Delhi high court said Sexual harassment continues to haunt women at work places mens mindset unchanged | हाईकोर्ट बोला- ऑफिस में महिलाओं का सेक्सुअल हैरेसमेंट हो रहा: पुरुषों की सोच नहीं बदली; जज ने कहा- महिला डर, शिष्टाचार और माफी में जीती है

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24 मिनट पहले

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दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा- भले ही सख्त कानून बने हों, लेकिन ऑफिस में महिलाओं के साथ सेक्सुअल हैरेसमेंट अभी भी हो रहा है। क्यों पुरुषों की सोच नहीं बदली है।

वर्क-प्लेस पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का जम्मू-कश्मीर से जुड़े मामले में सुनवाई को दौरान जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा- एक महिला चाहे घर हो या ऑफिस हमेशा डर, शिष्टाचार और माफी के बीच जीती है।

उन्होंने कहा कि शेक्सपियर की कविता महिलाओं की जिंदगी को सही ढंग से बयां करती हैं। आगे पंक्तियां पढ़ी,

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पहले मेरा डर, फिर मेरा शिष्टाचार, और आखिर में मेरी बात। मेरा डर आपका नाराज होना है, मेरा शिष्टाचार मेरा कर्तव्य और मेरी बात आपसे माफी मांगने के लिए।

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अब पूरा मामला समझिए

यह केस जम्मू-कश्मीर के एक सरकारी अधिकारी आसिफ हमीद खान से जुड़ा है। उसपर दिसंबर 2014 में एक महिला ने शिकायत दर्ज कर सेक्सुअल हैरेसमेंट और धमकी देने का आरोप लगाया था।

आसिफ हमीद खान ने हाईकोर्ट में अपील दायर करके कहा कि विभागीय जांच में उन्हें पहले ही बरी कर दिया गया है। इसके अलावा, पुलिस ने केस में क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल कर दी थी। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने उन्हें समन जारी कर दिया। खान ने इसी आदेश को चुनौती दी थी।

हाईकोर्ट ने मंगलवार को आसिफ हमीद खान की अपील खारिज कर दी। साथ में 4 बड़ी बातें कही…

  1. सिर्फ विभागीय जांच में बरी होना, किसी FIR से छूट पाने का आधार नहीं हो सकता।
  2. ट्रायल कोर्ट ने सही किया कि क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया और केस की सुनवाई आगे बढ़ाई।
  3. यह केस समाज का आइना है, जहां महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने की बातें तो होती हैं, लेकिन हकीकत में मानसिकता वही पुरानी है।
  4. पढ़ी-लिखी महिला होने के बावजूद शिकायत करने वाली को उत्पीड़न झेलना पड़ा। यहां तक कि ऊंचे सरकारी पद भी महिलाओं को सेक्सुअल हैरेसमेंट से नहीं बचा पाते।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- सेक्सुअल हैरेसमेंट पर राज्य कंप्लेंट कमेटी बनाएं

सभी राज्य वर्क-प्लेस पर महिलाओं को सेक्शुअल हैरेसमेंट से बचाने के लिए इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (ICC) बनाएं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने गोवा यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर की याचिका पर दिसंबर 2024 को यह निर्देश दिया था।

बेंच ने कहा कि था, ‘ महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट (PoSH) 2013 में आया था। इतने वक्त बाद भी इसे लागू करने में इतनी गंभीर खामियां मिलना चिंताजनक है। ऐसा होना बहुत ही ज्यादा दुखद है, क्योंकि इसका राज्यों की कार्यशैली, पब्लिक अथॉरिटी और पब्लिक संस्थानों पर खराब असर पड़ता है।’ पूरी खबर पढ़ें….

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