पड़ेगा, उतना ही वापस का। लेकिन अकेले बैठना भी बोरिंग लगता था। मैं वहां गई, लेकिन पैसे बचाने की सोच थी। मैंने सिर्फ एक फ्रेश लाइम सोडा ऑर्डर किया।’

पेट भूखा था, लेकिन चेहरे पर स्माइल थी

‘वहां सब खाना खा रहे थे, एन्जॉय कर रहे थे। मैं वहीं बैठी रही, कुछ ऑर्डर नहीं किया। सिर्फ पानी पीती रही। और मुझे याद है, मेरे चेहरे पर मुस्कान थी क्योंकि मुझे अच्छा लग रहा था कि किसी को नहीं पता कि मुझे भूख लगी है। मैंने सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब मैं ये सब बिना सोचे कर पाऊंगी।’

आज भी पैसे उड़ाने की आदत नहीं है

नुसरत ने बातचीत खत्म करते हुए कहा, ‘इसलिए आज भी अगर मैं पैसे खर्च करती हूं तो दिल खोल कर करती हूं, लेकिन रोज नहीं। क्योंकि मेरी कंडीशनिंग ही ऐसी है। मैंने 8 रुपये से शुरुआत की थी, पानी पीकर दिन निकाला है। इसलिए अब भी जब पैसे आते हैं, तो दिल में वो बात रहती है कि सेव करना है।’

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