Movie Review – Love Karoon Ya Shaadi | मूवी रिव्यू- लव करूं या शादी: इरादे नेक, लेकिन असर अधूरा,  कुछ हल्के पल और  प्रासंगिक मुद्दा इसे एक बार देखने लायक जरूर बनाते हैं

Actionpunjab
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7 घंटे पहले

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डायरेक्टर जयप्रकाश शॉ की फिल्म ‘लव करूं या शादी’ आज के युवाओं की कहानी है, जो अपने सामाजिक मूल्यों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच भ्रमित हैं। यह फिल्म कल यानि की 30 मई को रिलीज होगी। इस फिल्म में मैरिना सिंह, आकर्ष अलघ, मीशा कपूर, गोविंद नामदेव, मिलिंद गुनाजी, अली असगर जैसे कलाकारों की प्रमुख भूमिका है। इस फिल्म को दैनिक भास्कर ने 5 में से 3 स्टार रेटिंग दी है।

फिल्म की स्टोरी कैसी है?

फिल्म की कहानी में आज के युवाओं की परंपरा और पसंद के बीच की टकराहट को दिखाने का प्रयास किया गया है। आज की पीढ़ी सामाजिक मूल्यों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच किस तरह से भ्रमित है। यह फिल्म इस बात पर जोर देती है। फिल्म की कहानी एक मां की है, जो बेटे की शादी कराना चाहती है, लेकिन एक प्रेमिका जो भावनात्मक रूप से उलझी है, और एक दोस्त जो शादी के नाम से डराता है। इसी के इर्द-गिर्द फिल्म की पूरी कहानी घूमती है।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

मिशा कपूर का किरदार कुछ दृश्यों में हंसी दिला जाता है, जिससे फिल्म की लय थोड़ी संभलती है। फिल्म के बाकी कलाकार आकर्ष अलघ और मैरीना सिंह ने अपने किरदार के साथ न्याय करने की कोशिश की हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से अपने किरदार से कनेक्ट नहीं हो पाते है। गोविंद नामदेव, मिलिंद गुनाजी और अली असगर जरूर अपनी परफॉर्मेंस से प्रभावित करते हैं।

फिल्म का डायरेक्शन कैसा है?

फिल्म एक ऐसे मुद्दे पर बात करती है, जो आज के युवाओं से जुड़ा है। यह प्यार बनाम पारिवारिक दबाव को दर्शाता है। फिल्म के डायरेक्टर ने ऐसे विषय को चुना है, जो दर्शकों को छू सकता है। लेकिन कहानी एक ऐसे मोड़ पर आ जाती है, जब लगने लगता है कि इसमें कुछ नया है। फिल्म की कहानी पहले से देखे-सुने जैसे ट्रैक पर चलती है। डायरेक्शन में भी रफ्तार की कमी है, कई सीन खिंचे हुए लगते हैं।

फिल्म का म्यूजिक कैसा है?

फिल्म का कोई गाना ऐसा नहीं जो सिनेमाघर से निकलते वक्त होंठों पर रह जाए। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी सामान्य है।

फिल्म का फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं?

यह एक अच्छी मंशा के साथ बनी फिल्म है, लेकिन अपने उद्देश्य तक पूरी तरह पहुंचने में लड़खड़ा जाती है। न कहानी चौंकाती है, न किरदार बांधते हैं। कुछ हल्के पल और एक प्रासंगिक मुद्दा इसे एक बार देखने लायक जरूर बनाते हैं। इससे ज्यादा की उम्मीद करना खुद से बेइंसाफी होगी।

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