11 घंटे पहले
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आज (8 सितंबर) पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। पितरों को याद करने का ये उत्सव 21 सितंबर (सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या) तक चलेगा। पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध, धूप-ध्यान, पिंडदान, तर्पण आदि धर्म-कर्म करने की परंपरा है।
जानिए पितर कौन होते हैं, किस दिन किसका श्राद्ध करना चाहिए और घर पर श्राद्ध करने की विधि…
घर-परिवार के मृत सदस्य होते हैं पितर देव घर-परिवार के मृत सदस्यों को पितर देव कहा जाता है। पितृ पक्ष में पूरे कुटुंब के मृत सदस्यों को याद करके श्राद्ध कर्म करना चाहिए। श्रीमद् भगवद्गीता के 10वें अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि नागों में शेषनाग और जल-जंतुओं का अधिपति वरुण मैं ही हूं। पितरों में अर्यमा और शासन करने वालों में यमराज मैं ही हूं।
अर्यमा पितरों के राजा का नाम है। अर्यमा ऋषि कश्यप और अदिति के तीसरे पुत्र हैं। यमराज मृत्यु के देवता हैं। पितृ पक्ष में अर्यमा पितर देव की पूजा की जाती है। एक मान्यता ये है कि सबसे पहले ब्रह्मा जी के पीठ से पितर देव उत्पन्न हुए थे।

किस तिथि पर किसका श्राद्ध करना चाहिए?
परिवार के मृत सदस्य की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म करना चाहिए यानी जिस तिथि पर मृत्यु हुई थी, पितृ पक्ष की उसी तिथि पर उस व्यक्ति के नाम से श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।
तारीख | पितृ पक्ष की तिथियां |
8 सितंबर | प्रतिपदा श्राद्ध |
9 सितंबर | द्वितीया श्राद्ध |
10 सितंबर | तृतीया श्राद्ध |
11 सितंबर | चतुर्थी श्राद्ध |
12 सितंबर | पंचमी और षष्ठी श्राद्ध |
13 सितंबर | सप्तमी श्राद्ध |
14 सितंबर | अष्टमी श्राद्ध |
15 सितंबर | नवमी श्राद्ध |
16 सितंबर | दशमी श्राद्ध |
17 सितंबर | एकादशी श्राद्ध |
18 सितंबर | द्वादशी श्राद्ध |
19 सितंबर | त्रयोदशी श्राद्ध |
20 सितंबर | चतुर्दशी श्राद्ध |
21 सितंबर | सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या |
(चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी, इन तीन तिथियों की तारीख के संबंध में पंचांग भेद हैं। कुछ पंचांग में 11 सितंबर को चतुर्थी और पंचमी तिथि के श्राद्ध बताए गए हैं और कुछ पंचांग में 12 सितंबर को पंचमी और षष्ठी तिथि के श्राद्ध बताए गए हैं।)

मातृ नवमी पर करें सुहागिन मृत महिलाओं के लिए श्राद्ध
- नवमी श्राद्ध (15 सितंबर) को मातृ नवमी कहा जाता है। इस तिथि पर परिवार की सुहागिन मृत महिलाओं के लिए श्राद्ध करना चाहिए।
- द्वादशी श्राद्ध (18 सितंबर) पर मृत संन्यासियों के लिए श्राद्ध किया जाता है।
- चतुर्दशी श्राद्ध (20 सितंबर) पर शस्त्र और दुर्घटना में मरे लोगों के लिए श्राद्ध किया जाता है।
- सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (21 सितंबर) अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं मालूम है तो उसके लिए सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर श्राद्ध करें।
कुतुप काल में करना चाहिए श्राद्ध कर्म श्राद्ध करने के लिए दोपहर में करीब 12 बजे का समय सबसे अच्छा रहता है, इसे कुतुप काल कहते हैं। सुबह और शाम का समय देवी-देवताओं की पूजा के लिए श्रेष्ठ रहता है।