सौरभ दीक्षित | पीलीभीतकुछ ही क्षण पहले
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पीलीभीत के इंडो-नेपाल बॉर्डर पर स्थित गांवों में धर्मांतरण का मामला सामने आया है। यहां करीब 3000 परिवारों के धर्म परिवर्तन की जानकारी मिली है। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद कई लोगों ने घर वापसी का दावा किया है।
बेलहा गांव के परमजीत का मामला इस धर्मांतरण की कहानी को बयां करता है। सफेद दाद की बीमारी के इलाज के लिए उन्होंने अपनी पत्नी, मां और तीन बच्चों के साथ ईसाई धर्म अपना लिया। उनकी 10 वर्षीय बेटी रीना को ईसाई प्रार्थनाएं मुंहजुबानी याद हैं।

यह धर्मांतरण का सिलसिला 2002 से शुरू हुआ। नेपाली पादरी यहां आए और स्थानीय एजेंट बनाए। इन एजेंटों को आर्थिक लाभ भी दिया गया। धर्मांतरण में विदेशी फंडिंग के आरोप भी सामने आए हैं, लेकिन अधिकारी इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
पुलिस और प्रशासन ने गांव में जाकर लोगों को समझाया। घरों के बाहर बने ईसाई धर्म के प्रतीक चिह्न हटवा दिए गए। फिर भी कई परिवार आज भी ईसाई धर्म को मानते हैं। वे बाइबल का पाठ करते हैं और ईसाई प्रार्थनाएं करते हैं। चर्च जाना और चंगाई सभा में शामिल होना भले ही बंद कर दिया हो, लेकिन उनके दिल में ईसाई धर्म के प्रति सम्मान बना हुआ है।