Sirsa Farmer Turns Stubble to Fuel | Rs 2 Crore Annual Turnover from Waste Management | Rajendra | सिरसा में पराली से 2 करोड़ की सालाना कमाई: फार्मासिस्ट रहे राजेंद्र ने पर्यावरण बचाने की ठानी; खेत में लगाया ईंधन बनाने का प्लांट – Haryana News

Actionpunjab
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सिरसा के गांव खारियां के प्रगतिशील किसान राजेंद्र न्योल ने साबित कर दिया कि कुछ अलग करने की सोच से ही नई राहें बनती हैं। मेडिकल लाइन छोड़ पर्यावरण बचाने और ‘वेस्ट से वेल्थ’ की अनोखी पहल की है। राजेंद्र ने 2 साल पहले पराली से ईंधन बनाना शुरू किया है।

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वे अब सालाना 1000 एकड़ की करीब 20 हजार क्विंटल पराली प्रोसेस कर ईंधन बना रहे हैं। इससे सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। 10 लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। आसपास के किसान भी पराली न जलाकर बेच रहे हैं।

प्लांट में पराली से गुटके तैयार करते श्रमिक

प्लांट में पराली से गुटके तैयार करते श्रमिक

राजेंद्र बताते हैं, ‘मेरे पास साढ़े 7 एकड़ जमीन है। मैं 1984 से फार्मासिस्ट था। 38 साल मेडिकल लाइन में रहा। इस दौरान हजारों ग्रामीणों और मरीजों को सांस, दमा और प्रदूषण से जूझते देखा। धान की पराली के सीजन में धुएं से परेशान रोगियों ने सोचने पर मजबूर कर दिया। दवाओं की बिक्री चार गुना तक बढ़ जाती थी। मरीजों की संख्या बढ़ने से भले दवाओं की बिक्री बढ़ जाती थी, लेकिन मन को सुकून नहीं मिलता था। इसलिए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाया।

दो साल पहले खेत में एक एकड़ 4 कनाल में पराली से ईंधन योग्य गुटका बनाने का प्लांट लगाया। अब हर साल 20 हजार क्विंटल पराली प्रोसेस कर इंधन तैयार किया जाता है। यह ईंधन दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, पानीपत, सोनीपत, घरौंडा के कई उद्योगों में कोयले की जगह इस्तेमाल हो रहा है।’

प्लांट में पराली से गुटके तैयार करते श्रमिक(

प्लांट में पराली से गुटके तैयार करते श्रमिक(

राजेंद्र ने बताया, ‘हर साल सैकड़ों एकड़ में पराली जलाई जाती थी। इससे जहरीला धुआं फैलता था। मैंने इसे चुनौती नहीं, अवसर माना। रिसर्च कर पराली से ईंधन बनाने की तकनीक विकसित की। अब किसान पराली जलाने के बजाय बेच रहे हैं।

उन्हें इसका उचित दाम मिल रहा है। इससे अतिरिक्त आमदनी हो रही है। अगर सभी किसान फसल अवशेष को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करें तो यह प्रदूषण का कारण नहीं, कमाई का जरिया बनेगी।’

इस मॉडल को विभाग भी सराहा रहा

फसल अवशेष प्रबंधन के इस मॉडल को प्रशासन और कृषि विभाग भी सराहा रहा है। यह सिरसा समेत अन्य जिलों के लिए प्रेरणा है। यह नवाचार पर्यावरण, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव की मिसाल है। इससे किसानों को प्रेरणा मिलती है कि फसलों के अवशेष जलाएं नहीं, बल्कि उनका प्रबंधन करें।

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