किसी व्यक्ति के दिमाग में क्या चल रहा है, वह कैसा महसूस कर रहा है, ये सामने वाले व्यक्ति को पता नहीं चलता। आईआईटी जोधपुर इसे संभव बनाने की तकनीक बनाई है। आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक तैयार की है जो दिमाग की गतिविधियों को पढ़कर यह बता
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यह तकनीक ईईजी मशीन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को मिलाकर बनाई गई है। इससे यह भी पता चलेगा कि दिमाग का कौन सा हिस्सा किसी व्यक्ति को नकारात्मक या सकारात्मक सोच की ओर ले जा रहा है। इससे डॉक्टर यह समझ पाएंगे कि मरीज को किस तरह की दवाएं या इलाज की जरूरत है।
हालांकि अभी यह तकनीक प्रयोगशाला में परीक्षण के स्तर पर है, लेकिन आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिक इसे असली दुनिया में उपयोग के लायक बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। यह रिसर्च डॉ. विग्नेश मुरलीधरन और उनकी टीम ने की है। आईआईटी जोधपुर के निदेशक प्रो. अवधेश अग्रवाल ने इस रिसर्च की सराहना की है।
एडीएचडी, ऑटिज़्म, टेंशन और पार्किंसन जैसे रोगों के कारणों का पता चलेगा डॉ. मुरलीधरन ने बताया कि उनकी लैब यह समझने की कोशिश कर रही है कि हमारा दिमाग अचानक होने वाली हरकतों (impulsive) को कैसे “रोकता” है। इसी प्रक्रिया को डिकोड किया जा रहा है। यह समझना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यही सिस्टम एडीएचडी (ध्यान की कमी व अतिसक्रियता विकार), ऑटिज़्म, चिंता (anxiety) और पार्किंसन जैसी बीमारियों में ठीक से काम नहीं करता, जिससे मरीजों को व्यवहार और नियंत्रण से जुड़ी समस्याएं होती हैं। इस रिसर्च से मानसिक और तंत्रिका संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए बेहतर तरीकों का रास्ता खुलेगा।
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक से मरीज की मंशा समझ उसकी शारीरिक क्षमता बेहतर की जा सकेगी डॉ. भींवराज सुथार और डॉ. दीपांजन रॉय के साथ मिलकर डॉ. मुरलीधरन की टीम ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) तकनीक पर काम कर रही है। इस तकनीक में दिमाग और मांसपेशियों के सिग्नल को मिलाकर एक सहायक रोबोटिक डिवाइस (जैसे कि छठी रोबोटिक उंगली) चलाई जाती है। यह तकनीक उन मरीजों के लिए बनाई जा रही है जो स्ट्रोक या रीढ़ की हड्डी की चोट से उबर रहे हैं। यह डिवाइस मरीज के दिमाग में आने वाले विचारों को पढ़कर उनकी मंशा को समझती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी लकवाग्रस्त मरीज का एक हाथ काम नहीं कर रहा है और वह खाना खाना चाहता है, तो यह रोबोटिक डिवाइस उसके दिमाग के संकेतों को समझकर खाना उठाकर उसके मुंह तक ले जाएगी।