आरएनटी मेडिकल कॉलेज का सेतु प्रोजेक्ट (रैपिड रेफरल रिड्रेसल सिस्टम) एक साल में ही दम तोड़ता नजर आ रहा है। 19 जून 2024 को शुरू हुए इस प्रोजेक्ट से अगस्त 2025 तक केवल 1958 मरीजों को ही फायदा मिला, जबकि एमबी हॉस्पिटल में रोजाना औसतन तीन हजार मरीज रेफर ह
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प्रोजेक्ट का उद्देश्य था कि संभागभर से रेफर मरीजों को तत्काल चिकित्सा सुविधा मिल सके। इसके लिए उन्हें दलालों और प्राइवेट अस्पतालों के चुंगुल से बचाना भी था। लेकिन पूरे साल में केवल छह हॉस्पिटल ही इससे जुड़े। अधिकांश अस्पतालों के डॉक्टरों और स्टाफ ने कोई रुचि नहीं दिखाई।
शुरुआत में इसे लेकर खूब उत्साह दिखाया गया था। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने की थी। तब मुख्य सचिव सुधांशु पंत ने कहा था कि अगर यह प्रोजेक्ट आरएनटी उदयपुर में सफल रहा तो इसे पूरे प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में लागू करेंगे।
जब सेतु प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, तब उदयपुर संभाग के सभी सरकारी अस्पतालों को इसमें शामिल किया गया। इसमें 80 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 27 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, उप-जिला अस्पताल- बड़गांव, वल्लभनगर, झाड़ोल, कोटड़ा, मावली, गोगुंदा और जिला अस्पताल भींडर जोड़े गए। लेकिन एक साल में केवल नाथद्वारा और राजसमंद जिला अस्पताल, सीएचसी देलवाड़ा, सेटेलाइट अस्पताल अंबामाता और हिरणमगरी ने ही सेतु प्रोजेक्ट के जरिए मरीज आरएनटी मेडिकल कॉलेज भेजे। इसके अलावा किसी भी अस्पताल ने इसका उपयोग नहीं किया।
प्रश्न ये… अब पूरे राजस्थान में कैसे लागू करेंगे इस सिस्टम को?
यह है प्रोजेक्ट
अस्पताल को एक क्यूआर कोड दिया गया है। मरीज को रेफर करते समय इसे स्कैन करते ही सूचना आरएनटी मेडिकल कॉलेज के कंट्रोल रूम तक पहुंचती है। वहां से मरीज की हिस्ट्री और रवानगी का समय तुरंत संबंधित विभाग को भेजा जाता, ताकि डॉक्टर पहले से तैयार रहें और तुरंत इलाज शुरू कर सकें। सिस्टम क्विक रिस्पॉन्स के लिए बनाया गया था, जिससे मरीज की जान तक बच सकती थी। लेकिन, हकीकत यह रही कि एक साल में दो हजार का आंकड़ा भी पार नहीं हो सका। जबकि हजारों मरीज रोजाना रेफर होकर आते रहे हैं।
फेल इसलिए…ऑनलाइन फॉर्म में जानकारी ही नहीं भरना चाहते कर्मचारी
मरीज को रेफर करने से पहले चिकित्सक या स्टाफ को क्यूआर कोड स्कैन करना होता है। स्कैन करते ही एक विंडो खुलती है, जिसमें मरीज का नाम, उम्र, मोबाइल नंबर, अस्पताल का नाम, डायग्नोसिस और किस विशेषज्ञ को दिखाना है, यह जानकारी भरनी पड़ती है। अधिकांश स्टाफ इस फॉर्म को भरने से बचते हैं। इसी कारण उन्होंने मरीज भेजने के लिए सेतु प्रोजेक्ट का इस्तेमाल करना ही कम कर दिया।
इसलिए शुरू किया था प्रोजेक्ट
कई बार जनप्रतिनिधियों से लेकर आमजन की ओर से जिला प्रशासन के पास शिकायतें पहुंची थीं कि रेफर होने के बाद जो मरीज हॉस्पिटल पहुंचते हैं, उन्हें समय पर देखने वाला कोई चिकित्सक नहीं होता। ऐसे में काफी मंथन के बाद इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी। कई बार चिकित्सकों के नहीं होने से स्टाफ भी रेफर मरीजों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं देता और परिजन परेशान होते हैं। प्रोजेक्ट प्रभारी डॉ. एमएस राठौड़ ने बताया कि कोई भी व्यक्ति फोन से क्यूआर कोड स्कैन करेगा तो खिड़की खुलेगी। इसमें संबंधित मरीज की जानकारी डालकर सबमिट करने पर तत्काल एमबी हॉस्पिटल में बने नियंत्रण कक्ष में कॉल जाएगा।
सीएमएचओ असमंजस में “ये प्रोजेक्ट कैसे काम करता है, यह भी देखना जरूरी है, क्या वाकई इस तरह के कोड स्कैन करने से मरीजों को लाभ मिल भी रहा है या नहीं ये देखना होगा। हमने जिले भर में इसके अनुरूप काम करने के निर्देशि दिए थे।”
-डॉ. अशोक आदित्य, सीएमएचओ, उदयपुर
गंभीर मरीजों को फायदा “यदि समय पर मरीज आ जाता है, और इसकी पूर्व सूचना मिल जाती है, तो गंभीर मरीजों की जान बच सकती है। यह प्रोजेक्ट फायदेमंद है।”
-डॉ. विपिन माथुर, प्राचार्य, आरएनटी मेडिकल कॉलेज