भीषण गर्मी पड़ रही हो, आपका कंठ प्यास के मारे सूख रहा हो और उसमें ठंडा-ठंडा शरबत मिल जाए तो क्या ही कहने। जो राहत और स्वाद महसूस होता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
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राजस्थानी जायका में हम आपको चैत्री गुलाब से बने खमनोर के शरबत और चांदी से बनने वाले अजमेर के शरबत से रूबरू करवा चुके हैं।
आज इस कड़ी में आपको पाली लेकर चलते हैं, जहां सफेद गुलाब से शरबत की एक खास वैरायटी तैयार की जाती है। इस शरबत को आज से 68 साल पहले यहां के वैद्यराज ने आयुर्वेदिक तरीके से तैयार किया था।

ये है वाइट रोज, जो सफेद फूलों से तैयार होता है।
पाली के गुंदोचिया के अभिषेक कटारिया (30) बताते हैं कि उनके परदादा भागचंद कटारिया वैद्यराज थे। गोल निंबडा-उदयपुरिया बाजार में ही एक छोटी सी आयुर्वेदिक दवाइयों की शॉप थी।
उस दौर में आसपास के क्षेत्र में गर्मी से राहत पहुंचाने के लिए पेय पदार्थों के विकल्प नहीं थे। ऐसे में उन्होंने सदियों पुराने आयुर्वेद के ग्रंथों से ही चार-पांच तरह के शरबत बनाना शुरू किया।
गर्मी में कोई मेहमान उनके पास आता तो वो उन्हें चाय की जगह शरबत पिलाते। यहीं से बेचने का भी सिलसिला शुरू हुआ। उस समय उन्होंने खसखस, रोज, लेमन जैसे चार फ्लेवर शर्बत बनाए।
धीरे-धीरे उनके बनाए शरबत का स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ने लगा। कभी एक बोतल 2-3 दिन में बिकती थी, डेली 4-5 बोतल बिकना शुरू हो गई।
धीरे-धीरे क्षेत्र यही शरबत ‘नवकार’ नाम से ब्रांड बन गया। वैद्य भागचंद कटारिया का 1995 में 95 साल की उम्र में देहांत हो गया। उनके बाद दादा प्रकाश कटारिया और पिता हेमंत कटारिया ने इस बिजनेस को आगे बढ़ाया।
हेमंत कटारिया के दो बेटे अभिषेक कटारिया (30) और भावेश कटारिया (25) भी अब इसी काम में जुटे हैं।

नवकार शर्बत की आज 19 वैरायटी मार्केट में मौजूद हैं।
दो साल मार्केट रिसर्च के बाद बनाए 19 फ्लेवर
वैद्य भागचंद कटारिया के पड़पोते अभिषेक कटारिया और भावेश कटारिया ने अपने पिता से शर्बत बनाने का हुनर सीखा। दोनों भाईयों ने करीब दो साल तक मार्केट का रिसर्च किया।
कई लोगों से रिव्यू के बाद सामने आया कि लोग क्वालिटी और बिना किसी केमिकल वाला शरबत पसंद करते हैं, जिससे कि उनके शरीर को कोई नुकसान नहीं हो।
साथ ही बच्चे अलग-अलग फ्लेवर पसंद करते हैं। ऐसे में दोनों भाईयों ने मिलकर वैरायटी पर काम किया और 15 नए फ्लेवर बनाए। आज 19 फ्लेवर के शर्बत बेचते हैं।

