टोक्यो8 मिनट पहले
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जापान को पहली बार महिला प्रधानमंत्री मिलने जा रही हैं। सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने पूर्व आर्थिक सुरक्षा मंत्री साने ताकाइची को नया अध्यक्ष चुना है।
जापान में बहुमत वाली पार्टी का अध्यक्ष ही पीएम बनता है। ऐसे में लगभग तय है कि वह अगली प्रधानमंत्री बनेंगी।
ताकाइची पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की करीबी मानी जाती हैं। शिंजो जापान में सबसे लंबे समय तक PM रहे थे। उन्हें चीन विरोधी नेता माना जाता है।
ताकाइची देश में पुरुष राजा के शासन की समर्थक हैं, साथ ही रानी के पद संभालने और शासन करने के खिलाफ हैं। इन्होंने 2004 में साथी सांसद ताकू यामामोटो से शादी की। जुलाई 2017 में राजनीतिक मतभेदों के चलते अलग हो गए। इसके बाद 2021 में फिर साथ आ गए।

अध्यक्ष घोषित होने के बाद ताकाइची का तालियां बजाकर स्वागत किया गया।
पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे को हराया
ताकाइची ने पूर्व प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइजुमी के बेटे को हराकर चुनाव जीता। कोइजुमी अभी देश के कृषि मंत्री हैं। ताकाइची को पीएम बनाने के लिए जल्द ही संसद में वोटिंग होगी।
ताकाइची पीएम शिगेरु इशिबा की जगह लेंगी। जुलाई में हुए ऊपरी सदन के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद पार्टी में इशिबा का विरोध बढ़ गया था।
LDP ने ताकाइची को ऐसे समय में चुना है जब देश में लोग महंगाई से नाराज हैं और विपक्षी पार्टियों का समर्थन करने लगे हैं। पार्टी को उम्मीद है कि वे जनता का समर्थन हासिल करेंगी और सत्ता में बनी रहेंगी।
पहले फेज में बहुमत नहीं, दूसरे दौर में जीत मिली
चुनाव के पहले फेज में किसी नेता को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इसके बाद शीर्ष दो दावेदारों ताकाइची और कोइजुमी के बीच दूसरे दौर का मुकाबला हुआ। इसमें ताकाइची को 185 वोट जबकि कोइजुमी को 156 वोट मिले।
ताकाइची ने चुनाव जीतने के बाद कहा- ‘मैं खुश होने के बजाय यह सोच रही हूं कि आगे का रास्ता कितना मुश्किल होने वाला है।’

साने ताकाइची ने कृषि मंत्री कोइजुमी को हराकर चुनाव जीता।
ट्रम्प के साथ ट्रेड डील की विरोधी
- ताकाइची हाल ही में ट्रम्प प्रशासन के साथ हुए ट्रेड डील के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि इस पर फिर से बातचीत की जानी चाहिए।
- जापान और अमेरिका के बीच अगस्त में डील हुई थी। इसमें जापान ने अमेरिका में 550 अरब डॉलर का निवेश करने का वादा किया था।
- ताकाइची समलैंगिक विवाह की विरोधी हैं। उनका मानना है कि इससे पारिवारिक मूल्य कम होते हैं।
- देश में पुरुष राजा के होने की समर्थक हैं और रानी के शासन के खिलाफ हैं।
- विदेशियों के जापान में आने के नियमों को सख्त करने की मांग कर चुकी हैं। उनका मानना है कि गैर कानूनी रूप से आने वाले लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
- वैवाहिक जोड़े के नाम में अलग-अलग टाइटल रखने का विरोध करती हैं।
2017 में पति को तलाक दिया, 4 साल बाद फिर साथ आए
साने ताकाइची ने 2004 में अपनी पार्टी के ही सांसद ताकू यामामोटो से शादी की थी। लेकिन जुलाई 2017 में दोनों ने राजनीतिक मदभेद होने की वजह से तलाक ले लिया।
उस समय उनके अलग होने की खबरें मीडिया में खूब चर्चा में रही। हालांकि 4 साल बाद दिसंबर 2021 में दोनों ने दोबारा शादी कर ली।
इसके बाद, ताकू यामामोटो ने अपने सरनेम को बदलकर ताकाइची कर लिया।

सेकेंड वर्ल्ड वॉर में मारे गए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी
जापान में जंग में मारे गए सैनिकों की आत्माओं को सम्मानित करने के लिए 1869 में यासुकुनी तीर्थ स्थल बनाया गया। राजधानी टोक्यो में स्थित इस स्थल के बारे में कहा जाता है कि यहां पर 25 लाख जापानी सैनिकों की आत्माएं हैं।
यहां पर द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) में दोषी ठहराए गए युद्ध अपराधियों को भी सम्मानित किया गया है। विश्व युद्ध में जापानी सेना के अत्याचार (जैसे नानकिंग नरसंहार, जबरन श्रमिकों का शोषण, और यौन गुलामी) के कारण चीन और दक्षिण कोरिया इसे जापानी साम्राज्यवाद का प्रतीक मानते हैं।
ऐसे में जब जापान का कोई पीएम यासुकुनी का दौरा करता है तो ये नाराज हो जाते हैं। उनका मानना है कि इससे जापानी सैनिकों की क्रूरता को सही ठहराया जा रहा है। ताकाइची ने पीएम दावेदारी से पहले 15 अगस्त को यासुकुनी का दौरा किया था, तब इसकी काफी चर्चा हुई थी।

यासुकुनी तीर्थ स्थल का दौरा करते जापानी नेता। तस्वीर 2013 की है।
PM शिगेरू इशिबा ने सितंबर में इस्तीफा दिया था
शिगेरू इशिबा सितंबर 2024 में पीएम बने थे। वे पार्टी में ‘आउटसाइडर’ थे, यानी उनका कोई गॉडफादर नहीं था। उन्होंने वादा किया था कि महंगाई और आर्थिक समस्याओं को ठीक करेंगे, लेकिन उनका समय मुश्किल भरा रहा।
1. चुनावी हार का झटका: अक्टूबर 2024 के निचले सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव) चुनाव में LDP-कोमेइतो गठबंधन बहुमत हार गया। फिर जुलाई 2025 के ऊपरी सदन (हाउस ऑफ काउंसलर्स) चुनाव में भी बुरी हार हुई। पार्टी को 1955 के बाद पहली बार दोनों सदनों में बहुमत गंवाना पड़ा।
2. पार्टी का दबाव: हार के बाद पार्टी के अंदरूनी लोग इशिबा पर इस्तीफे का दबाव डालने लगे। इनका आरोप है कि इशिबा ‘बहुत उदार’ हैं, जबकि पार्टी को कंजर्वेटिव लीडर चाहिए। इशिबा ने 7 सितंबर 2025 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा- मैं पार्टी में फूट नहीं चाहता। अब नई पीढ़ी को मौका दूंगा।

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