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- Uttarakhand’s Char Dham Yatra Will Start From April 30: On Akshaya Tritiya, The Doors Of Gangotri Will Open At 10.30 Am And Those Of Yamunotri Will Open At 11.57 Am
35 मिनट पहले
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30 अप्रैल को अक्षय तृतीया पर उत्तराखंड की चारधाम यात्रा यमुनोत्री धाम से शुरू होने वाली है। ये चारधाम यात्रा वामावर्ती होती है। यानी बाएं से दाई ओर। इसमें सबसे बाईं ओर पहला धाम यमुनोत्री है। दूसरा गंगोत्री, तीसरा केदारनाथ और चौथा बदरीनाथ है। सभी धामों के कपाट शुभ मुहूर्त के अनुसार खोले जाते हैं। इस कारण सबसे पहले गंगोत्री फिर यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे।
29 अप्रैल को देवी गंगा की डोली अपने शीतकालीन प्रवास मुखवा से गंगोत्री धाम के लिए रवाना होगी। वहीं, देवी यमुना की डोली खरसाली गांव से 30 तारीख को सुबह जल्दी यमुनोत्री के लिए निकलेगी।
चाधाम के तीर्थ पुरोहित डॉ. ब्रजेश सती से समझते हैं मां गंगा-यमुना की डोली से लेकर गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की जानकारी…
पहला धाम… यमुनोत्री उत्तराखंड की चारधाम यात्रा यमुनोत्री मंदिर से शुरू होती है। ये हिमालय के पश्चिम में स्थित पहला धाम है। ये उत्तरकाशी जिले की बडकोट तहसील में स्थित है। इसके बाद गंगोत्री, केदारनाथ और आखिरी में बदरीनाथ धाम आता है। इस धाम के कपाट कपाट सुबह 11.55 पर खुलेंगे।
कपाट खुलने से पहले वैदिक मंत्रों से द्वार पूजन और किया जाएगा। इसके बाद कपाट खुलेंगे। फिर भोग मूर्ति यानी देवी का चलित विग्रह गर्भ गृह में स्थापित किया जाएगा। फिर वैदिक मंत्रों के साथ देवी का आव्हान और स्थापना होगी। यमुनाजी की मंगल आरती के बाद दर्शन शुरू होंगे। इस धाम के रावल खरसाली गांव के उनियाल ब्राह्मण होते हैं। ये ही देवी की पूजा करते हैं।

मां यमुना की भोग मूर्ति। इसे चलित विग्रह कहते हैं।
खरसाली गांव से डोली में देवी यमुना की भोग मूर्ति आती है। जो चांदी की बनी होती है। इस देवी की डोली की अगुआई उनके भाई शनि देव करते हैं। इन्हें सोमेश्वर कहा जाता है। माना जाता है ये देवी उनके धाम छोड़कर खरसाली लौट जाते हैं। खरसाली में शनिदेव का मंदिर है जो यमुनोत्री धाम से करीब 6 किलोमीटर दूर है।

दूसरा धाम… गंगोत्री
इस मंदिर में चांदी के सिंहासन पर देवी गंगा की मगर पर बैठी पत्थर की मूर्ति है। देवी की शीतकालीन पूजा मुखवा गांव में होती है। ये जगह गंगोत्री धाम से 22 किलोमीटर दूर है। मंदिर के कपाट खुलने से एक दिन पहले मुखवा गांव से देवी गंगा की डोली शुरू होती है। इस डोली में मां गंगा की भोग मूर्ति के साथ मुकुट, देवी सरस्वती और अन्नपूर्णा के भी चल विग्रह होते हैं।

मां गंगा की भोग मूर्ति। इसे चलित विग्रह भी कहते हैं।
देवी की डोली मुखवा गांव से चलकर भैरव छाप पहुंचती हैं। यहां भैरव मंदिर में देवी को रात्रि विश्राम करवाया जाता है। डोली अगले दिन अक्षय तृतीया पर सुबह गंगोत्री पहुंचती है। खास बात ये है कि गंगोत्री मंदिर समिति से चुने हुए पूजा ही गंगा मां की डोली को उठाते हैं।
गंगोत्री के कपाट सुबह 10.30 पर खुलेंगे। मुखवा गांव के सेमवाल ब्राह्मण देवी गंगा की पूजा करते हैं। वैदिक मंत्रों और स्वस्ति वाचन के साथ द्वार पूजन किया जाता है। फिर मंदिर के कपाट खुलते हैं। डोली पूजा मंडप में जाती है। इसके बाद गर्भगृह में देवी गंगा की पाषाण मूर्ति का अभिषेक, पूजन और मंगल आरती होती है। फिर राजभोग अर्पित करने के बाद दर्शन शुरू होते हैं।
मंदिर के कपाट खुलने के बाद अगले तीन दिन तक देवी गंगा के निर्माण यानी शिला रूप में दर्शन करने की परंपरा है। चौथे दिन यानी गंगा सप्तमी पर देवी की पत्थर की मूर्ति पर सोने का मुकुट और चांदी का कलेवर चढ़ाया जाता है। इसके बाद देवी के श्रंगार दर्शन शुरू होते हैं।