आज 19 तरह के फ्लेवर, व्हाइट रोज-केसर चंदन खास डिमांड में
अभिषेक कटारिया बताते हैं कि वर्तमान में 19 तरह के शर्बत बना रहे है। जिनमें व्हाइट रोज, गुलाब गुलकंद, केसर बादाम, केसरिया ठंडाई, केसर इलाइची, केसर चंदन, पान शर्बत, लौंग-मिश्री, बेला, सौंफ, जीरा मसाला, कैरी-पुदिना, चंदन, खस शर्बत, पाइनेपल शर्बत, लीची, रोज, ऑरेंज, लेमन शर्बत शामिल हैं।
इनमें से व्हाइट रोज और केसर चंदन शर्बत का फ्लेवर खासा डिमांड में रहता है। अभिषेक ने दावा किया कि पूरे प्रदेश में उनके जैसा वाइट रोज शर्बत कोई नहीं बनाता।
इसे बनाने में सफेद गुलाब के फूल, चांदी का बर्क और शक्कर का उपयोग करते हैं। रेड रोज पुष्कर से मंगवाते हैं। केसर-चंदन शर्बत में केसर, चंदन के अलावा इलाइची भी डाली जाती है। उनका हर फ्लेवर ऐसा है जो लोगों को गर्मी में राहत दे और स्वाद भी दे।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब

बिना सेकरीन-ग्लूकोज वाला शर्बत, क्वालिटी के कारण मार्केट में
हेमंत कटारिया ने बताया कि वे शर्बत में ग्लूकोज, सेकरीन का उपयोग नहीं करते। नेचुरल फ्लेवर रखते हैं। शर्बत में शक्कर की मात्रा कितनी रखनी है। इसका भी खास ख्याल रखा जाता है। इसके चलते 68 सालों में उनके शर्बत के स्वाद और क्वालिटी में कमी नहीं आई और बाजार में डिमांड में है।
एक 750 ML की शर्बत की एक बोतल बनती है। जिससे 30 से 35 गिलास शर्बत बनता है। एक बोतल की कीमत 165 रुपए से लेकर 350 रुपए तक है फ्लेवर के अनुसार। वर्तमान में दोनों भाई मिलकर हर महीने करीब 10 हजार बोतल शर्बत की बेच रहे हैं। इनका सालाना टर्नओवर 40 लाख के करीब है।

गर्मियों के सीजन में गिफ्ट हैंपर्स में भी यहां शर्बत की डिमांड रहती है।
कस्टमर रिव्यूज : चाय की जगह पीती हूं शर्बत
22 साल की सुरभि हिरावत ने बताया कि घर में नवकार शर्बत उनके बचपन से आ रहा है। मैं चाय नहीं पीती, इसलिए गर्मी में दूध में केसर चंदन तो कभी व्हाइट रोज शर्बत और बर्फ मिलाकर पीना पसंद करती हूं। इसके स्वाद अच्छे लगते हैं।
42 वर्षीय विकास बुबकिया ने बताया- हमारे घर में पिछले करीब 40 साल से नवकार शर्बत आ रहा है। हमारा फेवरेट खसखस और गुलाब का शर्बत हैं। अच्छी क्वालिटी और स्वाद के चलते आज भी पूरा परिवार यहीं से शर्बत खरीदता है।

मुम्बई के बिजनेसमैन जय सुराणा बताते हैं कि उन्होंने इनकी चारों पीढ़ी के हाथ से बना शर्बत टेस्ट कर रखा है। आज भी वही स्वाद और शुद्धता है। मुंबई से जब भी पाली आते हैं यह शर्बत लेकर जरूर जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनका एक दोस्त अमेरिका रहता है। उसे उन्होंने एक बार नवकार शर्बत की दो बोतल शर्बत गिफ्ट की थी। वह उसे इतना पसंद आया कि जब भी इंडिया आता है तो कॉल कर कहता है कि शर्बत की बोतल मंगवाकर रखना।
पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर

ये हैं गंगापुर सिटी के प्रसिद्ध खीरमोहन। करीब 70 साल पहले गंगापुर सिटी के हाबुलाल हलवाई ने दूध को फाड़कर एक प्रयोग से इसे बनाया था। इसके दीवाने दुबई से लेकर पाकिस्तान में भी हैं। हाबुलाल अग्रवाल ने करीब 1950 में खीरमोहन की मिठाई बनाई थी। इसका बेहतरीन स्वाद ऐसा था कि धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा। हाबु हलवाई ने अपनी छोटी से दुकान पर खीरमोहन बेचकर कई सालों तक एकछत्र राज किया… (CLICK कर पूरी कहानी पढ़ें)