Swami vivekanand story, lesson of Swami Vivekanand in hindi, how to achieve our goals in life | स्वामी विवेकानंद की सीख: आपका लक्ष्य पूरा होगा या नहीं, ये आपकी नीयत और संकल्प पर निर्भर करता है

Actionpunjab
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11 घंटे पहले

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स्वामी विवेकानंद जी के जीवन और विचारों में सफलता के सूत्र छिपे हैं, इन सूत्रों को जीवन में उतार लेने से हमारी सभी समस्याएं खत्म हो सकती हैं। विवेकानंद जी के किस्सों में छिपी सीख हमारे जीवन को सही दिशा देती है। जानिए स्वामी जी का एक ऐसा किस्सा, जिसमें एक व्यक्ति उनसे लगातार बहस कर रहा था…

एक व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद से बहस करते हुए कहा कि स्वामी जी, आप कहते हैं कि यदि हम धन और स्त्री के पीछे नहीं भागेंगे तो ये हमारे पीछे आएंगे। आपकी बात सुनकर मैंने पूरे एक वर्ष तक ईमानदारी से ये संकल्प निभाया, मैं न धन के पीछे भागा और न ही स्त्री के पीछे भागा। एक साल बीत गया, न मेरे पास धन आया और न ही कोई स्त्री आई। आपकी बात तो झूठी निकली।

स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले,

“भइया, एक बात बताओ- इस संकल्प के पीछे तुम्हारी साधना थी या कामना?”

ये प्रश्न सुनकर वह व्यक्ति चौंक गया। उसने कहा, “ये बात मेरी समझ में नहीं आई?”

स्वामी जी ने समझाया,

“अगर तुम्हारे संकल्प के पीछे साधना थी, यानी आत्मिक विकास की भावना थी तो परिणाम आत्मिक होंगे। लेकिन अगर तुम्हारे संकल्प के पीछे ये कामना थी कि स्त्री और धन स्वतः तुम्हारे पास आएंगे तो यह त्याग नहीं, बल्कि एक छुपी हुई लालसा यानी कामना है। ध्यान रखना लालसा से कभी शांति या फल प्राप्त नहीं होता है।”

ये सुनकर वह व्यक्ति स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला, “अब मुझे आपकी बात थोड़ी-थोड़ी समझ आ रही है, कृपया और स्पष्ट करें।”

स्वामी विवेकानंद जी बोले,

“देखो, किसी भी संकल्प या अच्छे कर्म के पीछे हमारी नीयत क्या है, ये सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर तुमने धन और स्त्री की लालसा छोड़ दी है तो वे कभी न कभी तुम्हारे आसपास जरूर आएंगे, लेकिन तुम्हारे मन में अगर कोई स्वार्थ छिपा है तो ये संकल्प सिर्फ दिखावा बनकर रह जाएगा।”

स्वामी विवेकानंद की सीख

जब हम कोई लक्ष्य तय करते हैं तो उसकी सफलता हमारे संकल्प और नीयत पर निर्भर करती है। यदि हमारी नीयत शुद्ध, नि:स्वार्थ और आत्म-विकास की भावना से भरी होगी तो परिणाम सकारात्मक मिलेंगे। अगर अच्छे कार्य के पीछे कोई निजी लाभ या छुपी हुई इच्छा होगी तो वह कर्म भी फलहीन हो सकता है। लक्ष्य अधूरा रह सकता है।

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