34 मिनट पहले
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ज्येष्ठ मास की अमावस्या दो दिन यानी आज 26 मई (सोमवार) और कल 27 मई (मंगलवार) को रहेगी। 26 मई को सुबह 11 बजे से अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी और 27 मई की सुबह 8:40 बजे तक रहेगी। इस पर्व पर पितृ तर्पण, दान-पुण्य, व्रत और नदी स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है, पंचांग भेद की वजह से कुछ जगहों पर 26 मई को कुछ जगहों पर 27 मई को ये पर्व मनाया जाएगा।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, श्राद्ध कर्म अमावस्या तिथि पर दोपहर लगभग 12 बजे करना श्रेष्ठ माना गया है। इसलिए 26 मई की दोपहर पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और जल अर्पण जैसे कार्य करें। 27 मई की सुबह अमावस्या तिथि खत्म हो जाएगी, इसलिए आज पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। 27 मई की सुबह सूर्य उदय के समय नदी स्नान, पूजा-पाठ और व्रत करना विशेष रूप से पुण्यदायक रहेगा।
ज्येष्ठ अमावस्या को पितरों के लिए अत्यंत शुभ तिथि माना जाता है। शास्त्रों में उल्लेख है— “अमावास्यायां तु विधाय जलं, पितृणां प्रसन्नता लभते” यानी अमावस्या के दिन जल अर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यदि नदी स्नान संभव न हो, तो गंगाजल मिलाकर घर पर ही स्नान किया जा सकता है।
नौतपा की गर्मी में दान करें जल और जूते-चप्पल
इस समय नौतपा चल रहा है और गर्मी अपने चरम पर है। इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या पर ऐसे दान करें, जिससे लोगों को राहत मिले। छाता, जूते-चप्पल, पानी से भरे घड़े, कपड़े, सत्तू, गुड़, बेलपत्र और पंखे आदि का दान इस दिन विशेष फलदायी माना गया है।
वट सावित्री व्रत: पतिव्रता धर्म का प्रतीक है ये व्रत
ज्येष्ठ अमावस्या पर महिलाएं वटवृक्ष (बड़ के पेड़) की पूजा करती हैं और वट सावित्री व्रत रखती हैं। यह व्रत सावित्री-सत्यवान की कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से वापिस प्राप्त किए थे। व्रत करने वाली महिलाओं को पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य, सौभाग्य और सम्मान की प्राप्ति होती है। महिलाएं वटवृक्ष की परिक्रमा कर कच्चा सूत बांधती हैं और पति की मंगलकामना करती हैं।
शनि जयंती पर तेल से करें अभिषेक
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या को शनि देव का प्राकट्य हुआ था। इस दिन शनि देव का सरसों के तेल से अभिषेक, तेल का दान, पीपल की पूजा, हनुमान चालीसा का पाठ और दीप दान करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।
भगवान विष्णु और शिव की करें पूजा
इस तिथि पर उपवास रखकर भगवान विष्णु या भगवान शिव की पूजा करने की परंपरा है। श्राद्ध के पश्चात गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराना पितरों की तृप्ति का माध्यम माना गया है।
ज्येष्ठ अमावस्या, तप, श्रद्धा और सेवा का पर्व है। यह दो दिवसीय अवसर हमें पितृ ऋण चुकाने, समाज की सेवा करने और ईश्वर की आराधना के माध्यम से जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने का सुंदर अवसर प्रदान करता है।