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- Why Did Kunti Ask For Sorrow As A Boon From Lord Krishna?, Mahabharata Story In Hindi, Kunti And Krishna Story In Hindi
6 घंटे पहले
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महाभारत का युद्ध खत्म हो चुका था। पांडवों ने कोरवों को पराजित कर दिया था। जब पांडवों के परिवार में सबकुछ ठीक हो गया तो, श्रीकृष्ण ने सोचा कि अब मुझे द्वारका लौट जाना चाहिए। श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताया तो सभी दुखी हो गए, लेकिन श्रीकृष्ण ने तय कर लिया था और वे अपनी नगरी द्वारका लौट रहे थे। भगवान का रथ आगे थोड़ा बढ़ा तो रथ के सामने कुंती खड़ी हो गईं। अपनी बुआ को देखकर श्रीकृष्ण रथ से नीचे उतरे और आदरपूर्वक प्रणाम करने लगे, लेकिन कुंती ने उन्हें रोक दिया और स्वयं उन्हें प्रणाम करने लगीं। श्रीकृष्ण ने मुस्कराकर पूछा, “बुआ, आप ये क्या कर रही हैं? आप तो मेरी माता तुल्य हैं। जब तक मैं यहां रहा, रोज आपको प्रणाम करता रहा। आज आप ये उल्टा क्यों कर रही हैं?” कुंती गंभीर हो गईं और बोलीं, “कृष्ण, अब ये बुआ-भतीजे का रिश्ता बहुत हुआ। मैं जानती हूं कि तुम भगवान हो। मेरे बच्चों ने बचपन से तुम्हारी कहानियां भगवान के रूप में सुनी हैं। अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर हूं। तुम भगवान हो, इसलिए मैं कुछ मांग सकती हूं?” श्रीकृष्ण बोले, “आप मांगीजिए बुआ। आज मैं भगवान, आप भक्त। जो भी चाहें, मांग लीजिए।” कुंती ने कहा — “मेरे जीवन में दुख आते रहें।” यह सुनकर श्रीकृष्ण चौंक गए। “बुआ, ये क्या मांग लिया आपने? आपके जीवन में तो पहले ही बहुत दुख आए हैं, पति को खोया, वनवास झेला, पुत्रों की पीड़ा देखी। अब और दुख क्यों?” कुंती की आंखों में भगवान के लिए प्रेम था। वे बोलीं- “कृष्ण, जब-जब मेरे जीवन में दुख आया, तुम मेरे सबसे करीब रहे। तुमने मार्गदर्शन दिया, मेरी आत्मा को सहारा दिया। लेकिन जब सुख आया, तुम्हारी याद कम हो गई। मैं नहीं चाहती कि मैं तुम्हें कभी भूलूं। दुख मेरे लिए साधना है, क्योंकि दुख में मैं तुम्हारे निकट आ जाती हूं। हर पल तुम्हारा ध्यान करती हूं, भक्ति करती हूं।” श्रीकृष्ण थोड़ी देर मौन रहे, फिर उनके चेहरे पर मुस्कान लौट आई। उन्होंने कहा — “जैसी आपकी मर्जी बुआ।” इस प्रसंग की सीख इस प्रसंग को केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी देखना चाहिए। इस प्रसंग से हम 5 बातें सीख सकते हैं- 1. दुख जीवन का हिस्सा है कोई भी जीवन सिर्फ सुखी नहीं हो सकता है। उतार-चढ़ाव जीवन का स्वभाव है। दुख को स्वीकारना, उसका सामना करना ही मजबूत व्यक्ति की पहचान है। 2. दुख हमें जागरूक बनाता है सुख में मन अक्सर भटकता है, आत्ममुग्ध हो जाता है, लेकिन दुख हमें भीतर की ओर मोड़ता है, आत्ममंथन की ओर, ईश्वर की ओर, आत्मबल की ओर। यही आत्मनियंत्रण और सजगता जीवन में सुख और सफलता दिलाते हैं। 3. संकट में भगवान का ध्यान करें कुंती का भाव था कि दुख में भगवान याद आते हैं — यानी वह आंतरिक शक्ति, जिसे हम ईश्वर कहते हैं, दुख के दिनों में उसी से जुड़ना चाहिए, बजाय इसके कि हम भगवान से दूर हो जाएं। 4. दुख में भी आत्मविश्वास बनाए रखें जब हम कठिन समय से गुजरते हैं, तब ही हमारी असली हिम्मत और आत्मबल सामने आता है। इस संघर्ष में ही जीवन की असली शिक्षा छुपी होती है। बुरे दिनों में आत्मविश्वास बनाए रखेंगे तो जल्दी हालात बदल सकते हैं। 5. भक्ति और ध्यान से मन होता है शांत जब भी जीवन में कोई दुख आए तो उसे उसका सामना सकारात्मक सोच के साथ करना चाहिए। भक्ति के साथ ही ध्यान और आत्मचिंतन करेंगे तो मन शांत रहेगा और हम सही निर्णय लेकर जीवन में सुख-शांति फिर से पा सकते हैं। दुख को शत्रु नहीं, साधना का समय मानना चाहिए। तब ही जीवन में संतुलन आएगा।