5 घंटे पहले
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बुधवार, 25 जून को आषाढ़ मास की अमावस्या है, इस दिन आषाढ़ का कृष्ण पक्ष खत्म हो जाएगा और 26 जून से शुक्ल पक्ष शुरू होगा। आषाढ़ मास को हलहारिणी अमावस्या कहते हैं। इस दिन तीर्थ दर्शन और नदियों में स्नान करने के साथ ही हल, कृषि उपकरण की पूजा करने की भी परंपरा है। दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान किया जाता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, आषाढ़ मास अमावस्या पर देवी लक्ष्मी और विष्णु जी का विशेष अभिषेक करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है, ऐसी मान्यता है। अमावस्या तिथि पर ही देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के समय प्रकट हुई थीं, इस वजह से हर महीने की अमावस्या पर महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। जानिए कैसे कर सकते हैं लक्ष्मी पूजा…
अमावस्या तिथि पर महालक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा सूर्यास्त के बाद करेंगे तो बहुत शुभ रहेगा। घर के मंदिर में देवी लक्ष्मी और विष्णु जी की पूजा की व्यवस्था करें। सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। गणेश जी को स्नान कराएं। वस्त्र, हार-फूल अर्पित करें। कुमकुम से तिलक करें। पूजन सामग्री चढ़ाएं। श्रृंगार करें। दूर्वा चढ़ाएं। लड्डू का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
गणेश पूजा के बाद लक्ष्मी जी और विष्णु जी का पूजन करें। देवी-देवता की प्रतिमा का जल से, फिर केसर मिश्रित दूध से और फिर जल से अभिषेक करें। लक्ष्मी जी को लाल चुनरी ओढ़ाएं। विष्णु जी को पीले चमकीले वस्त्र अर्पित करें। हार-फूल चढ़ाएं। तिलक करें। इत्र चढ़ाएं। अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं।
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। देवी लक्ष्मी के मंत्र ऊँ महालक्ष्म्यै नम: का भी जप करें। मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं। आरती करें। इस तरह पूजा करने के बाद भगवान से पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें। पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें।
अमावस्या पर छाते का करें दान
अभी बारिश का समय है तो जरूरतमंद लोगों को छाते का दान करें। इसके साथ ही वस्त्र, अनाज और धन का दान भी करें। किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें। गौशाला में हरी घास और गायों की देखभाल करने के लिए धन का दान करें।
दोपहर में करें पितरों के लिए धूप-ध्यान
अमावस्या तिथि के स्वामी पितर देव माने जाते हैं। इसलिए इस दिन पितरों के लिए विशेष धूप-ध्यान करना चाहिए। धूप-ध्यान के लिए दोपहर करीब 12 बजे का समय सबसे अच्छा होता है। गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं, जब अंगारों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब पितरों का ध्यान करते हुए अंगारों पर गुड़-घी अर्पित करें।