Delhi High Court Rape Case Update; Educated Women | Partner | हाईकोर्ट बोला- शिक्षित महिला नहीं कह सकती वह गुमराह है: अगर मर्जी से शादीशुदा पुरुष से संबंध रखती है; अपने फैसलों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए

Actionpunjab
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नई दिल्लीकुछ ही क्षण पहले

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दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के एक मामले में फैसला सुनाते हुए 3 सितंबर को यह टिप्पणी की थी। - Dainik Bhaskar

दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के एक मामले में फैसला सुनाते हुए 3 सितंबर को यह टिप्पणी की थी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक शिक्षित और स्वतंत्र महिला अपनी मर्जी से एक शादीशुदा पुरुष के साथ संबंध रखती है, तो वह यह दावा नहीं कर सकती कि उसे गुमराह या शोषित किया जा रहा है।

हाईकोर्ट ने यह फैसला एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करते हुए सुनाया, जिस पर शादी का झांसा देकर, धोखाधड़ी और ठगी के साथ-साथ शिकायतकर्ता ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने रेप का मामला खारिज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता को पता था कि आरोपी ने किसी और से शादी कर ली है, फिर भी वह उसके साथ स्वेच्छा से रही और यौन संबंध बनाए रखे।

कोर्ट ने कहा- ये परिस्थितियां पुष्ट करती हैं कि दोनों पक्षों के बीच संबंध सहमति से थे और शादी के झूठे वादे से प्रेरित नहीं थे। ऐसे मामलों में वयस्कों को अपनी मर्जी से लिए गए फैसलों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

कोर्ट का यह फैसला 3 सितंबर को आया था, जिसकी जानकारी अब सामने आई है। महिला ने दावा किया था कि आरोपी ने शादी का वादा करके कई बार उसका रेप किया और बाद में दूसरी महिला से शादी कर ली।

जस्टिस बोलीं- रिश्ता टूटने पर रेप के आरोप लगाए जाते हैं जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने आगे कहा कि न्याय प्रणाली रेप के मामलों से जुड़े केस के बोझ तले दबी जा रही है। अक्सर लंबे समय तक सहमति से बने संबंधों के बाद शादी के झूठे वादे के आधार पर रेप के आरोप लगाए जाते हैं।

जस्टिस ने कहा- अदालतों में ऐसे कई मामले आते हैं जहां पक्ष, बालिग होने के बावजूद, लोग स्वेच्छा से लंबे समय तक यौन संबंध बनाते हैं, और अंत में तालमेल की कमी या किसी अन्य मतभेद के कारण संबंध टूट जाता है, तो रेप के आरोप लगाते हैं।

फैसले में आगे कहा गया- ऐसे हर असफल रिश्ते को रेप के मामले में बदलने की इजाजत देना न केवल न्याय की संवैधानिक दृष्टि से गलत होगा, बल्कि यौन अपराधों के कानून की मूल भावना और उद्देश्य के भी विपरीत होगा।

कोर्ट ने कहा- रेप के खिलाफ कानून का मकसद महिलाओं की शारीरिक अखंडता और स्वायत्तता की रक्षा करना और उन लोगों को सजा देना है जो बलपूर्वक या धोखे से उनका शोषण करते हैं। इसे उन विवादों में हथियार बनने के लिए नहीं बनाया गया है जहां दो वयस्क अपनी सहमति, पसंद और उससे जुड़े परिणामों से पूरी तरह वाकिफ होते हुए, बाद में अलग हो जाते हैं।

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