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10 घंटे पहले
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रविवार, 7 सितंबर को भाद्रपद मास की पूर्णिमा है, इस तिथि पर पूर्ण चंद्र ग्रहण हो रहा है और ये ग्रहण भारत में भी दिखेगा। इसलिए इसका सूतक भी रहेगा। इस पूर्णिमा पर दान-पुण्य, स्नान, और व्रत करने की परंपरा है।
मान्यता है कि चंद्र ग्रहण और सूतक के समय में पूजा-पाठ, भोजन नहीं करना चाहिए। इसी वजह से सूतक काल से ग्रहण खत्म होने तक मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। ग्रहण के बाद स्नान करके मंदिरों की शुद्धि की जाती है और फिर भक्तों के लिए मंदिर खोले जाते हैं। 2025 में भारत में दिखाई देने वाला ये एक मात्र ग्रहण है। इसके बाद 21 सितंबर को सूर्य ग्रहण होगा, जो कि भारत में नहीं दिखेगा।
कब शुरू होगा चंद्र ग्रहण और सूतक
उज्जैन की जीवाजी वैधशाला के अधीक्षक राजेंद्र गुप्त के मुताबिक, चंद्र ग्रहण 7 और 8 सितंबर की दरमियानी रात होगा।
- ग्रहण की शुरुआत: 7 सितंबर की रात 9.56 बजे से होगी।
- ग्रहण का मध्य: रात 11.41 बजे रहेगा। इस समय पूर्ण चंद्र ग्रहण दिखाई देगा।
- कब खत्म होगा: रात 1.26 बजे ग्रहण खत्म हो जाएगा।
- भारत के अलावा और कहां दिखेगा: ये चंद्र ग्रहण एशिया, हिन्द महासागर, अंटार्कटिका, पश्चिमी प्रशांत महासागर, आस्ट्रेलिया और यूरोप में भी दिखाई देगा।
- ग्रहण का सूतक कब शुरू होगा: पं. शर्मा के मुताबिक, चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है। चंद्र ग्रहण का सूतक दोपहर 12.56 बजे से शुरू होगा और ग्रहण खत्म होने के साथ ही खत्म होगा। भाद्रपद पूर्णिमा से जुड़े धर्म-कर्म सूतक शुरू होने से पहले करना चाहिए।
3 प्रकार के होते हैं चंद्र ग्रहण
- पूर्ण चंद्र ग्रहण – जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आ जाती है और ये तीनों ग्रह एक सीधी लाइन में होते हैं, तब चंद्र पर पृथ्वी की छाया पड़ती है और चंद्र लाल दिखने लगता है। इस स्थिति को पूर्ण चंद्र ग्रहण कहते हैं।
- आंशिक चंद्र ग्रहण – जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आती है, लेकिन ये तीनों ग्रहण एक सीधी लाइन में नहीं होते हैं, तब चंद्र के कुछ हिस्से पर पृथ्वी की छाया पड़ती है, जिससे आंशिक चंद्र ग्रहण होता है।
- मांद्य यानी उपच्छाया चंद्र ग्रहण – इस चंद्र ग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता है। इस ग्रहण में सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आती है, लेकिन तीनों ग्रह सीधी लाइन में नहीं होते और चंद्र पर पृथ्वी की सिर्फ हल्की सी छाया पड़ती है, जो कि चंद्र पर धूल की तरह दिखती है।
चंद्र ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यता
पं. शर्मा कहते हैं, जब राहु सूर्य या चंद्र को ग्रसता है यानी निगलता है, तब ग्रहण होता है। इस संबंध में राहु और समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है। पुराने समय में देवताओं और दानवों ने एक साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से अंतिम रत्न अमृत निकला। देवता और दानव दोनों ही अमृत पीकर अमर होना चाहते थे। उस समय भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए मोहिनी अवतार लिया था।
मोहिनी देवताओं को अमृत पिला रही थी। उसी समय राहु देवताओं के बीच भेष बदलकर बैठ गया और उसने भी अमृत पी लिया। सूर्य-चंद्र ने राहु को पहचान लिया था और विष्णु जी को राहु की सच्चाई बता दी। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया।
राहु अमृत पी चुका था, इस वजह से वह मरा नहीं। राहु के दो हिस्से हो गए। एक हिस्सा राहु और दूसरा हिस्सा केतु के नाम से जाना जाता है।
राहु की शिकायत सूर्य-चंद्र ने की थी, इस वजह से राहु इन दोनों को दुश्मन मानता है और समय-समय पर इन दोनों ग्रहों को ग्रसता है, जिसे ग्रहण कहते हैं।