Labourer’s son tops district in 12th | मजदूरी के बेटे ने 12वीं में जिला टॉप किया: सहारनपुर में हिमांशु ने सरकारी टैबलेट से की पढ़ाई, 90% अंक आए, 10वीं में भी रहा था चौथे स्थान पर – Saharanpur News

Actionpunjab
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हिमांशु को आशीर्वाद देते हुए माता-पिता और मिठाई खिलाते हुए माता-पिता।

सपनों की कोई कीमत नहीं होती, और जब उन सपनों को पाने की जिद हो तो हालात भी झुक जाते हैं। यूपी बोर्ड 12वीं के परीक्षा परिणाम में गुरु नानक इंटर कॉलेज के छात्र हिमांशु बरसवाल ने 90% अंक लाकर न सिर्फ जिले में टॉप किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि सीमित

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हिमांशु का ये सफर आसान नहीं था। पिता गुलाब सिंह रोज मजदूरी कर 500 रुपए कमाते हैं, और मां सरिता देवी एक आशा कार्यकत्री हैं। घर में चार बच्चे हैं, बड़ा बेटा सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, दो बेटियां हैं और सबसे छोटा हिमांशु। इतने साधनों के बीच भी माता-पिता ने कभी बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी।

हिमांशु को वर्ष 2023 में 10वीं में 93.86% अंक मिले थे, जिससे वह जिले में चौथे स्थान पर आए थे। इसके पुरस्कार स्वरूप सरकार से उन्हें एक टैबलेट मिला। जहां अधिकतर बच्चे टैबलेट का उपयोग वीडियो देखने या गेम खेलने में करते हैं, वहीं हिमांशु ने इस सरकारी टैबलेट को अपनी पढ़ाई का हथियार बना लिया।

दिन-रात मेहनत, अनुशासन और लगन ने आज हिमांशु को वहां खड़ा किया है, जहां से पूरे जिले ने तालियां बजाईं। उन्होंने मोबाइल की चकाचौंध से दूरी बनाई और अपने भविष्य को संवारने में जुटे रहे। नतीजा, 12वीं बोर्ड में 90% अंक और जिले में पहला स्थान। हिमांशु का सपना है कि वो आईएएस बनकर देश की सेवा करना। हिमांशु का कहना है कि वैसे तो सभी का सहयोग रहा है। लेकिन उनके टीचरों का ज्यादा सहयोग उनकी कामयाबी में रहा है। माता-पिता, भाई-बहन और साथियों ने भी पूरा सहयोग किया है।

गुरु नानक इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल सरदार मोहन सिंह का कहना है कि हिमांशु एक बहुत मेहनत लड़का है। वो हमेशा पढ़ाई की बात करता है। अपनी पढ़ाई के लिए गंभीर रहता है हमेशा। जब बच्चे हॉफडे में खेलते हैं तो वो उसमें भी पढ़ाई करता हुआ ही दिखाई दिया। उसने सिविल सेवा में जाने की ठानी है तो वो जाएगा। वो बड़ा मेहनती है।

उनके पिता कहते हैं-बेटे ने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। आज उसके बारे में लोग बात करते हैं और तारीफ करते हैं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। मां सरिता देवी की भी आंखें नम हो जाती हैं जब वह कहती हैं-हमने बहुत मुश्किलें देखीं, लेकिन हिमांशु ने कभी पढ़ाई में कमी नहीं आने दी।

उसे जब भी देखा, किताबों के साथ ही देखा। हिमांशु की कहानी उन बच्चों के लिए सबक है जो संसाधनों की कमी को बहाना बनाकर मेहनत से कतराते हैं। ये कहानी ये भी बताती है कि जब परिवार साथ होता है, तो किसी भी मंजिल को पाना असंभव नहीं होता।

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