23 घंटे पहले
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पितृ पक्ष पूर्वजों को याद करने और उनके लिए धर्म-कर्म करने का उत्सव है। घर-परिवार के मृत सदस्यों को पितर देव माना जाता है। पितृ पक्ष में इन्हें याद करते हुए धूप-ध्यान करने की परंपरा है। इन दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म भी किए जाते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पितृ पक्ष में तर्पण करते समय जल को सीधे हाथ की हथेली में लेकर अंगूठे की ओर से धीरे-धीरे पितरों को अर्पित किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि हस्तरेखा ज्योतिष में अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग को पितृ तीर्थ माना गया है। यह भाग पितर देवताओं का निवास स्थान है। पितरों को अंगूठे की ओर से जल चढ़ाने का अर्थ ये है कि ये जल पितृ तीर्थ से होकर पितरों तक पहुंचता है, जिससे उन्हें तृप्ति मिलती है।
पिडंदान करते समय जल अर्पित करना एक बेहद महत्वपूर्ण कर्म होता है। पं. शर्मा बताते हैं कि जल को पिंडों पर अंगूठे की मदद से धीरे-धीरे चढ़ाया जाना चाहिए। इससे पितरों को जल की भेंट स्नेहपूर्वक और श्रद्धा के साथ पहुंचती है।
जीवित व्यक्ति को भोजन देते समय हथेली बाहर की ओर रहती है, लेकिन मृतक के लिए जल अर्पित करते समय जल अंगूठे की ओर से चढ़ाया जाता है और हाथ की हथेली को अंदर की ओर रखते हुए तर्पण किया जाता है। इसका एक और भी गहरा अर्थ है कि पितरों का स्थान अब इस भौतिक दुनिया में नहीं रहा, बल्कि वे दूसरी दुनिया में हैं। जल के माध्यम से हम उन्हें उनकी दूसरी दुनिया में तृप्त रहने का संकेत देते हैं।
21 सितंबर को है पितृ पक्ष की अमावस्या
पितृ पक्ष के दौरान जिन लोगों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, वे पितृ पक्ष की अमावस्या पर श्राद्ध कर सकते हैं। इस बार अमावस्या तिथि 21 सितंबर को पड़ रही है। इस दिन विशेष पिंडदान और तर्पण कर पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।
पितृ पक्ष में इन बातों का ध्यान रखें?
पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले तो अधार्मिक कर्मों से बचना चाहिए। पितृ पक्ष एक पवित्र और आध्यात्मिक समय है, इसलिए इस दौरान सदाचार, धर्म और नैतिकता का पालन करना चाहिए।
इसके अलावा पितृ पक्ष में पवित्र नदियों में स्नान करने की भी परंपरा है। यदि किसी कारणवश नदी में स्नान संभव न हो तो घर पर ही सभी तीर्थस्थलों और पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान किया जाना चाहिए। पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद दान-पुण्य करना चाहिए। दान में अनाज, धन या अन्य वस्तुएं दी जा सकती हैं। ये दान पुण्य को बढ़ाता है और परिवार में सुख-शांति का वातावरण बनाए रखता है। ऐसी मान्यता है।