12 घंटे पहले
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आज (23 सितंबर) शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है, देवी की कथा का पाठ किया जाता है। जानिए कैसा है देवी का स्वरूप, देवी पूजा की विधि और कथा…


देवी ब्रह्मचारिणी की कथा
देवी ने हिमालयराज के यहां पुत्री रूप में अवतार लिया था। इन्हें हम पार्वती के रूप में भी जानते हैं। देवी भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने नारद मुनि से मार्गदर्शन प्राप्त किया। नारद जी के निर्देश पर देवी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत कठोर तपस्या आरंभ की। यह तपस्या इतनी कठिन थी कि देवी को ब्रह्मचारिणी कहा गया।
मान्यता है कि देवी ने सहस्रों वर्षों तक तप किया था। तपस्या के समय में वे केवल फूल और बिल्वपत्र खाकर जीवन यापन करती रहीं। उन्होंने लंबे समय तक उपवास रखे। वर्षा, धूप, शीत, हर मौसम में बिना विचलित हुए तप करती रहीं।
इतने कठोर तप के बाद भी जब भगवान शिव प्रकट नहीं हुए, तो देवी ने फल, पत्तियों और जल का भी त्याग कर दिया। पत्ते खाना छोड़ देने के कारण देवी का एक और नाम अपर्णा पड़ा।
कठिन तपस्या और त्याग से उनका शरीर अत्यंत कमजोर हो गया, लेकिन देवी की आस्था अडिग रही। अंततः देवी की भक्ति, साधना और कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और मनचाहा वरदान दिया। इसके बाद देवी पार्वती और शिव का विवाह हुआ।
देवी ब्रह्मचारिणी की सीख
देवी ब्रह्मचारिणी का ये स्वरूप हमें सिखाता है कि जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत, धैर्य और आत्मविश्वास जरूरी है।
हमें तब तक प्रयास करते रहना चाहिए, जब तक हमारा लक्ष्य पूरा न हो जाए। असफलता मिलने पर भी हमें सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए और आवश्यकता हो तो प्रयास का तरीका बदलना चाहिए। यही मार्ग हमें सफलता की ओर ले जाता है।
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों में तप, त्याग, सदाचार और संयम जैसे गुण उत्पन्न होते हैं।