Bairia Martyrdom Day: 18 August 1942 is a historic day | बैरिया शहादत दिवस: 18 अगस्त 1942 का ऐतिहासिक दिन: थाने पर तिरंगा फहराते समय 18 क्रांतिकारियों ने दी जान, स्कूली बच्चे भी थे शामिल – Ballia News

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पुष्पेंद्र कुमार तिवारी | बलिया12 मिनट पहले

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बलिया के बैरिया में 18 अगस्त 1942 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा गया। इस दिन 18 क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। यह घटना उस समय हुई जब वे बैरिया थाने पर तिरंगा फहरा रहे थे।

इस शहादत को और भी दर्दनाक बनाता है कि इन क्रांतिकारियों में विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र भी शामिल थे। इन वीर सपूतों की कुर्बानी ने स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। आज भी बैरिया की यह घटना भारत के स्वतंत्रता संग्राम की वीरगाथा का एक अमिट हिस्सा है।

प्रतिवर्ष 18 अगस्त को बैरिया शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आजादी की लड़ाई में हर उम्र के लोगों ने अपना योगदान दिया। इन शहीदों की कुर्बानी देश की आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

आजादी के इतिहास में 18 अगस्त 1942 को बलिया के बैरिया में आजादी के दीवानों ने वह कारनामा दिखाया। जो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। इसी दिन थाने पर तिरंगा फहराते समय 18 क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए शहीद हो गए थे। इसमें विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे भी शामिल थे। इस चिंगारी की बदौलत आजादी के वीर दीवानों ने 19 अगस्त 1942 को बलिया को आजाद घोषित कराके ही दम लिया।

अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की चिंगारी पहुंची बलिया

महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन आरम्भ किया था। जिसकी चिंगारी बलिया तक पहुंच चुकी थी। जनाक्रोश चरम पर था, 9 अगस्त से ही बलिया में जगह-जगह व्यापक आंदोलन शुरू हो गया। सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था। रेल पटरियां उखाड़ दी गई थी। जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने आंदोलन के सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया था। लेकिन शायद अंग्रेजों को ये मालूम नहीं था कि ये बलिया है।और यहां का बच्चा-बच्चा भी अपने वतन पर मर मिटने को तैयार रहता है। स्वतंत्रता आंदोलन में‌ शामिल आजादी के दीवानों को जेल में बंद करने का कदम, खुद अंग्रेजों पर ही भारी पड़ गया।

आजादी के दीवानों ने स्टेशन फूंका,रेल पटरियां उखाड़ दिया

नेतृत्व विहीन जनता को जो समझ में आया, उन्होंने करना शुरु कर दिया। 13 अगस्त को बनारस से बलिया पहुचीं ट्रेन से आये छात्रों ने चितबड़ागांव स्टेशन को फूंक दिया। 14 अगस्त को मिडिल स्कूल के बच्चों के जुलुस को सिकंदरपुर में थानेदार द्वारा बच्चों को घोड़ो से कुचला गया। 14 अगस्त को ही चितबड़ागांव, ताजपुर, फेफना,रेवती में रेल पटरियों को उखाड़ दिया गया।वही बेल्थरा-रोड में मालगाड़ी को लूट कर पटरियों को उखाड़ दिया गया।

परिणाम यह हुआ कि बलिया रेल सेवा से पूरी तरह से कट गया। ऐसा नहीं था कि अंग्रेजों ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए दमन चक्र नहीं चलाया। फिरंगियों की कार्रवाई में बड़ी तादात में लोग शहीद हुए।जिनमें 16 अगस्त को पुलिस गोलीबारी में बलिया शहर के लोहापट्टी, गुदरी बाजार में दुखी कोइरी सहित 7 लोग शहीद हुए। 17 अगस्त को रसड़ा में 4 लोग पुलिस गोलीबारी में शहीद हुए।

आजादी के दीवानों का गुस्सा

18 अगस्त को बैरिया में थाने पर तिरंगा फहराने के जंग में कौशल कुमार सहित 18 लोग शहीद हुए।अंग्रेजी हुकुमत ने हजारों आजादी के दीवानों को जेलों में बंद कर दिया था। लेकिन लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था। 18 अगस्त 1942 से दो दिन पहले बैरिया में भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह के साथ हजारों की भीड़ के आगे थानेदार काजिम ने खुद ही थाने पर तिरंगा फहराया था और थाना खाली करने के लिए क्रांतिकारियों से दो दिन की मोहलत मांगी थी।

जब थानेदार ने क्रांतिकारियों के साथ किया विश्वासघात

बैरिया थाने के थानेदार ने क्रांतिकारियों के साथ गद्दारी करते हुए,उसी रात जिला मुख्यालय से पांच सशस्त्र पुलिसकर्मियों को बुला लिया था और रात में तिरंगे को उतारकर फेंकवा दिया। जैसे ही इस बात की जानकारी आजादी के दीवानों को लगी। क्रांतिकारियों की ज्वाला धधक उठी। 18 अगस्त को दोपहर होते-होते हजारों लोगों ने थाने को घेर लिया। थाने पर भीड़ को देख थानेदार ने थाने की छत पर सिपाहियों संग पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया। क्रांतिकारी पथराव करते हुए थाने में प्रवेश कर गये।

ब्रिटिश फौज ने क्रांतिकारियों पर बरसाई गोलियां

क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश फौज ने गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। लेकिन भारत माता की वीर सपूतों ने जान की परवाह किये बिना आगे बढ़ते रहे। इस बीच कौशल कुमार छलांग लगाकर थाने की छत पर पहुंच गए और तिरंगा फहरा दिया लेकिन पुलिस की गोली से वह अमर शहीद हो गए।

ये क्रांतिकारी हो गये शहीद

शहीद होने वालों में गोन्हिया छपरा निवासी निर्भय कुमार सिंह, देवबसन कोइरी, विशुनपुरा निवासी नरसिंह राय, तिवारी के मिल्की निवासी रामजनम गोंड, चांदपुर निवासी रामप्रसाद उपाध्याय, टोलागुदरीराय निवासी मैनेजर सिंह, सोनबरसा निवासी रामदेव कुम्हार, बैरिया निवासी रामबृक्ष राय, रामनगीना सोनार, छठू कमकर, देवकी सोनार, शुभनथही निवासी धर्मदेव मिश्र, मुरारपट्टी निवासी श्रीराम तिवारी, बहुआरा निवासी मुक्तिनाथ तिवारी, श्रीपालपुर निवासी विक्रम सोनार, भगवानपुर निवासी भीम अहीर शामिल थे। जबकि दयाछपरा निवासी गदाधर नाथ पांडेय, मधुबनी निवासी गौरीशंकर राय, गंगापुर निवासी रामरेखा शर्मा सहित तीन लोगों की जेल यातना में शहादत हुई।

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