Gupt Navratri will continue till 4th July, significance of Gupt Navratri 2025, story of goddess sati and shiv ji | 4 जुलाई तक रहेगी गुप्त नवरात्रि: देवी सती की दस महाविद्याओं की साधना का उत्सव है गुप्त नवरात्रि, जानिए कैसे प्रकट हुईं ये महाविद्याएं

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6 घंटे पहले

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कल (26 जून) से आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि शुरू हो गई है। इस बार की आषाढ़ गुप्त नवरात्रि पूरे नौ दिनों की है, क्योंकि प्रतिपदा से नवमी तक किसी भी तिथि का क्षय नहीं होगा। 4 जुलाई को भड़ली नवमी पर देवी सती की दस महाविद्याओं की साधना का ये उत्सव खत्म हो जाएगा।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, गुप्त नवरात्रि में देवी सती की दस महाविद्याओं की साधना गुप्त रूप से की जाती है। इन महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला देवी शामिल हैं। दस महाविद्याओं की उत्पत्ति से जुड़ी एक कथा बहुत प्रचलित है। जानिए ये कथा…

कैसे प्रकट हुईं दस महाविद्याएं

देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष शिव जी को पसंद नहीं करते थे। वे शिव जी को अपमानित करने का एक भी अवसर नहीं छोड़ते थे। एक बार दक्ष ने एक यज्ञ आयोजित किया। इस यज्ञ में उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त प्रमुख देवी-देवताओं, ऋषियों, तपस्वियों, मुनियों और कई राजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन जानबूझकर उन्होंने भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को उस यज्ञ में नहीं बुलाया।

जब देवी सती को ये मालूम हुआ कि उनके पिता यज्ञ कर रहे हैं और आमंत्रित नहीं किया है तो देवी को दुख तो हुआ, लेकिन पुत्री धर्म और भावनाओं से विवश होकर देवी ने यज्ञ में जाने का मन बना लिया। सती ने शिव जी से इस संबंध में चर्चा की और यज्ञ में जाने की इच्छा बताई।

शिव जी ने शांतिपूर्वक और स्नेहपूर्वक सती को समझाया कि किसी भी यज्ञ या आयोजन में बिना आमंत्रण के जाना उचित नहीं होता, विशेषकर जब आयोजक के हृदय में हमारे लिए अच्छे भाव न हो। हमें वहां अपमान का सामना करना पड़ सकता है।

शिव जी की बातें सुनकर सती ने तर्क दिया कि एक पुत्री को अपने पिता के घर जाने के लिए किसी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती, और ये पुत्री का अधिकार है कि वह यज्ञ में जा सकती है।

शिव जी ने उन्हें बार-बार विनम्रता से समझाने का प्रयास किया, लेकिन देवी सती का मन विचलित हो चुका था। जब शिव जी ने उन्हें रोकना जारी रखा तो देवी सती क्रोधित हो गईं। उसी क्षण देवी सती ने उग्र और भयंकर रूप धारण कर लिया। उनका तेज इतना प्रचंड हो गया कि सभी देवता डर गए थे।

शिव जी जब सती के इस भयंकर रूप को देखकर पीछे हटने लगे तो दसों दिशाओं से देवी सती के दस विभिन्न रूप प्रकट हो गए। ये दस रूप ही दस महाविद्याओं के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। ये महाशक्तियां थीं-

  • काली, जो काल का नाश करने वाली हैं।
  • तारा, जो ज्ञान और तारक मंत्र की अधिष्ठात्री हैं।
  • त्रिपुरासुंदरी (षोडशी), जो सौंदर्य और ब्रह्मज्ञान की देवी हैं।
  • भुवनेश्वरी, समस्त जगत की अधिपति शक्ति।
  • छिन्नमस्ता, जो आत्मबलिदान और चेतना की प्रतीक हैं।
  • त्रिपुराभैरवी, जो तंत्र मार्ग की रक्षक हैं।
  • धूमावती, जो त्याग और वैराग्य की मूर्ति हैं।
  • बगलामुखी, जो शत्रुओं को वशीभूत करने वाली हैं।
  • मातंगी, जो वाणी, संगीत और विद्या की देवी हैं।
  • कमला, जो समृद्धि और लक्ष्मी रूप में पूजनीय हैं।

इन दिव्य रूपों के प्रकट होने के बाद देवी सती का क्रोध शांत हुआ, देवी अपने पिता के यहां यज्ञ में पहुंच गईं। यज्ञ स्थल पर दक्ष ने सती को देखते ही शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कहना शुरू कर दीं। ये बातें देवी सती के लिए असहनीय थीं।

इस अपमान को देवी सती सहन नहीं कर सकीं और उसी क्षण यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह का त्याग कर दिया।

इस प्रकार, देवी सती के क्रोध से प्रकट हुईं दस महाविद्याएं तांत्रिक साधना, शक्ति उपासना और अध्यात्म के मार्ग में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

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