Supreme Court said- Governments should create a system to stop misleading advertisements | सुप्रीम कोर्ट बोला- सरकारें भ्रामक विज्ञापन रोकने का सिस्टम बनाएं: जहां लोग शिकायत कर सकें, दो महीने में उनका समाधान हो

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नई दिल्ली9 मिनट पहले

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जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने भ्रामक विज्ञापन पर सुनवाई की। (फाइल फोटो) - Dainik Bhaskar

जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने भ्रामक विज्ञापन पर सुनवाई की। (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 मार्च) को झूठे और भ्रामक विज्ञापनों पर सख्ती बरतने के लिए सभी राज्यों को निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि सभी सरकारें भ्रामक विज्ञापन के खिलाफ शिकायत की सुनवाई के लिए 2 महीने के भीतर एक सिस्टम बनाएं।

दरअसल, 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। इसमें पतंजलि और योगगुरु रामदेव पर कोविड वैक्सीनेशन और मॉडर्न मेडिकल साइंस के खिलाफ दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद से ही कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों पर सख्त रुख अपनाया है।

बुधवार को भ्रामक विज्ञापन की सुनवाई कर रहे जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने यह आदेश जारी किया। कोर्ट ने कहा कि भ्रामक विज्ञापनों पर लगाम लगाने के लिए पुलिस को भी ‘ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954’ के तहत सख्त कार्रवाई के लिए जागरूक किया जाए।

इस आदेश के बाद क्या बदलाव होगा?

  • दो महीने में सभी राज्यों को शिकायत निवारण सिस्टम बनाना होगा।
  • हर तीन महीने में इस सिस्टम की जानकारी जनता को देनी होगी।
  • पुलिस को 1954 के कानून के तहत कार्रवाई के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी।

अगर राज्य सरकारें 26 मई 2025 तक इस आदेश का पालन नहीं करती हैं, तो सुप्रीम कोर्ट आगे और सख्त कदम उठा सकता है। कोर्ट के इस फैसले से उन कंपनियों और ब्रांड्स पर नकेल कसने की उम्मीद है, जो झूठे दावों के साथ प्रोडक्ट बेचते हैं।

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