How can the mind find peace?, tips for meditation, how to do meditation, lesson of a sant to get peace of mind in hindi | मन को शांति कैसे मिल सकती है?: संत की व्यापारी को सीख- जब तक मन में लालच, गुस्सा और अहंकार जैसी भावनाएं हैं, मन भटकता रहेगा

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8 घंटे पहले

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लोग जीवन में शांति, संतुलन और सुख की तलाश में लगे रहते हैं, लेकिन जब जीवन में सारी भौतिक सुविधाएं होते हुए भी मन अशांत रहता है तो इसका कारण अक्सर हमारे भीतर के नकारात्मक विचार और भावनाएं होती हैं। एक प्राचीन लोक कथा इसी बात को सरल तरीके से समझाती है।

कहानी एक व्यापारी की है, जिसके पास अपार धन-दौलत थी। महंगे वस्त्र, आलीशान घर, नौकर-चाकर, सब कुछ था उसके पास। लेकिन फिर भी उसका मन हमेशा बेचैन रहता था। व्यस्त जीवन, निरंतर व्यापारिक यात्राएं, प्रतिस्पर्धा, लाभ-हानि की चिंता, इन सबने उसे मानसिक रूप से थका दिया था। वह जानता था कि कुछ तो है जो जीवन में अधूरा है, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि अधूरापन किस बात का है?

एक दिन जब वह एक गांव की ओर जा रहा था, उसे रास्ते में एक आश्रम दिखाई दिया। शांति की तलाश में वह उस आश्रम में चला गया। वहां एक संत एकांत में तपस्या कर रहे थे। व्यापारी ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी सारी परेशानी उन्हें सुना दी। उसे आशा थी कि शायद यहां से कोई समाधान मिलेगा।

संत ने मुस्कुराकर कहा, “तुम्हें शांति चाहिए तो कुछ देर ध्यान करो।” व्यापारी ने कोशिश की, आंखें बंद कीं, बैठ गया और गहरी सांस लेने लगा, लेकिन मन तो जैसे किसी उथले तालाब की सतह की तरह हिलोरें ले रहा था। कभी व्यापार की चिंता, कभी नुकसान का डर, कभी अहंकार, हर विचार ध्यान में बाधा बन रहा था। कुछ देर बाद उसने हार मान ली और संत से कहा, “मैं ध्यान नहीं कर सकता, मन एक जगह थमता ही नहीं।”

तब संत बोले, “ठीक है, चलो आश्रम में थोड़ा घूमते हैं।” टहलते-टहलते व्यापारी का हाथ एक पौधे की शाखा से टकराया और उसे कांटा चुभ गया। वह चौंक गया और दर्द से कराह उठा। संत तुरंत दौड़कर एक औषधीय लेप ले आए और उसके हाथ पर लगा दिया।

इसके बाद संत ने जो कहा, वह जीवन का सार था। उन्होंने कहा, “जिस तरह इस कांटे ने तुम्हारे शरीर को पीड़ा दी, वैसे ही तुम्हारे मन में भी क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, लालच जैसे कई कांटे हैं। जब तक इन्हें नहीं निकालोगे, तब तक तुम्हारा मन भी इसी तरह पीड़ित रहेगा और अशांति बनी रहेगी।”

ये बात व्यापारी के दिल को छू गई। उसे अहसास हुआ कि असली दुख बाहर नहीं, बल्कि भीतर है। जब तक वह अपने अंदर की गंदगी को साफ नहीं करेगा, बाहर का कोई भी वैभव उसे सुख नहीं दे सकता।

इस अनुभव ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। उसने संत को अपना गुरु बना लिया। धीरे-धीरे उसने अपने अंदर के विकारों को पहचानना और उनसे मुक्त होना शुरू किया। अब वह ध्यान करता, स्वयं पर काम करता और अपने धन का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करने लगा। समाज सेवा, दान और लोगों की मदद, इनसे उसे वह संतोष मिला जो किसी भी व्यापारिक लाभ से बड़ा था।

जीवन प्रबंधन की सीख

  • भीतर की सफाई जरूरी है: बाहरी सफलता तब तक अधूरी है, जब तक मन का वातावरण स्वच्छ और शांत न हो। जब तक भीतर ईर्ष्या, लालच और क्रोध का जहर है, तब तक सुख की अनुभूति संभव नहीं।
  • ध्यान और आत्मनिरीक्षण का महत्व: ध्यान केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने का साधन है। यह हमें हमारे विचारों की पहचान कराता है और उनसे मुक्त होने का रास्ता दिखाता है।
  • धन का सदुपयोग ही सच्ची संपन्नता है: जब धन का उपयोग समाज हित में होता है, तभी वह सच्चे अर्थों में सुखदायी बनता है। वरना यह केवल चिंता का कारण बनता है।
  • ये कथा हमें सिखाती है कि जीवन की सच्ची शांति और सफलता बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर छिपी है। जीवन प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है- अपने मन को समझना, उसे शुद्ध करना और सही दिशा में लगाना। जब हम ये कर लेते हैं तो जीवन न केवल सफल होता है, बल्कि सार्थक भी हो जाता है।

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