11 घंटे पहले
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आज (21 सितंबर) सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या है और आज सूर्य ग्रहण भी है। हालांकि, ये सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए हमारे यहां इसका सूतक भी नहीं रहेगा। पूरे दिन अमावस्या से जुड़े धर्म-कर्म बिना किसी बाधा के किए जा सकेंगे। दोपहर में करीब 12 बजे पितरों के लिए धूप-ध्यान करें। इस समय कुतुप काल कहते हैं और इसे पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का सबसे अच्छा समय माना जाता है।
इस साल पितृ पक्ष 7 सितंबर को चंद्र ग्रहण के साथ शुरू हुआ था और आज (21 सितंबर) सूर्य ग्रहण के साथ खत्म हो रहा है। 2025 से पहले चंद्र ग्रहण के साथ श्राद्ध पक्ष की शुरुआत 9 साल पहले 2016 में हुई थी। अब 17 साल बाद यानी 2042 में ऐसा योग बनेगा, जब चंद्र ग्रहण के साथ श्राद्ध पक्ष शुरू होगा। इस योग में किया गया दान-पुण्य, श्राद्ध कर्म अक्षय पुण्य देने वाला माना गया है।
सूर्य ग्रहण का समय
21 सितंबर को सूर्य ग्रहण है, ये भारतीय समयानुसार रात 11 बजे शुरू होकर 3:24 बजे (22 सितंबर की तड़के) तक चलेगा। ग्रहण मुख्य रूप से न्यूजीलैंड, पश्चिमी अंटार्कटिका और आसपास के क्षेत्रों में दिखाई देगा। जिन स्थानों पर यह ग्रहण नजर आएगा, वहां इसका सूतक ग्रहण शुरू होने से 12 घंटे पहले लागू होगा और ग्रहण के समाप्त होते ही समाप्त होगा।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सूर्य ग्रहण कैसे होता है?
सूर्य ग्रहण एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है, जो तब घटित होती है जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है। जब ये तीनों ग्रह एक सीधी रेखा में होते हैं, तो चंद्रमा सूर्य की रोशनी को पृथ्वी तक आने से रोक देता है। इससे पृथ्वी के कुछ भागों पर अंधेरा छा जाता है, जिसे हम सूर्य ग्रहण के रूप में देखते हैं।
धार्मिक मान्यताएं: राहु-केतु का ग्रहण से संबंध
धार्मिक मान्यताओं में सूर्य-चंद्र ग्रहण का संबंध राहु और केतु से जोड़ा गया है। मान्यता है कि जब राहु सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता है, तब ग्रहण की स्थिति बनती है। इस संबंध में प्रचलित कथा के मुताबिक पुराने समय में देवताओं और दानवों ने एक साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। मंथन के अंत में अमृत निकला। देवता और दानव दोनों ही अमृत पीकर अमर होना चाहते थे। उस समय भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए मोहिनी अवतार लिया था।
मोहिनी देवताओं को अमृत पिला रही थी। उसी समय राहु देवताओं के बीच भेष बदलकर बैठ गया और उसने भी अमृत पी लिया। सूर्य-चंद्र ने राहु को पहचान लिया था और विष्णु जी को राहु की सच्चाई बता दी। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया।
राहु अमृत पी चुका था, इस वजह से वह मरा नहीं। राहु के दो हिस्से हो गए। एक हिस्सा राहु और दूसरा हिस्सा केतु के नाम से जाना जाता है। राहु की शिकायत सूर्य-चंद्र ने की थी, इस वजह से राहु इन दोनों को दुश्मन मानता है और समय-समय पर इन दोनों ग्रहों को ग्रसता है, जिसे ग्रहण कहते हैं।
सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर पितरों के लिए करें धूप-ध्यान
- आज सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर पितरों के लिए धूप-ध्यान जरूर करें, आज पितृ पक्ष खत्म हो जाएगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस अमावस्या पर श्राद्ध, तर्पण, दान आदि करने का विशेष महत्व है। घर में पितरों की तस्वीर या स्मृति स्थल पर दीपक जलाएं, धूप करें और तर्पण आदि विधियों से श्रद्धांजलि अर्पित करें।
- पवित्र नदियों में स्नान करें: गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा जैसी नदियों में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। अगर नदी में जाना संभव न हो तो घर पर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- दान-पुण्य करें: आज अनाज, वस्त्र और धन का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है। विशेष रूप से गायों को हरी घास, बच्चों को पढ़ाई की सामग्री और जरूरतमंदों को भोजन देना पुण्यदायक होता है।
- इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, शिव, हनुमान और श्रीकृष्ण की पूजा करना भी फलदायक माना गया है। आज भगवान विष्णु और लक्ष्मी का अभिषेक करें। पीपल वृक्ष को जल चढ़ाएं और परिक्रमा करें।
- हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा पढ़ें। शिवलिंग पर जल अर्पित करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं और ‘कृं कृष्णाय नमः’ मंत्र का जाप करें।